अलवर सरिस्का को आबाद करने वाली टाइग्रेस एसटी 12 ने एक बार फिर 3 शावक को जन्म दिया है। इससे पहले 2018 व 2021 में भी तीन-तीन शावक जन्में हैं। इस तरह अकेली टाइग्रेस ने 5 साल में 9 टाइगर पैदा कर दिए। तालवृक्ष रेंज में टाइग्रेस ST-12 अपने तीन शावकों के साथ दिखी है। इसके बाद अब सरिस्का में कुल 33 टाइगर हो गए हैं। जिनमें 11 बाघ, 14 बाघिन व 8 शावक हैं। वन मंत्री संजय शर्मा ने बताया- तालवृक्ष रेंज में टाइग्रेस एसटी ने 3 शावकों को जन्म दिया है। शावक करीब डेढ़ माह से अधिक उम्र के लग रहे हैं। लेकिन तालवृक्ष रेंज में भी अब टाइगर की संख्या बढ़ गई है। नए शावक व टाइग्रेस की तस्वीर कैमरा ट्रैप के जरिए सरिस्का प्रशासन को मिली हैं। उसके बाद वन मंत्री को सूचना दी गई।एसटी 12 ने तीसरी बार में भी तीन शावकों को जन्म दिया है। कैमरा ट्रैप में तीन शावक दिखे हैं। शावक करीब 3 माह के हैं। बाघिन की उम्र करीब 10 वर्ष है। यह बाघिन ST-10 की बेटी है। जिसने तीसरी बार शावकों को जन्म दिया है।...

 सिटी पैलेस गुलाबी शहर कहे जाने वाले जयपुर के केंद्र में स्थित एक प्रसिद्ध महल या पैलेस है। जिसे शहर के संस्थापक महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने 1729-1732 ईस्वी के आसपास बनवाया था। यह मध्ययुगीन भारत का पहला योजनाबद्ध शहर है। शहर को नौ ब्लॉकों में विभाजित किया गया है और सिटी पैलेस जयपुर के बीचों बीच है। 1700 के दशक में राजधानी को आमेर से जयपुर स्थानांतरित  कर दिया गया था। इस शहर में कई राजाओं ने शासन किया और विभिन्न प्रकार के महल एवं इमारतें बनवायी। जयपुर एक ऐसा शहर है जहां देश के सबसे खूबसूरत महल स्थित हैं। यही कारण है कि यहां देश और विदेश से भारी संख्या में पर्यटक आते हैं।सिटी पैलेस का निर्माण महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने करवाया था। 1727 में पानी की समस्या और जनसंख्या में वृद्धि के कारण वह आमेर से जयपुर स्थानांतरित हो गए। उन्होंने सिटी पैलेस के वास्तुशिल्प डिजाइन का काम मुख्य वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य को सौंपा था। वास्तुशास्त्री ग्रंथों के अनुसार आर्किटेक्ट सिटी पैलेस को डिजाइन करने के लिए गया था। सिटी पैलेस परिसर जयपुर के पुराने शहर के एक सातवें हिस्से में एक बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है।यह उद्यानों, इमारतों, आंगनों, मंदिर और संग्रहालय का एक क्रम है, जो इसे भव्यता प्रदान करता है। इसकी बाहरी सीमा राजा जय सिंह जबकि अन्य हिस्सों को उनके उत्तराधिकारियों  द्वारा बनवाया गया था।सिटी पैलेस जयपुर, हवा महल और जंतर मंतर जयपुर के पुराने शहर में तीन मुख्य आकर्षण हैं।सिटी पैलेस कोदोवास्तुकारोंविद्याधरभट्टाचार्य और सर सैमुअल स्विंटन जैकब ने डिजाइन किया था।सिटी पैलेस राजपूत, मुगल और यूरोपीय शैलियों  की वास्तुकला का एक संयोजन है।सिटी पैलेस जयपुर के एक हिस्सा में संग्रहालय जबकि दूसरे हिस्से में जयपुर के पूर्व शासकों के वंशजों  का निवास स्थान है।सिटी पैलेस में त्रिपोलिया गेट  कोछोड़करजोकिशाहीपरिवार के लिए आरक्षित है, को छोड़कर किसी भी प्रवेश द्वार के माध्यम से पहुँचा जा सकता है।सिटी पैलेस का सबसे प्रभावशाली हिस्सा तीसरे आंगन में चार छोटे द्वार हैं जो वर्ष के चार मौसमों का प्रतिनिधित्व करते हैं।सिटी पैलेस में सबसे दिलचस्प वस्तुओं में से एक दो स्टर्लिंग चांदी के जार हैं जो आधिकारिक तौर पर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हैं और दुनिया के सबसे बड़े शुद्ध चांदी के जारों में से एक हैं।इस पैलेस में सवाई माधोसिंह प्रथम द्वारा पहना गया कपड़े का सेट रखा गया है, जो 1.2 मीटर चौड़ा था और इसका वजन 250 किलोग्राम था।सिटी पैलेस सुबह साढ़े नौ बजे से शाम पांच बजे तक खुला रहता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सिटी पैलेस रविवार को भी बंद नहीं होता है और पूरे सप्ताह, महिना और दिन खुला रहता है। सिटी पैलेस को अच्छे तरीके से घूमने में कुल डेढ़ से दो घंटे का समय लगता है। अगर आप पहली बार सिटी पैलेस देखने जा रहे हैं तो आपको गाइड या ऑडियो गाइड लेने की सलाह दी जाती है क्योंकि महल अपने इतिहास में बहुत समृद्ध है।सिटी पैलेस में प्रवेश के लिए भारतीयों को 75 रुपये का शुल्क, बच्चों को 40 रुपये का शुल्क और विदेशियों को 300 रुपये प्रवेश शुल्क देना पड़ता है। इसके अलावा यदि आप यहां फोटो खिंचना चाहते हैं और कैमरा लेकर जाना चाहते हैं तो आपको अलग से 50 रुपये का शुल्क और वीडियोग्राफी के लिए 150 रुपये का शुल्क देना पड़ेगा।...

जयपुर -हवा महल


बाहर की तरफ से भगवान कृष्ण के मुकुट जैसा दिखाई देने वाला यह महल अनूठा है। सन् 1799 ई. में महाराजा सवाई प्रताप सिंह द्वारा बनवाया गया यह महल पाँच मंजिला है तथा इसका डिज़ाइन वास्तुकार लालचंद उस्ता द्वारा तैयार किया गया था। गुलाबी शहर का द्योतक हवा महल, बलुआ पत्थर से राजस्थानी वास्तुकला और मुगल शैली का मिश्रण है। इसकी दीवारें सिर्फ डेढ़ फुट चौड़ी हैं तथा 953 बेहद सुन्दर आकर्षक छोटे छोटे कई आकार के झरोखे हैं। इसे बनाने का मूल उद्देश्य था कि शहर में होने वाले मेले-त्यौहार तथा जुलूस को महारानियाँ इस महल के अन्दर बैठकर देख सकें। हवा महल गर्मी के मौसम में भी इन झरोखों के कारण वातानुकूलित रहता है। इसके आंगन में पीछे की तरफ एक संग्रहालय भी है।...


अरावली के पश्चिमी छोर पर, पहाड़ों के बीच प्रसिद्ध सिलिसेढ़ झील स्थित है। अलवर से सरिस्का जाते समय, 15 कि.मी. की दूरी पर पर यह झील है। इसका निर्माण महाराजा विनयसिंह ने 1845 ई. में सिलिसेढ बांध के रूप में करवाया था। स्थानीय नदी ’रूपारेल’ की एक शाखा को रोक कर यह झील बनवाई गई थी। इस झील के किनारे, हरी भरी वादियों के बीच, मोती सा चमकता, सिलिसेढ़ लेक पैलेस दिखाई देता है। जिसे राजस्थान पर्यटन विकास निगम द्वारा हैरिटेज होटल के रूप में संचालित किया जाता है। सिलिसेढ़ झील में पर्यटकों के लिए बोटिंग तथा बर्ड वॉचिंग की भी सुविधा है। सर्दियों में यहाँ विभिन्न प्रजातियों के पक्षी तथा पानी में तैरती बत्तखें व मगरमच्छ पर्यटकों का मन मोह लेते हैं।...