अगर तर्जनी यानी अंगूठे के पास वाली उंगली और मध्यमा यानी बीच वाली उंगली के बीच खाली जगह दिखती है तो ऐसे इंसान के विचार स्वतंत्र होते हैं। ये अपने लक्ष्य को लेकर फोकस रहते हैं। इनकी मेहनत का फल इन्हें मिलता है। अगर इन दोनों उंगलियों के बीच गैप ज्यादा है तो इसका मतलब है कि वे मतलबी किस्म के हो सकते हैं।मध्यमा और अनामिका के बीच दूरीमाना जाता है कि व्यक्ति के बीच वाली उंगली और अनामिका यानि रिंग फिंगर के बीच खाली जगह नहीं बननी चाहिए। इन दोनों उंगलियों का पास होना शुभ होता है। यदि किसी व्यक्ति के इन दोनों उंगलियों के बीच में दूरी होती है तो उसका व्यक्तित्व लापरवाह किस्म का होता है। ऐसे लोग सिर्फ अपने और अपने फायदे के बारे में सौचते हैं।अनामिका और सबसे छोटी उंगली के बीच दूरीयदि किसी व्यक्ति की अनामिका यानि रिंग फिंगर और कनिष्ठा अर्थात सबसे छोटी उंगली के बीच दूरी हो तो उसे अच्छा नहीं माना जाता है। ऐसे व्यक्ति काफी गुस्सैल सवभाव के होते हैं। अपना काम पूरा करवाने के लिए ये किसी भी हद तक जा सकते हैं। मगर ऐसे लोग अपने परिवार को भी काफी तरजीह देते हैं। ये अपनी फैमिली के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं।जिनकी उंगलियों के बीच नहीं होता फासलाकई लोग ऐसे भी होते हैं जिनकी उंगलियों के बीच में कोई गैप ही नहीं होता है। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार जिन लोगो के उंगलियों के बीच में फासला नहीं होता है वे काफी गंभीर स्वभाव के होते हैं। ये दूसरों के जीवन में दखलंदाजी करना पसंद नहीं करते हैं और गंभीर स्वभाव के होते हैं। वहीं दूसरी तरफ जिन लोगों की सभी उंगलियों के बीच में गैप होता है उनमें ऊर्जा की कमी नहीं होती है। ऐसे लोग सकारात्मक सोच के मालिक होते हैंहाथ की रेखाएं तो आपके बीते कल और भविष्य के बारे में बता देती है, वहीं उंगलियों की मदद से भी आपके व्यक्तित्व से जुड़े कई राज पता लगाए जा सकते हैं। हस्तरेखा ज्योतिष की मदद से हथेली पर बनने वाली रेखाओं और निशानों से किसी भी इंसान के स्वभाव और भविष्य की जानकारी मिलती है। उंगलियों के बीच में कितना अंतर है इसकी सहायता से व्यक्ति के बारे में काफी कुछ जाना जा सकता है।
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महाशिवरात्रि 1 मार्च 2022 मंगलवार को शिव योग में आ रही है। भगवान शिव का पूजन कार्यो में सिद्धि और सफलता के लिए तो किया ही जाता है, लेकिन शिवजी की पूजा सबसे अधिक आयु और आरोग्यता के लिए की जाती है। रोग निवारण का सबसे बड़ा मंत्र महामृत्युंजय मंत्र दुनिया में प्रसिद्ध है। इस मंत्र के समान ही शिवजी के अनेक मंत्र हैं जिनका जाप करके समस्त रोगों का निवारण किया जा सकता है। शिवजी के मंत्रों का जाप करने के लिए वैसे तो कोई दिन निर्धारित नहीं है, इनका जाप और सिद्धि कभी भी की जा सकती है लेकिन सोमवार या महाशिवरात्रि का दिन सबसे विशेष होता है। यदि आप स्वयं या आपके परिवार में कोई बीमार चल रहा है, गंभीर बीमारियों से जूझ रहा है तो इस महाशिवरात्रि पर शिवजी के मंत्रों का जाप कर सकते हैं। यहां पांच विशिष्ट मंत्रों की जानकारी दी जा रही है।इस मंत्र से हर व्यक्ति परिचित है। यह मंत्र दिखने और जपने में जितना सरल है, उससे लाखों गुना अधिक इसका प्रभाव होता है। यदि सही विधि और उद्देश्य से इसका जाप किया जाए तो यह अपना पूर्ण चमत्कार दिखाता है। इस शिवजी का छह अक्षरों वाला मंत्र है। किसी भी उपासना के अंत में तो इस मंत्र का जाप किया ही जाता है मंदिरों में पूजा करते समय और शिवलिंग पर जल अर्पित करते हुए भी इस मंत्र का जाप किया जाता है। इस मंत्र का अधिक संख्या में जप करना हो तो प्रणव अर्थात् आगे से ऊं हटाकर मात्र नम: शिवाय पंचाक्षरी का जाप करना चाहिए। तांत्रिक साधनाओं में विशेषकर इसी मंत्र का जाप किया जाता है। यह मंत्र मनुष्य को उसकी इच्छित वस्तुएं प्रदान करने में पूर्ण सफल है। इस मंत्र को महाशिवरात्रि के दिन सवा लाख जपकर दशांश हवन करने का विधान है।
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आज है साल का पहला पहला मासिक चंद्र दर्शन, जानें मुहूर्त और धार्मिक महत्वचंद्र दर्शन का शुभ मुहूर्त,चंद्र दर्शन की तिथि: 04 जनवरी, मंगलवार,चंद्रोदय: 04 जनवरी, सुबह 08:47, दर्शन, शाम 5:15 के बाद,चंद्र सेट: 4 जनवरी, 07:20 अपराह्न,चन्द्र दर्शन का धार्मिक महत्व,हिंदू धर्म के अनुसार नौ ग्रहों में चंद्रमा का विशेष स्थान है। चूंकि चंद्रमा धरती के सबसे नजदीक का खगोलीय पिंड है, इस कारण भी मानव शरीर पर चंद्रमा पर विशेष प्रभाव पड़ता है। ज्योतिष के अनुसार भी चंद्रमा का हमारे जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है। जिन लोगों की कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मजबूत नहीं होती है, उन्हें सलाह दी जाती है कि वे चंद्रमा की ठीक से पूजा करें। चंद्रमा की पूजा करने और व्रत रखने से जीवन के सभी नकारात्मक विचार दूर हो जाते हैं और व्यक्ति के जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है।,...

हिंदू धर्म में मासिक शिवरात्रि का सबसे अधिक महत्व है. ऐसे में नव वर्ष 2022 की शुरुआत मासिक शिवरात्रि और राजप्रद योग में हुई है. एक जनवरी को पौष मास की मासिक शिवरात्रि है. मासिक शिवरात्रि पर रात्रि में पूजा का विशेष महत्व होता है. मासिक शिवरात्रि पर भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और भगवान शंकर की विशेष कृपा प्राप्त होती है. हर माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है. मासिक शिवरात्रि पर पूरी विधि-विधान के साथ भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है. जानते हैं मासिक शिवरात्रि की पूजा-विधि और शुभ मुहूर्त की पूरी जानकारियां. यह भी पढ़ें : एक जनवरी से कर लें ये उपाय, शनि दोष से मिलेगी छुटकारा-इस पावन दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें -घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें -शिवलिंग का गंगा जल, दूध, आदि से अभिषेक करें -भगवान शिव के साथ ही माता पार्वती की पूजा अर्चना भी करें -भगवान गणेश की पूजा अवश्य करें. किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा- अर्चना की जाती है -भोलेनाथ का अधिक से अधिक ध्यान करें -ऊॅं नम: शिवाय मंत्र का जप करें -भगवान भोलेनाथ को भोग लगाएं. इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है 
-भगवान की आरती करना न भूलें...

पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को ही द्वापर युग में देवी रुक्मिणी जी का जन्म हुआ था। इस बार 27 दिसंबर को रुक्मिणी अष्टमी मनाई जा रही है। रुक्मिणी, जी मां लक्ष्मी का ही अवतार हैं। वे श्रीकृष्ण की प्रमुख पटरानियों में से एक और विदर्भ नरेश भीष्मक की पुत्री थीं। श्रीकृष्ण, देवी रुक्मिणी और राधा जी का जन्म भी अष्टमी पर हुआ था। यही कारण है कि अष्टमी को धार्मिक मान्यताओं में शुभ माना जाता है।
कृष्ण-रुक्मिणी विवाह-रुक्मिणी जी के पिता भीष्मक उनका विवाह शिशुपाल से करना चाहते थे, लेकिन देवी रुक्मिणी, श्रीकृष्ण को अपना पति मान चुकी थीं। शिशुपाल से विवाह वाले दिन रुक्मिणी पूजा के लिए मंदिर गईं थीं वहीं से रथ पर सवार श्री कृष्ण उन्हें अपने रथ में बैठा कर द्वारिका ले गए और देवी के साथ विवाह किया। श्रीकृष्ण-रुक्मिणी के पुत्र प्रद्युम्न कामदेव हुए अत: अष्टमी के दिन इनकी पूजा जरूर करें।महत्व: रुक्मिणी अष्टमी के दिन देवी की पूजा से धन-धान्य की वृद्धि होती है और दांपत्य जीवन में सुख-शांति बढ़ती है। संतान की प्राप्ति भी होती है। रुक्मिणी अष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण के साथ देवी का पूजन करने से जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है।इस विधि से करें देवी रुक्मिणी की पूजा-1. रुक्मिणी अष्टमी के दिन प्रात: जल्दी उठकर स्नान कर व्रत और पूजन का संकल्प लें।
2. चौकी पर देवी रुक्मिणी और भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।3. पूजा में दक्षिणावर्ती शंख में जल भर कर अभिषेक करें। श्रीकृष्ण को पीला और देवी को लाल वस्त्र अर्पित करें।4. भगवान को कुमकुम और देवी को सिंदूर अर्पित करें और इसके बाद सभी को हल्दी, इत्र और फूल चढ़ाएं।5. पूजा में तुलसी व खीर का भोग लगा कर घी का दीपक जलाएं और कर्पूर की आरती करें। शाम के समय पुन: पूजन-आरती करके फलाहार लें।6. इस दिन रात्रि जागरण करें। अगले दिन नवमी को व्रत को पूर्ण करें, तत्पश्चात इस व्रत का पारण करें।...

पौष मास की शुरूआत 20 दिसंबर से हो चुकी है, जो 17 जनवरी तक रहेगा। इस महीने से जुड़ी अनेक परंपराएं और मान्यताएं धर्म ग्रंथों में बताई गई हैं। इस महीने से जुड़ी ऐसी ही एक परंपरा है भगवान सूर्यदेव की पूजा करना। वैसे तो सूर्यदेव की उपासना रोज करनी चाहिए, लेकिन इस महीने में सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष महत्व बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि पौष मास में भगवान भास्कर ग्यारह हजार रश्मियों के साथ तपकर सर्दी से राहत देते हैं।पौष मास का धार्मिक और व्यवहारिक महत्व-वेद में सूर्य को संसार की आत्मा कहा गया है। इसलिए इस महीने में भगवान सूर्य की पूजा करने का विशेष महत्व बताया गया है। हालांकि पौष महीने में शादी-विवाह आदि लौकिक उत्सव वर्जित माने गए हैं। इसलिए इन दिनों में सुबह जल्दी जागना चाहिए और सूर्य पूजा करनी चाहिए, सुबह-सुबह धूप में बैठना चाहिए। ऐसा करने से हमें धर्म लाभ के साथ ही स्वास्थ्य लाभ भी मिलते हैं। पौष महीने में भगवान सूर्य की पूजा के साथ ही अन्न और अन्य चीजों का दान करना चाहिए। ऐसा करने से लंबी उम्र मिलती है।सेहत के लिए अच्छी होती है सूर्य पूजा- ऋतु के कारण पाचन शक्ति भी कमजोर हो जाती है। सूर्य की किरणों के संपर्क में रहने से वह भी ठीक रहती है। पौष मास के दौरान दिन छोटे होते हैं और रातें बड़ी। इसलिए इस समय सूर्य का किरणें हमारे शरीर को निरोगी बनाए रखने के लिए जरूरी होती हैं। यही कारण है कि पौष मास में भगवान सूर्यदेव की पूजा की परंपरा बनाई गई है।सूर्य से मिलता है विटामिन डी-पौष महीने में शीत ऋतु अपने चरम पर होती है। ठंड ज्यादा होने से स्किन संबंधी बीमारियां होने लगती हैं। साथ ही ठंड के कारण शरीर में विटामिन डी की कमी हो जाती है, जो हमें सूर्य की किरणों से मिलता है। सूर्यदेव को अर्घ्य देने और पूजा करने के दौरान उसकी किरणें हमारे शरीर पर पड़ती हैं। सूर्य की गर्मी के कारण त्वचा की बीमारियां होने का खतरा कम हो जाता है साथ ही विटामिन डी की कमी भी पूरी होती है।...

जो लोग जीवन में सुख-शांति पाना चाहते हैं, उन्हें बुरी आदतें जल्दी से जल्दी छोड़ देना चाहिए और गलत कामों से बचना चाहिए। अगर इन बातों का ध्यान नहीं रखेंगे तो जीवन और ज्यादा मुश्किल हो जाता है।बच्चों का डर खत्म करना है और आत्मविश्वास जगाना है तो उन्हें ईश्वर से जोड़ देना चाहिएमहात्मा गांधी के बचपन से जुड़ा किस्सा है। बालक मोहनदास को छोटी-छोटी बातों में बहुत डर लगता था। एक कमरे से दूसरे कमरे में जाना हो और अगर अंधेरा हो तो मोहनदास नहीं जा पाते थे।एक दिन अपने ही घर में मोहनदास को कमरे से बाहर जाना था और वे अपना पैर कमरे से बाहर निकालने ही वाले थे, तभी उन्हें लगा कि बाहर भूत है और जैसे ही मैं बाहर निकलूंगा, भूत मुझे पकड़ लेगा। उनके चेहरे पर घबराहट आ गई, पसीना निकलने लगा। वे सोचने लगे कि पैर निकालूं या नहीं।उस समय दरवाजे के बाहर एक दाई खड़ी थी, जिनका नाम रंभा था। रंभा ने पूछा, 'मोहनदास, बेटा क्या बात है?'मोहनदास बोले, 'दाई मुझे डर बहुत लगता है, ऐसा लगता है, जैसे भूत मुझे पकड़ लेगा।'रंभा बोलीं, 'अगर डर लगता है तो राम का नाम ले लिया करो।'मोहनदास ने राम नाम बोला और कमरे से पैर बाहर निकालकर बिना डरे चल दिए। जब ये बालक बड़ा हुआ तो संसार इन्हें मोहनदास करमचंद गांधी के नाम से जानने लगा।गांधी जी कहा करते थे, 'मेरे लिए राम नामआत्मविश्वास का आधार बन गया है।'एक दाई ने गांधी जी को बहुत बड़ा सूत्र दे दिया था।सीख - हमें अपने बच्चों को अगर निर्भय बनाना है, उनका आत्मविश्वास जगाना है तो उन्हें ईश्वर से समय रहते जोड़ देना चाहिए। ईश्वर अंधविश्वास नहीं है, आत्मविश्वास का दूसरा नाम है। ईश्वर के नाम में भी मंत्रों जैसे शक्ति होती है। मंत्र शक्ति जब हमारे शरीर में उतरती है तो कुछ ऐसे हार्मोनल चेंजेस होते हैं, जिनसे हम निर्भय हो जाते हैं।...

शनिवार, 18 दिसंबर को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के संयुक्त अवतार भगवान दत्तात्रेय का प्रकट उत्सव है। हर साल मार्गशीर्ष यानी अगहन माह की पूर्णिमा पर भगवान दत्तात्रेय की जयंती मनाई जाती है। दत्तात्रेय ने अपने 24 गुरुओं की वजह से भी काफी प्रसिद्ध हैं। दत्तात्रेय ने इन 24 गुरुओं से कई महत्वपूर्ण सीख प्राप्त की थीं। अगर हम दत्तात्रेय भगवान के जीवन की सीख को अपनाएंगे तो हमारी भी कई समस्याएं खत्म हो सकती हैं। जानिए ये 24 गुरु कौन-कौन थे और उनसे कौन सी सीख ली जा सकती है...पृथ्वी - दत्तात्रेय ने पृथ्वी से सहनशीलता का गुण सीखा था। पृथ्वी अच्छे-बुरे हर प्राणी का भार सहन करती है, पृथ्वी पर कई तरह के प्रहार किए जाते हैं, खनन होते हैं, लेकिन पृथ्वी इन्हें सहन करती रहती है।पिंगला वेश्या - उस समय एक पिंगला नाम की वेश्या थी। दत्तात्रेय ने उससे सीख ली थी कि सिर्फ पैसों को महत्व नहीं देना चाहिए। जब पिंगला के मन में वैराग्य जागा तो उसे समझ आया कि पैसों में नहीं बल्कि परमात्मा के ध्यान में असली सुख है।कबूतर - दत्तात्रेय ने देखा कि कबूतर का जोड़ा जाल में फंसे बच्चों को देखकर खुद भी जाल में फंस जाता है। कबूतर से दत्तात्रेय ने ये सीख ली कि बहुत ज्यादा मोह दु:ख का कारण बनता है।सूर्य - दत्तात्रेय ने सूर्य में देखा कि ये अलग-अलग माध्यमों से अलग-अलग तरह का दिखाई देता है। हमारी आत्मा भी एक ही है, लेकिन ये भी सूर्य की तरह ही कई रूपों में दिखाई देती है।वायु - जिस तरह अच्छी या बुरी जगह पर बहने के बाद वायु का मूल रूप नहीं बदलता है, ठीक उसी तरह अच्छे या बुरे लोगों के साथ रहने पर भी हमें अपने गुण छोड़ना नहीं चाहिए।हिरण - हिरण से यह सीखें कि हमें कभी भी मौज-मस्ती में इतना लापरवाह नहीं होना चाहिए कि हम परेशानियों में फंस जाएं। हिरण मौज-मस्ती में इतना खो जाता है कि उसे आसपास शेर के होने का आभास ही नहीं होता है।समुद्र - समुद्र की तरह ही हमें भी उतार-चढ़ाव की वजह से रुकना नहीं चाहिए। हमें हर स्थिति में आगे बढ़ते रहना चाहिए।पतंगा - पतंगा आग की ओर आकर्षित होता है और जल जाता है। हमें इससे सीख लेनी चाहिए कि कभी भी मोह में फंसना नहीं चाहिए।हाथी - हाथी हथिनी के संपर्क में आते ही उस पर मोहित हो जाता है और सबकुछ भूल जाता है। हाथी से सीख लें कि संन्यासी को स्त्रियों से बहुत दूर रहना चाहिए, वर्ना वह अपने तप से भटक सकता है।आकाश - आकाश से सीख सकते हैं कि हर स्थिति में एक समान रहना चाहिए। देश, काल, परिस्थिति जैसी भी आकाश एक समान रहता है।जल - दत्तात्रेय ने जल से सीखा था कि हमें हमेशा पवित्र रहना चाहिए।छत्ते से शहद निकालने वाला - मधुमक्खियां शहद इकट्ठा करती है और एक दिन छत्ते से शहद निकालने वाला सारा शहद ले जाता है। इस बात से ये सीखा जा सकता है कि आवश्यकता से अधिक चीजों को एकत्र नहीं करना चाहिए, वर्ना कोई दूसरा उन चीजों को हमारे पास से ले जाएगा।मछली - स्वाद का लोभ न रखें। मछली किसी कांटे में फंसे मांस के टुकड़े के लोभ में आकर खुद कांटे में फंस जाती है।कुरर पक्षी - कुरर पक्षी से सीखें कि किसी चीज को हमेशा अपने पास रखने की सोच छोड़ देना चाहिए। कुरर पक्षी मांस के टुकड़े को चोंच में दबाए रहता है, लेकिन उसे खाता नहीं है। दूसरे बलवान पक्षी उस मांस के टुकड़े को छिन लेते हैं।बालक - छोटे बच्चे से सीख लें कि परिस्थितियों कैसी भी हों, हमेशा चिंतामुक्त और प्रसन्न रहें।आग - आग अलग-अलग लकडिय़ों के बीच रहने के बाद भी एक जैसी ही नजर आती है। हमें भी परिस्थिति के हिसाब से ढल जाना चाहिए।चंद्रमा - घटने-बढ़ने से भी चंद्रमा की चमक और शीतलता बदलती नहीं है, ठीक इसी तरह हमारी आत्मा भी बदलती नहीं है।कुमारी कन्या - दत्तात्रेय ने कुमारी कन्या से सीख ली कि बिना शोर किए अपना काम करते रहें। दत्तात्रेय ने धान कूटती हुई एक कन्या को देखा। धान कूटते समय उस कन्या की चूड़ियां आवाज कर रही थीं। तब उस कन्या ने चूड़ियों की आवाज बंद करने के लिए चूड़ियां ही तोड़ दीं। दोनों हाथों में बस एक-एक चूड़ी रहने दी। इसके बाद कन्या ने बिना शोर किए धान कूट लिया।शरकृत या तीर बनाने वाला - दत्तात्रेय ने एक तीर बनाने वाले को देखा जो कि तीर बनाने में इतना खोया हुआ था कि उसके पास से राजा की सवारी निकल गई, लेकिन उसे मालूम भी नहीं हुआ। हमें भी अपने काम में खोए रहना चाहिए।सांप - दत्तात्रेय ने सांप से सीखा कि किसी भी संन्यासी को अकेले ही जीवन व्यतीत करना चाहिए और जगह-जगह ज्ञान बांटते रहना चाहिए।मकड़ी - मकड़ी जाल बनाती है, उसमें रहती है और अंत में पूरे जाल को खुद ही निगल लेती है। भगवान भी अपनी माया से सृष्टि की रचना करते हैं और अंत में उसे समेट लेते हैं।भृंगी कीड़ा - इस कीड़े से दत्तात्रेय ने सीखा कि अच्छी या बुरी, जहां जैसी सोच में मन लाएंगे मन वैसा ही हो जाता है।
भौंरा या मधुमक्खी - मधुमक्खी और भौरें अलग-अलग फूलों से पराग ले लेते हैं, हमें भी जहां से सार्थक बात सीखने को मिले उसे ग्रहण कर लेना चाहिए।अजगर - अजगर से संतोष में रहना सीखना चाहिए।...

16 दिसंबर को सूर्य के धनु राशि में आने से खरमास शुरू हो गया है। जो कि 14 जनवरी तक रहेगा। इसलिए अगले महीने की 14 तारीख तक धनु संक्रांति जनित खरमास दोष रहेगा। इस दौरान किसी भी तरह के मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। सूर्य के राशि बदलने से साल में 2 बार खरमास आता है। लगभग एक महीने के इस समय में भगवान की आराधना करने का विशेष महत्व है। धर्मग्रंथों में खर मास से जुड़े कुछ नियम बताए गए हैं। जिनका ध्यान रखना चाहिए।धर्मग्रंथों के अनुसार, इस माह में सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान, संध्या आदि करके भगवान का स्मरण करना चाहिए। खरमास के नियम पूरे करने चाहिए। इससे भगवान की कृपा बनी रहती है। इस दौरान सूर्य की पूजा करनी चाहिए। इनके साथ ही भगवान विष्णु की आराधना भी करनी चाहिए। खरमास के दौरान दान और मंत्र जप करने का महत्व है। इस माह में देवता, वेद, ब्राह्मण, गुरु, गाय, साधु-सन्यासियों की पूजा और सेवा करनी चाहिए।खरमास में क्या न करें1. खरमास के दौरान गृह प्रवेश और 15 संस्कार सहित अन्य मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए। इस दौरान 16 में से कुछ जरूरी संस्कार किए जा सकते हैं।2. मांस, शहद, चावल का मांड, उड़द, प्याज, लहसुन, नागरमोथा, छत्री, राई, नशे की चीजें, मसूर की दाल और दूषित अन्न का त्याग करना चाहिए।3. खरमास में जमीन पर सोने का विधान है। ठंड का मौसम होने से जमीन पर गद्दे डालकर इस नियम का पालन किया जा सकता है।4. पत्तल पर भोजन करना, दिन में एक वक्त खाना, रजस्वला स्त्री से दूर रहना और धर्मभ्रष्ट संस्कारहीन लोगों से संपर्क नहीं रखना चाहिए। 5. किसी का विरोध करने से भी बचना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। झूठ और लोगों की बुराई करने से भी बचना चाहिए।...

अगहन महीने के शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि पर भगवान विष्णु की विशेष पूजा करने की परंपरा ग्रंथों में बताई गई है। इस दिन भगवान विष्णु और उनके मत्स्य अवतार की पूजा करने से कभी न खत्म होने वाला पुण्य मिलता है। इसलिए इसे अखंड द्वादशी या मत्स्य द्वादशी भी कहते हैं।द्वादशी तिथि का महत्व-पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र का कहना है कि ग्रंथों में हर द्वादशी पर भगवान विष्णु की पूजा करने का महत्व बताया गया है। इस तिथि पर भगवान विष्णु के 12 नामों से पूजा करनी चाहिए। साथ ही ब्राह्मण भोजन या जरूरतमंद लोगों को अन्नदान करना चाहिए। ऐसा करने से हर तरह के दोष खत्म हो जाते हैं और कभी न खत्म होने वाला पुण्य मिलता है। पुराणों के मुताबिक इस तिथि के शुभ प्रभाव से सुख-समृद्धि बढ़ती है और मोक्ष मिलता है।नारद पुराण में सूर्य पूजा का महत्व
नारद पुराण में कहा गया है कि इस तिथि पर भगवान विष्णु के ही रूप द्वादश आदित्यों की पूजा करनी चाहिए। इस तिथि पर सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ स्नान करना चाहिए। इसके बाद उगते हुए सूरज को जल चढ़ाना चाहिए और द्वादश आदित्यों के नाम का जाप करना चाहिए। ऐसा करने से बीमारियां खत्म होने लगती है और उम्र भी बढ़ती है।वराह पुराण: कमल के फूल और चंदन से विष्णु पूजा-वराहपुराण में कहा गया है कि मार्गशीर्ष माह की द्वादशी पर भगवान विष्णु को खिले हुए पुष्पों की वनमाला चढ़ाने का बहुत महत्व है। साथ ही चंदन और कमल के फूलों से भगवान की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने वालों को भगवान विष्णु की बारह सालों तक पूजा करने का फल मिलता है।अग्नि पुराण के मुताबिक श्रीकृष्ण पूजा का महत्व-अग्निपुराण में अगहन महीने के शुक्लपक्ष की द्वादशी को श्रीकृष्ण पूजा का महत्व बताया गया है। साथ ही इस दिन नमक दान करने का भी विधान है। ऐसा करने से बीमारियां दूर होती हैं और उम्र बढ़ती है। इस द्वादशी पर श्रीकृष्ण पूजा से कई तरह के दोष खत्म हो जाते हैं।स्कंद पुराण: दूध से भगवान का अभिषेक-स्कन्दपुराण में बताया गया है कि अगहन महीने की द्वादशी तिथि पर विष्णुजी या उनके अन्य स्वरुप को स्नान कराने का महत्व बताया है। इस तिथि पर शंख के द्वारा दूध से श्रीकृष्ण का अभिषेक करना चाहिए। ऐसा करने से जाने-अनजाने में हुए पाप और दोष खत्म होते हैं।...

साल का आखिरी विवाह मुहूर्त 13 दिसंबर यानी आज है। फिर 16 दिसंबर को सूर्य देव धनु राशि में प्रवेश करेंगे और इसी के साथ धनुर्मास शुरू हो जाएगा। इसे खरमास भी कहा जाता है। ज्योतिष ग्रंथों के मुताबिक इस दौरान मांगलिक काम नहीं किए जा सकते। इसके बाद विवाह के लिए सीधे अगले साल जनवरी में मुहूर्त मिलेगा।16 दिसंबर से शुरू होगा खरमास-कि 15 दिसंबर को सूर्य रात तकरीबन 3.55 पर धनु राशि में प्रवेश करेंगे। इस कारण 16 दिसंबर से खरमास लग जाएगा। सूर्य मकर संक्रांति यानी 14 जनवरी तक बृहस्पति की राशि में रहेंगे। शास्त्रों के अनुसार जब कभी सूर्य गुरु की राशि धनु में गोचर करते हैं तो इस अवधि में किसी भी तरह के मंगल कार्यों की मनाही रहती है।अगले साल होली से पहले तक 10 मुहूर्त-अगले साल होली से पहले 10 विवाह मुहूर्त रहेंगे। होली से आठ दिन पहले होलाष्टक शुरू हो जाता है। इन दिनों में मांगलिक काम करने की मनाही होती है। होली के बाद 24 मार्च को बृहस्पति अस्त होने की वजह से मांगलिक कार्य बंद रहेंगे। इसके बाद सीधे संवत्सर 2079 यानी 17 अप्रैल को विवाह का मुहूर्त रहेगा।जनवरी: 15, 20, 23, 27 और 29 तारीख,फरवरी: 5, 11, 18, 21 और 22 तारीख,खरमास में मांगलिक कामों की मनाही क्यों...दरअसल, बृहस्पति मांगलिक कार्यों के कारक ग्रह हैं। सूर्य और देव गुरु बृहस्पति एक-दूसरे के शत्रु ग्रह माने गए हैं। जब कभी ये दोनों ग्रह एक-दूसरे के मार्ग में आते हैं तो एक-दूसरे को ढंकने का प्रयास करते हैं। विद्वानों का मत है कि गुरु के प्रभाव में आने मात्र से सूर्य मलीन हो जाते हैं और 16 दिसंबर को वे गुरु के स्वामित्व वाली धनु राशि में प्रवेश करेंगे। ऐसे में इस अवधि के दौरान शुभ कार्य नहीं किए जा सकेंगे।...

​10 दिसंबर, शुक्रवार को नंदा सप्तमी व्रत किया जाता है। नारद पुराण में इस दिन भगवान सूर्य के लिए 'मित्र व्रत' करने का विधान बताया गया है। इस तिथि पर उगते सूरज को जल चढ़ाने के साथ ही दिनभर व्रत रखकर ब्राह्मण भोजन करवाना चाहिए। ऐसा करने से बीमारियों से मुक्ति मिलती है। उम्र बढ़ती है और हर तरह के दोष भी खत्म हो जाते हैं। इस व्रत को करने से आत्मविश्वास बढ़ता है और सफलता मिलती है।अदिति के गर्भ से मित्र रूप में प्रकट हुए सूर्य-नारद पुराण में बताया गया है कि कश्यप ऋषि के तेज और अदिति के गर्भ से मित्र नाम के सूर्य प्रकट हुए। जो असल में भगवान विष्णु की दाईं आंख की शक्ति ही थी। इसलिए इस तिथि में शास्त्रोक्त विधि से उनका पूजन करना चाहिए। सूर्य के मित्र रूप की पूजा करके सात ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए। फिर उन्हें श्रद्धानुसार दक्षिणा देनी चाहिए। इसके बाद खुद भोजन करें। इस तरह व्रत करने से मनोकामना पूरी होती है।सप्तमी तिथि के स्वामी सूर्यज्योतिष ग्रंथों में सप्तमी तिथि के स्वामी सूर्य बताए गए हैं। इसलिए शुक्लपक्ष की सप्तमी पर उगते हुए सूरज को जल चढ़ाने की परंपरा पुराणों में बताई गई है। भविष्य पुराण में भी श्रीकृष्ण के पुत्र सांब द्वारा सूर्य पूजा करने का जिक्र है। इस सूर्य पूजा से सांब को दिव्य ज्ञान मिला। श्रीकृष्ण ने भी खुद सूर्य पूजा का जिक्र किया है।उगते सूरज को जल चढ़ाने की परंपरा-अगहन महीने की सप्तमी तिथि पर सूर्योदय से पहले उठकर उगते सूरज को जल चढ़ाना चाहिए। दिनभर श्रद्धानुसार दान, व्रत और ब्राह्मण भोजन करवाना चाहिए। इस दिन भगवान सूर्य के 12 नामों का जाप करते हुए पूजा करने का विधान है।सप्तमी पर तांबे के लोटे में जल, चावल और लाल फूल डालकर उगते हुए सूरज को जल चढ़ाएं। जल चढ़ाते वक्त ऊँ घृणि सूर्याय नम: मंत्र बोलते हुए शक्ति, बुद्धि और अच्छी सेहत की कामना करें। जल चढ़ाने के बाद धूप और दीप से सूर्य देव की पूजा करें। इस तिथि पर तांबे का बर्तन, पीले या लाल कपड़े, गेहूं, गुड़, माणिक्य, लाल चंदन का दान करें। इस दिन व्रत करें। एक समय फलाहार कर सकते हैं लेकिन दिनभर नमक न खाएं।...

शनिवार, 4 दिसंबर को मंगल ग्रह अपनी ही राशि वृश्चिक में आ गया है। इस राशि में सूर्य, बुध और केतु पहले से ही मौजूद थे। अब मंगल के आने से चतुर्ग्रही योग बन गया है। 10 दिसंबर को बुध के वृश्चिक राशि से निकल जाने पर ये योग भंग हो जाएगा। इसके बाद 16 तारीख को सूर्य के धनु राशि में जाने से 16 जनवरी 2022 तक मंगल और केतु का ज्वालामुखी योग बना रहेगा।सूर्य जब 16 दिसंबर को धनु राशि में प्रवेश करेंगे, तो महिलाओं और व्यापार जगत के लिए आर्थिक लाभ के मौके मिलेंगे। बुध के इस राशि में रहने से किसानों की हालत और शेयर मार्केट में सुधार होगा। हालांकि अनाज और अन्य चीजों की कीमतें बढ़ सकती हैं।मंगल के चलते इस अवधि में सेना और पुलिस विभाग से जुड़े हादसे हो सकते हैं। इनसे जुड़ी घटनाएं या बड़े फैसले हो सकते हैं। सेना या सुरक्षा बलों को लेकर जनता में असंतुष्टि या गुस्सा रहेगा। लोगों को अपने काम पूरा करने के लिए भागदौड़ अधिक करना पड़ेगी। राजनीतिक दलों में आपसी विवाद बढ़ेंगे। आरोप-प्रत्यारोप का क्रम जनवरी के पहले पखवाड़े तक चरम पर पहुंचता दिखेगा। साथ ही पड़ोसी देशों के साथ सीमा विवाद भी हो सकते हैं। मंगल अपनी ही राशि में वृश्चिक में केतु के साथ है। इससे ज्वालामुखी योग बन रहा है। इनके साथ सूर्य भी होने से मंगल उग्रता और बढ़ेगी। जिससे प्राकृतिक प्रकोप एवं रक्त से संबंधित बीमारियों को बढ़ावा देगी, संक्रमण बढ़ने के भी संकेत हैं। लाल वस्तुओं के भाव भी बढ़ेंगे। वर्तमान ग्रहों की स्थितियां मौसम में भी उतार-चढ़ाव लाएंगी। वृश्चिक राशि जल तत्व की राशि है। इसलिए नौसेना से जुड़े बड़े फैसले, विवाद या दुर्घटना होने की आशंका है।...

बुधवार से अंग्रेजी कैलेंडर का आखिरी महीना दिसंबर शुरू हो रहा है। इसी महीने हिन्दी पंचांग का अगहन महीना रहेगा और पौष मास की शुरुआत भी होगी। अगहन महीने में नदियों में स्नान करने और शंख पूजा की परंपरा है। दिसंबर के पहले सप्ताह में साल का आखिरी ग्रहण भी होगा, लेकिन ये भारत में दिखाई नहीं देगा। इस महीने में श्रीराम-सीता विवाह पर्व, धनु संक्रांति और खरमास भी रहेगा। जानिए दिसंबर महीने में कब कौन से खास पर्व आ रहे हैं...गुरुवार, 2 दिसंबर को प्रदोष व्रत और शिव चतुर्दशी पर्व है। इस दिन व्रत किया जाता है। शाम को प्रदोष काल और मध्यरात्रि में भगवान शिव-पार्वती की विशेष पूजा की जाएगी।शनिवार, 4 दिसंबर को मार्गशीर्ष महीने की अमावस्या है। इस पर्व पर पितरों के लिए श्राद्ध और पूजन करने की परंपरा है। साथ ही इस दिन साल का अंतिम सूर्य ग्रहण होगा। ये ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा। इस कारण यहां इसका सूतक नहीं रहेगा। इस दिन शनैश्चरी अमावस्या भी रहेगी।बुधवार, 8 दिसंबर को विवाह पंचमी है। त्रेतायुग में इसी तिथि पर श्रीराम और सीता का विवाह हुआ था। इस दिन श्रीराम और सीता की विशेष पूजा करें। रामायण का पाठ करें।मंगलवार, 14 दिसंबर को मोक्षदा एकादशी है। इस दिन व्रत के साथ श्रीकृष्ण और भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है। साथ ही इस दिन गीता जयंती पर्व भी मनाया जाता है। इस पर्व पर नदी में स्नान करने और दान-पुण्य करने की परंपरा है।गुरुवार, 16 दिसंबर को सूर्य धनु राशि में प्रवेश करेगा। इसे धनु संक्रांति कहा जाता है। इस दिन नदी में स्नान करने और दान-पुण्य करने की परंपरा है। इस दिन से खरमास शुरू हो जाएगा। सूर्य के धनु राशि में आने से खरमास शुरू होता है। जो कि 14 जनवरी तक रहेगा। इस माह में विवाह आदि मांगलिक कर्म नहीं किए जाते हैं।शनिवार, 18 दिसंबर को दत्तात्रेय जयंती है। इस तिथि पर ऋषि अत्रि और सति अनुसुया के पुत्र दत्तात्रेय का जन्म हुआ था। त्रिदेवों का अंश होने से शैव और वैष्णव दोनों ही भगवान दत्तात्रेय की पूजा करते हैं।रविवार, 19 दिसंबर को मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा तिथि है। ये इस हिंदी महीने का आखिरी दिन रहेगा। अगहन महीने के इस पूर्णिमा पर्व पर स्नान-दान और पूजा-पाठ करने की परंपरा है।सोमवार, 20 दिसंबर हिंदी कैलेंडर का दसवां महीना यानी पौष मास शुरू हो जाएगा। इस महीने में भगवान सूर्य की विशेष पूजा करने की परंपरा है। ग्रंथों के मुताबिक पौष महीने में किए गए स्नान-दान का कई गुना पुण्य फल मिलता है।...

हिन्दू केलैंडर के अनुसार मार्गशीर्ष माह में भगवान श्रीहिरि विष्णु और उनके आठवें रूप श्रीकृष्‍ण की पूजा का खास महत्व रहता है। यह माह सभी तरह के संकट दूर करने वाला माह है। 19 नवंबर से मार्गशीर्ष मास प्रारंभ हो चुका है। यह माह बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। पुराणों में इस माह की महिमा का वर्णन मिलता है।1. इस माह में उपवास करने से मनुष्‍य दूसरे जन्म में रोग और शोक रहित रहता है।2. मार्गशीर्ष शुक्ल 12 को उपवास प्रारंभ कर प्रति मास की द्वादशी को उपवास करते हुए कार्तिक की द्वादशी को पूरा करना चाहिए। प्रति द्वादशी को भगवान विष्णु के केशव से दामोदर तक 12 नामों में से एक-एक मास तक उनका पूजन करना चाहिए। इससे पूजक 'जातिस्मर' पूर्व जन्म की घटनाओं को स्मरण रखने वाला हो जाता है तथा उस लोक को पहुंच जाता है, जहां फिर से संसार में लौटने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।3. महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है कि जो मार्गशीर्ष माह में एक समय भोजन करके अपना दिन बिताता है और अपनी शक्ति के साथ दान पुण्य करता है वह समस्त पापों को नष्‍ट कर देता है।4. इस माह में सभी गुरुवार को श्रीहरि विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की विशेष पूजा करनी चाहिए। कहते हैं कि इस माह में माता लक्ष्मी धरती पर आती हैं और वह उस घर में जाती हैं जहां पर उनकी विधिवत पूजा की जा रही है।5. इस माह में दान पुण्य के साथ ही नदी स्नान करने का खासा महत्व है। अगर इस महीने किसी पवित्र नदी में स्नान का अवसर मिले तो इसे न गंवाएं, अवश्य ही नदी में स्नान करें।6. शिव पुराण के अनुसार मार्गशीर्ष में चांदी का दान करने से पुरुषत्व की वृद्धि होती है।7. शिव पुराण की विश्‍वेश्‍वर संहित अनुसार केवल अन्नदान करने से सभी तरह के अभिष्ट फल की प्राप्ति होती है।
8. इस महीने में नित्य श्रीमद्‍भगवतगीता का पाठ करें। भगवान श्री कृष्ण की उपासना अधिक से अधिक समय तक करें। या, पूरे महीने ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का निरंतर जाप करें। श्री कृष्ण को तुलसी के पत्तों का भोग लगाकर उसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण करें।9. इस महीने से संध्याकाल की उपासना अनिवार्य हो जाती है।
10. मार्गशीर्ष के महीने में तेल की मालिश बहुत उत्तम होती है।11. इस महीने से मोटे परिधानों का उपयोग भी शुरू कर देना चाहिए।12. इस महीने से चिकनाई वाले खाद्य पदार्थों का सेवन शुरू कर देना चाहिए।...

हमारे सनातन धर्म में प्रत्येक व्यक्ति के लिए यथासामर्थ्य पूजा करना अनिवार्य बताया गया है। शास्त्रों में पूजा करने के विविध रूप व विधान बताए गए हैं। जिनके माध्यम से श्रद्धालु अपने इष्टदेव की पूजा कर उनके श्रीचरणों में अपनी श्रद्धा ज्ञापित कर सकता है।पूजा के यह विविध प्रकार पंचोपचार, दशोपचार, षोडशोपचार पूजन कहे जाते हैं। इन सभी प्रकारों में सर्वश्रेष्ठ प्रकार षोडषोपचार पूजन विधि का माना गया है। षोडषोपचार पूजन विधि में सोलह विविध उपचारों से भगवान की पूजा की जाती है जिसमें अंतिम उपचार षाष्टांग दंडवत प्रणाम माना गया है। दंडवत प्रणाम की हमारी पूजा विधि में सर्वाधिक मान्यता होती है।दंडवत प्रणाम को सभी प्रकार के प्रणामों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है किंतु क्या आप यह जानते हैं कि हमारे शास्त्रों में स्त्रियों को दंडवत प्रणाम करने का सर्वथा निषेध है। शास्त्रानुसार स्त्रियों को कभी भी किसी के भी सम्मुख दंडवत प्रणाम नहीं करना चाहिए। आजकल अनेक स्थानों पर देखने में आता है कि स्त्रियां भी मंदिरों, पूजा स्थलों व परिक्रमा आदि में षाष्टांग दंडवत प्रणाम करती हैं, जो शास्त्रानुसार अनुचित है। ऐसा क्यों है इसका समाधान हमें 'धर्मसिन्धु' नामक ग्रंथ में मिलता है, जिसमें स्पष्ट निर्देश है-'ब्राह्मणस्य गुदं शंखं शालिग्रामं च पुस्तकम्।वसुन्धरा न सहते कामिनी कुच मर्दनं।।'- अर्थात् ब्राह्मणों का पृष्ठभाग, शंख, शालिग्राम, धर्मग्रंथ (पुस्तक) एवं स्त्रियों का वक्षस्थल (स्तन) यदि सीधे भूमि (बिना आसन) का स्पर्श करते हैं तो पृथ्वी इस भार को सहन नहीं कर सकती है। इस असहनीय भार को सहने के कारण वह इस भार को डालने वाले से उसकी श्री (अष्ट-लक्ष्मियों) का हरण कर लेती है।ब्राह्मणों का पृष्ठभाग, शंख, शालिग्राम, धर्मग्रंथ (पुस्तक) एवं स्त्रियों के वक्षस्थल को पृथ्वी पर सीधे स्पर्श कराने वाले की अष्ट-लक्ष्मियों क्षय होने लगता है। अत: शास्त्र के इस निर्देशानुसार स्त्रियों को दंडवत प्रणाम कभी नहीं करना चाहिए। स्त्रियों को दंडवत प्रणाम के स्थान पर घुटनों के बल बैठकर अपना मस्तक भूमि से लगाकर ही प्रणाम करना चाहिए एवं ब्राह्मणों, शंख, शालिग्राम भगवान को, धर्मग्रंथ (पुस्तक) को सदैव उनके यथोचित आसन पर ही विराजमान कराना चाहिए।...

नमस्कार! 'शिक्षा जगत की आवाज ' के मंदिर मिस्ट्री चैनल में आपका स्वागत है। इस चैनल में हम आपको मंदिरों के अनसुलझे रहस्यों के बारे में बताते रहे हैं। इस बार हम एक ऐसे रहस्यमयी मंदिर के बारे में बताएंगे जिसके रहस्य को जानकार आपका भी वहां जाने का मन करेगा। यह मंदिर मध्यप्रदेश के शाजापुर के बोलाई गांव में स्थित है, जिसे ‘सिद्धवीर खेड़ापति हनुमान मंदिर’ कहा जाता है। आओ जानते हैं कि क्या है इस मंदिर का रहस्य?ट्रेन की स्पीड हो जाती है कम : यह हनुमान मंदिर रतलाम-भोपाल रेलवे ट्रैक के बीच बोलाई स्टेशन से करीब 1 किमी दूर है। कहा जाता है कि मंदिर के सामने से निकनले से पहले ट्रेन की स्पीड कम हो जाती है। स्थानीय लोगों का कहना है कि वर्षों पहले रेलवे ट्रैक पर दो मालगाड़ी आपस में टकरा गईं थी। बाद में दोनों गाड़ियों के पायलट ने बताया था कि उन्हें घटना के कुछ देर पहले ही इस अनहोनी का पूर्वाभाष हो गया था। उन्हें ऐसा लगा था मानों कोई उन्हें ट्रेन की रफ्तार कम करने के लिए कह रहा हो। लेकिन उन्होंने रफ्तार को कम नहीं किया और इस कारण टक्कर हो गई। तभी से यहां से गुजरने वाली ट्रेनों की रफ्तार कम की जाने लगी। कहा जाता है कि यदि कोई ड्राइवर इसे नजरअंदाज करता है तो ट्रेन की स्पीड अपने आप ही कम हो जाती है।भविष्य बताते हैं हनुमानजी : स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां जो भी आता है उसे उसके जीवन में क्या घटेगा उसका पूर्वाभाष हो जाता है। कहते हैं कि मंदिर में विराजमान हनुमानजी भक्तों को उनका अच्‍छा या बुरा भविष्य बता देते हैं जिसके चलते भक्त सतर्क हो जाते हैं। कई लोगों का दावा है कि उन्हें अपने भविष्‍य का अहसास हुआ है। इस अजीब रहस्य के कारण इस मंदिर और यहां के हनुमानजी के प्रति लोगों की आस्था बढ़ गई है और यहां पर दूर दूर से लोग हनुमानजी के दर्शन करने आते हैं।300 साल पुराना है मंदिर : कहते हैं कि यह मंदिर करीब 300 साल पुराना है। यहां पर हनुमानजी भगवान गणेशजी के साथ विराजमान हैं। कहते हैं कि मंदिर का निर्माण ठा. देवीसिंह ने करवाया था। यहां वर्ष 1959 में संत कमलनयन त्यागी ने अपने गृहस्थ जीवन को त्याग कर उक्त स्थान को अपनी तपोभूमि बनाया और यहां पर उन्होंने 24 वर्षों तक कड़ी तपस्या कर सिद्धियां प्राप्त की थी। इसलिए यह मंदिर बहुत ही सिद्ध मंदिर माना जाता है।आपको कैसी लगी हमारी यह जानकारी? हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं और इसी तरह की रहस्यमयी बातों को जानने के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब जरूर करें और बेल आयकॉन के बटन को दबाना न भूलें ताकि आपको नोटिफिकेशन मिल सके।- धन्यवाद।...

​ इस माह की 20 बड़ी विशेषाएं-1. अगहन मास को मार्गशीर्ष Margashirsha कहने के पीछे भी कई तर्क हैं। भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अनेक स्वरूपों में व अनेक नामों से की जाती है। इन्हीं स्वरूपों में से एक मार्गशीर्ष भी श्रीकृष्ण का रूप है।2. सत युग में देवों ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष प्रारंभ किया।
3. मार्गशीर्ष शुक्ल 12 को उपवास प्रारंभ कर प्रति मास की द्वादशी को उपवास करते हुए कार्तिक की द्वादशी को पूरा करना चाहिए। प्रति द्वादशी को भगवान विष्णु के केशव से दामोदर तक 12 नामों में से एक-एक मास तक उनका पूजन करना चाहिए। इससे पूजक 'जातिस्मर' पूर्व जन्म की घटनाओं को स्मरण रखने वाला हो जाता है तथा उस लोक को पहुंच जाता है, जहां फिर से संसार में लौटने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।4. मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को चंद्रमा की अवश्य ही पूजा की जानी चाहिए, क्योंकि इसी दिन चंद्रमा को सुधा से सिंचित किया गया था। इस दिन माता, बहन, पुत्री और परिवार की अन्य स्त्रियों को एक-एक जोड़ा वस्त्र प्रदान कर सम्मानित करना चाहिए। इस मास में नृत्य-गीतादि का आयोजन कर उत्सव भी किया जाना चाहिए।5. मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को ही 'दत्तात्रेय जयंती' मनाई जाती है।
6. मार्गशीर्ष मास में इन 3 पावन पाठ की बहुत महिमा है। 1. विष्णु सहस्त्रनाम, 2. भगवद्‍गीता और 3. गजेन्द्र मोक्ष। इन्हें दिन में 2-3 बार अवश्य पढ़ना चाहिए।
7. इस मास में 'श्रीमद्‍भागवत' ग्रंथ को देखने भर की विशेष महिमा है। स्कंद पुराण में लिखा है- घर में अगर भागवत हो तो अगहन मास में दिन में एक बार उसको प्रणाम करना चाहिए।8. इस मास में अपने गुरु को, इष्ट को ॐ दामोदराय नमः कहते हुए प्रणाम करने से जीवन के अवरोध समाप्त होते हैं।9. इस माह में शंख में तीर्थ का पानी भरें और घर में जो पूजा का स्थान है उसमें भगवान के ऊपर से शंख मंत्र बोलते हुए घुमाएं, बाद में यह जल घर की दीवारों पर छीटें। इससे घर में शुद्धि बढ़ती है, शांति आती है, क्लेश दूर होते हैं।10. इसी मास में कश्यप ऋषि ने सुंदर कश्मीर प्रदेश की रचना की। इसी मास में महोत्सवों का आयोजन होना चाहिए। यह अत्यं‍त शुभ होता है।11. दिन दिनों मौसम में बदलाव हो जाता है और शीतलहर आरंभ हो जाती है। अत: इस माह में गरम कपड़े, कंबल, मौसमी फल, शैया, भोजन और अन्न दान का विशेष महत्व है।12. इस माह में पूजा संबंधी सामग्री, जैसे- आसन, तुलसी की माला, चंदन, पूजा की प्रतिमा, मोर पंख, जल कलश, आचमनी, पीतांबर, दीपक आदि का दान करना अतिशुभ माना गया है।13. इस माह भगवान श्री कृष्ण (Lord Krishna) का माह होने के कारण उनका पूजन-अर्चना करना अतिलाभकारी है तथा यह माह संकटों से मुक्ति देने वाला माना गया है, क्योंकि स्वयं श्रीकृष्ण जी ने मार्गशीर्ष माह को अपना स्वरूप बताया है।14. इस माह का संबंध मृगशिरा नक्षत्र से होने के कारण इस माह नक्षत्र के अनुसार पूजन-पाठ करने से जीवन में शुभता आती है।15. अगहन माह में भगवान श्री कृष्ण की पूजा अनेक स्वरूपों और कई नामों से की जाती है। यह माह में श्रद्धा, भक्ति और पुण्य का महीना माना जाता है, अत: इस माह शुभ कर्म या पुण्य कर्मों का संचय करके समस्त सुखों की प्राप्ति की जा सकती है।16. इस माह अथवा मार्गशीर्ष माह के गुरुवार के दिन अगर महिलाएं हर घर के मुख्य द्वार से लेकर आंगन तथा पूजा स्थल तक चावल आटे के घोल से आकर्षक अल्पनाएं बनाती है तो देवी लक्ष्मी उन्हें अपार संपत्ति का वरदान देती है।17. मार्गशीर्ष माह में प्रतिदिन 'ॐ दामोदराय नमः' मंत्र का जाप करने मात्र से मनुष्य के सभी प्रकार के कष्ट दूर होकर समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है।18. अगहन महीने में आने वाले गुरुवार को अगर सुहागिन महिलाएं बुधवार की रात घर की सफाई के बाद पूरे मनोभाव से देवी लक्ष्मी की उपासना करें तो घर में धन लक्ष्मी देवी स्थायी निवास करती हैं।19. भगवान कृष्ण ने मार्गशीर्ष मास का महत्व अपने गोपियों को बतलाया था तथा कहा था कि इस माह यमुना स्नान से मैं सहज ही सभी को प्राप्त हो जाऊंगा। अत: इस पूरे माह में नदी स्नान का विशेष महत्व शास्त्रों में बताया गया है।20. मार्गशीर्ष मास में नदी स्नान के समय तुलसी के जड़ से मिट्टी लेकर और तुलसी के पत्तों से युक्त स्नान करने की मान्यता है।...

भारतीय सनातन धर्म- संस्कृति के कालजयी अतीत में दृष्टिपात करने पर हम पाते हैं कि सम्पूर्ण विश्व में जागृति एवं ईश्वरीय शक्ति चेतना के प्रसार के लिए महापुरुषों, सन्त-महात्माओं के प्रादुर्भाव के साथ- साथ स्वयं भगवान ने इस पावन पुण्य भूमि में समय-समय पर अवतीर्ण होकर सम्पूर्ण सृष्टि के उत्थान एवं जनकल्याण की प्रतिष्ठा कर समन्वय स्थापित किया है।हमारी सनातन संस्कृति की यही विशेषता रही है कि जीवन दर्शन में स्थूल एवं सूक्ष्म की व्याख्या करने के लिए भौतिक ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि की अध्यात्मिक उन्नति का पथ प्रशस्त किया है।इन्हीं तारतम्यों में विराट सनातन संस्कृति की गोद से जैन एवं बौध्द पन्थ का प्रादुर्भाव होने के साथ ही 'सिक्ख पन्थ' की ज्योति को आलोकित किया है। सामाजिक-आर्थिक, लौकिक-पारलौकिक एवं आत्मिक परिशुद्धता को अपने जीवन की सार्वभौमिक प्रयोगात्मक सिध्दि के माध्यम से समन्वय-शान्ति-सौहार्द का पल्लवन करने का दर्शन देने वाले महान सन्त गुरूनानक देव जी महाराज का जन्म सन् 1469 में कार्तिक पूर्णिमा को तलवंडी ननकाना साहब (वर्तमान पाकिस्तान) में हिन्दू परिवार में हुआ था।गुरूनानक देव को बाल्यकाल से ही आध्यात्मिक, दयाभाव एवं प्रेमानुभूति, समरसता की प्रवृत्ति एवं अभिरुचि ने उन्हें 'आत्मा से परमात्मा के मिलन' की ओर प्रेरित किया जिससे उनका जीवन मनुष्य मात्र ही नहीं बल्कि जीवकल्याण के लिए समर्पित हो गया।उन्होंने सामाजिक कर्त्तव्यों का निर्वहन करते हुए गृहस्थ धर्म के पालन का भी दायित्व संभालता और समाज के सर्जनात्मक पक्ष को मजबूती प्रदान करने की बात को स्थापित कर एक अलग दृष्टिकोण दिया।उनका जन्म एक ऐसे समय में हुआ था जब सम्पूर्ण भारतीय समाज, सामाजिक विसंगतियों एवं कुरीतियों से घिरा होने के कारण अपने धर्म एवं सामाजिक उन्नति से कट सा गया था। चूंकि उस दौर में भारतीय समाज बाहर से आए बर्बर, अरबी इस्लामिक आक्रान्ताओं की क्रूरतम त्रासदी में परतन्त्रता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था, जिससे हीनग्रस्त भावना एवं भय का वातावरण हर क्षण बना रहता था। इस कारण सम्पूर्ण सनातन भारतीय समाज जीवन एवं मृत्यु के बीच की लड़ाई से जूझ रहा था।गुरू नानक जी के जन्म से पूर्व एवं उनके जीवनकाल के वक्त बर्बर आतंकी क्रूर लुटेरे इस्लामिक आक्रान्ताओं द्वारा भारतीय संस्कृति को नष्ट करने के लिए जबरन धर्मांतरण करवाया जाता था। इतना ही नहीं सनातनी परम्पराओं के पालन पर प्रतिबन्ध के साथ ही अनेकों अन्तरात्मा को कंपा देने वाले अत्याचारों की सुनामी आ गई थी, जिसकी वजह से भारतीय संस्कृति की परस्पर समानता एवं बन्धुत्व की धार्मिक एवं सामाजिक शैली खण्डित होकर दूषित सी हो गई थी।इन्हीं कारणों के फलस्वरूप सनातन हिन्दू समाज में कुरीतियां एवं सामाजिक विद्रूपताओं की उत्पत्ति हुई जिससे संगठित समाज में भेदभाव की विभिन्न दरारें बनीं और सनातन हिन्दू समाज अन्दर - अन्दर ही खोखला होने लगा। गुरूनानक जी ईश्वरीय प्रेरणा के माध्यम से गहन चिन्तन करते हुए इन समस्याओं के निदान हेतु उपायों एवं समाज को सशक्त करने के लिए तत्पर रहते थे।इन्हीं विचारों को समाज में ढालने के लिए उन्होंने ईश्वरीय सत्ता के प्रति आस्था एवं धर्मपारायणता का संदेश प्रसारित करने का ध्वज उठाकर जनजागृति एवं समाज सशक्तिकरण के लिए चल पड़े। इसके लिए सर्वप्रथम उन्होंने जातिगत भेदभावों को दूर करने एवं धर्म शास्त्रों के अध्ययन-अध्यापन का अभियान व्यापक स्तर पर शुभारंभ किया। उनके इस विचार के पीछे निश्चित ही भारत के आध्यात्मिक उत्कर्ष व स्वत्व बोध की दूरदृष्टि रही होगी, जिससे सुप्त समाज पुनः जागृत होकर अपनी आत्मशक्ति को पहचाने और सशक्त होकर अत्याचार का प्रतिकार और दमन कर सके।गुरूनानक जी की धर्मपरायणता व आत्मबोध को जागृत करने के पीछे कुछ दृष्टि ऐसी ही रही होगी कि 'यदि भारतीय सनातन संस्कृति को अक्षुण्ण रखना है तो समाज को सशक्त करना होगा। इसके लिए सामाजिक भेदभावों को दूर करते हुए समाज की उन्नति एवं संगठन हेतु वैचारिक तौर पर सम्पूर्ण सनातन हिन्दू समाज को दृढ़ता प्रदान करने के कार्य करने होंगे, क्योंकि वैचारिक अनुष्ठान के बिना संगठित होने का भाव अपनी उत्कृष्टता को प्राप्त नहीं कर पाएगा।गुरूनानक देव ने समाज को अपने दूरदर्शी दृष्टिकोण एवं भविष्यदृष्टा की तरह देखा और उसके हिसाब से सरलतम तौर-तरीकों के माध्यम से अलख जगाने का कार्य किया। वे एक सन्त महात्मा तो थे ही इसके साथ ही स्पष्ट वक्ता, कवि एवं अपनी मधुर वाणी के द्वारा समाज को प्रेरित करते रहते थे। सामाजिक एकसूत्रता के उदाहरण तौर पर मुखवाणी 'जपुजी साहिब' में कहते हैं,‘नीचा अंदर नीच जात, नीची हूं अतिनीचनानक तिनके संगी साथ, वडियां सिऊ कियां रीस’अर्थात् नीच जाति में भी जो सबसे ज्यादा नीच है, नानक उसके साथ है, बड़े लोगों के साथ मेरा क्या काम।गुरूनानक देव जी ने समाज की दु:खती नस को पकड़कर उसका उपचार करने का कार्य अपने उपदेशों, रचनाकर्म एवं सामाजिक कार्यों के माध्यम से किया है। उन्होंने लंगर की अनूठी व्यवस्था की शुरुआत कर ‘एक संगत-एक पंगत’ के द्वारा सामाजिक सद्भाव एवं बराबरी का बुनियादी ढांचा तैयार किया जो कि सामाजिक ऐक्यता का आधार बिन्दु बना।उन्होंने अपनी धार्मिक यात्राओं के माध्यम से विभिन्न धर्मों के संत-महात्माओं से विचार-विमर्श एवं धार्मिक स्थलों का भ्रमण कर सभी में एकता के बिन्दु अर्थात् 'ईश्वर की आराधना' की एकरूपता को सिध्द किया। गुरूनानक देव का इन यात्राओं के पीछे स्पष्ट दृष्टिकोण यही था कि अधिक से अधिक लोगों से मिलना-जुलना, उनकी समस्याओं को सुनना एवं सामाजिक एकता को स्थापित करना जो कि परस्पर भावनात्मक जुड़ाव एवं वैचारिक बोध के माध्यम से ही संभव हो सकती थी। उनकी धार्मिक यात्राओं में एक मुस्लिम सहभागी मर्दाना बना जो एकेश्वरवाद की खोज में उनके साथ अपने अंतिम समय तक साथ चलता रहा।गुरूनानक देव ने मूर्ति -पूजा, तंत्र-टोटके एवं तत्कालीन समय में व्याप्त बुराइयों का पुरजोर विरोध करते हुए समाधानमूलक नई दिशा दी, जिससे समाज में नवचेतना का सूत्रपात हुआ। उन्होंने विभिन्न संस्कृतियों की अच्छाइयों को ग्रहण कर अपने संदेशों के माध्यम से आध्यात्मिक -सामाजिक-राजनैतिक उपदेशों के द्वारा कार्यान्वयन की परम्परा को आधार देकर समरसता को भारतीय सीमाओं तक ही नहीं बल्कि मुस्लिम पवित्र तीर्थों मक्का एवं बगदाद तक अपनी यात्राओं के माध्यम से प्रसारित किया। उनके विषय में एक कहानी प्रसिद्ध है जब मक्का में काबा की तरफ पैर कर लेटने पर मुस्लिमों ने उनसे नाराजगी व्यक्त की, तो उन्होंने कहा जिधर काबा न हो उस ओर पैर कर दो।...

हिंदी पंचांग कैलेंडर के अनुसार कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा तिथि को कार्तिक मास की समाप्ति हो जाती है तथा नए हिंदू माह की शुरुआत होती है। इस वर्ष 20 नवंबर 2021, दिन शनिवार से अगहन या मार्गशीर्ष माह का शुभारंभ हो रहा है और इस माह की समाप्ति रविवार, 19 दिसंबर को मार्गशीर्ष पूर्णिमा के साथ होगी।
कैलेंडर के अनुसार इस महीने में कई प्रमुख व्रत और त्योहार मनाए जाएंगे। आइए जानते हैं मार्गशीर्ष मास-के व्रत, पर्व तथा दिवस के बारे में जानकारी-
* 20 नवंबर 2021- रोहिणी व्रत, भेडाघाट मेला, जबलपुर, कार्तिक व्रत का पारणा। * 22 नवंबर 2021- झलकारी बाई जयंती, दुर्गादास राठौर दिवस।* 23 नवंबर 2021- संकष्टी गणेश चतुर्थी (चंद्रोदय रात्रि 8.23 पर), सत्य सांईं जन्मदिवस।* 24 नवंबर 2021- गुरु तेग बहादुर दिवस।* 25 नवंबर 2021- सैयदना साहब जयंती।
* 27 नवंबर 2021- कालाष्टमी।* 28 नवंबर 2021- ज्योतिराव फुले पुण्यतिथि।* 30 नवंबर 2021- उत्पन्ना एकादशी व्रत।* 1 दिसंबर 2021- एड्स जागरूकता दिवस।* 2 दिसंबर 2021- प्रदोष व्रत, मासिक शिवरात्रि, शिव चतुर्दशी।* 3 दिसंबर 2021- भोपाल गैस त्रासदी दिवस। राजेंद्र प्रसाद जयंती, विश्‍व दिव्यांग दिवस।
* 4 दिसंबर 2021- अमावस्या, सूर्य ग्रहण, जल सेना दिवस।* 5 दिसंबर 2021- चंद्र दर्शन। योगी अरविंद दिवस। * 6 दिसंबर 2021- जमादि उल्लावल मास का प्रारंभ, अंबेडकर पुण्यतिथि।* 7 दिसंबर 2021- विनायक चतुर्थी, झंडा दिवस।* 8 दिसंबर 2021- विवाह पंचमी, नाग दिवाली, श्रीराम विवाहो‍त्सव। * 9 दिसंबर 2021- चंपा, स्कंद षष्ठी, नरसी मेहता जयंती।* 10 दिसंबर 2021- नंदा सप्तमी, संत तारण तरण जयंती।* 11 दिसंबर 2021- मासिक दुर्गाष्टमी, ओशो महोत्सव
* 12 दिसंबर 2021- महानंदा नवमी * 13 दिसंबर 2021- पंचक (रात्रि अंत 4.56 तक) * 14 दिसंबर 2021- गीता जयंती, मोक्षदा एकादशी, मौन एकादशी, ऊर्जा बचत दिवस।* 15 दिसंबर 2021- मत्स्य द्वादशी, वल्लभ भाई पटेल दिवस।* 16 दिसंबर 2021- प्रदोष व्रत, सूर्य धनु संक्रांति, मासिक कार्तिगाई दीपम, अनंग त्रयोदशी व्रत़, दादा धूनीवाले नि.दिवस, खरमास शुरू।* 17 दिसंबर 2021- सौर पौष मा. प्रारंभ।* 18 दिसंबर 2021- पूर्णिमा व्रत, भगवान दत्तात्रेय ज., रोहिणी व्रत, गुरु घासीदास जयंती।* 19 दिसंबर 2021- मार्गशीर्ष पूर्णिमा, स्ना.दा. पूर्णिमा, अन्नपूर्णा जयंती, त्रिपुर भैरवी जयंती, गोवा मुक्ति दिवस।...

कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुण्ठ चतुर्दशी कहते हैं। वैसे तो चतुर्दशी तिथि के दिन भगवान शिव की पूजा होती है परंतु वैकुंठ चतुर्दशी के दिन शिव और विष्णु दोनों की एक साथ पूजा करने का प्रलन है। इस बैकुंठ चतर्दशी 17 नवंबर 2021 बुधवार के दिन1. इस दिन भगवान शिव और विष्णु की पूजा करने से दोनों देव प्रसन्न होते हैं।2. इस दिन पूजा, पाठ जप, एवं व्रत करने से श्रद्धालु को बैकुंठ की प्राप्ति होती है। वैकुंठ चतुर्दशी की कथा पढ़ने से 14000 पाप कर्मों का दोष मिट जाता है।3. एक कथा के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने श्रीहरि विष्णु के जागने के बाद उन्हें सृष्‍टि का संचालन पुन: सौंप दिया था। कहते हैं कि देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक भगवान विष्‍णु पाताललोक राजा बली के यहां योग निद्रा में विश्राम करने जाते हैं। श्रीहरि के शयनकाल के दौरान संपूर्ण सृष्टि की सत्‍ता का संचालन शिवजी के पास होता है। फिर जब वे नींद्र से जागते हैं तो श्रीहरि को शिवजी पुन: सृष्टि का संचालन सौंप देते हैं। अन्य कथा के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु शिवजी तपस्या करने के बाद उन्हें 1000 कमल अर्पित कर रहे थे। शिवजी ने एक कमल गायब कर दिया तो विष्णुजी ने अपनी आंखें ही निकाल का अर्पित कर दी तब भगवान शिव ने कहा कि आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब 'बैकुंठ चतुर्दशी' कहलाएगी और इस दिन व्रतपूर्वक जो पहले आपका पूजन करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी।5. एक बार नारदी कहते हैं कि आपके भक्तों के लिए वैकुंठ प्राप्ति का सरल उपाय क्या है तो श्रीहिर विष्णु कहते हैं कि हे नारद! मेरी बात सुनो, कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को जो नर-नारी व्रत का पालन करेंगे और श्रद्धा-भक्ति से मेरी पूजा-अर्चना करेंगे, उनके लिए स्वर्ग के द्वार साक्षात खुले होंगे।... धनेश्वर नामक पापी ब्राह्मण को इसीलिए वैकुंठ प्राप्त हुआ क्योंकि उससे वैकुंड चतुर्दशी के दिन तीर्थ स्नान किया था।...

इस बार आंवला नवमी पर्व 13 नवंबर 2021 को मनाया जा रहा है। प्रतिवर्ष आने वाली कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी कहा जाता है। अक्षय नवमी का शास्त्रों में वही महत्व बताया गया है जो वैशाख मास की तृतीया का है। शास्त्रों के अनुसार अक्षय नवमी के दिन किया गया पुण्य कभी समाप्त नहीं होता है। इस दिन जो भी शुभ कार्य जैसे दान, पूजा, भक्ति, सेवा किया जाता है उनका पुण्य कई-कई जन्म तक प्राप्त होता है। इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठने और खाना खाने से कष्ट दूर हो जाते हैं। आंवले के पेड़ की पूजा और इसके नीचे भोजन करने की प्रथा की शुरुआत करने वाली माता लक्ष्मी मानी जाती हैं।देवी लक्ष्मी की कथा Amla Navmi Katha- इस संदर्भ में कथा है कि एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण करने आईं। रास्ते में भगवान विष्णु एवं शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई। लक्ष्मी मां ने विचार किया कि एक साथ विष्णु एवं शिव की पूजा कैसे हो सकती है। तभी उन्हें ख्याल आया कि तुलसी एवं बेल का गुण एक साथ आंवले में पाया जाता है। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है और बेल शिव को। आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिह्न मानकर मां लक्ष्मी ने आंवले की वृक्ष की पूजा की।माता लक्ष्म‍ी की पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोजन करवाया। इसके बाद स्वयं भोजन किया। जिस दिन यह घटना हुई थी उस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि थी। इसी समय से यह परंपरा चली आ रही है। अक्षय नवमी के दिन इस आसान विधि से करें पूजन-शास्त्रों में आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विधान बताया गया है। अक्षय नवमी के दिन आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु एवं शिव जी का निवास होता है। इसलिए अक्षय नवमी के दिन प्रातः उठकर आंवले के वृक्ष के नीचे साफ-सफाई करनी चाहिए। आंवले के वृक्ष की पूजा दूध, फूल एवं धूप से करनी चाहिए।इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर ब्राह्मणों को खिलाना चाहिए, इसके बाद स्वयं भोजन करने की मान्यता है। इस दिन भोजन के समय पूर्व दिशा की ओर मुंह रखें। इस संबंध में यह भी मान्यता है कि भोजन के समय अगर थाली में आंवले का पत्ता गिरे तो यह बहुत ही शुभ होता है। थाली में आंवले का पत्ता गिरने से यह माना जाता है कि आने वाले साल में व्यक्ति की सेहत अच्छी रहेगी।अक्षय या आंवला नवमी के दिन आंवला प्रसाद के रूप में भी खाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी दिन द्वापर युग का प्रारंभ माना जाता है, जहां भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में श्री कृष्ण ने जन्म लिया था।...

 कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी का त्योहार मनाया जाता है। आंवला नवमी को अक्षय नवमी भी कहा जाता है। अक्षय नवमी धात्री तथा कूष्मांडा नवमी के नाम से भी जानी जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 13 नवंबर 2021 को यह पर्व मनाया जाएगा। आओ जानते हैं आंवला का धार्मिक और आयुर्वेदिक महत्व।धार्मिक महत्व :1. पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आवंले के पेड़ पर निवास करते हैं। आंवला भगवान विष्णु का सबसे प्रिय फल है। इस दिन विष्णु सहित आंवला पेड़ की पूजा-अर्चना करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।2. आंवले के वृक्ष में सभी देवी देवताओं का निवास होता है इसलिए इसकी पूजा का प्रचलन है। आंवले के वृक्ष की पूजा करने से देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है।3. यह भी कहा जाता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण अपनी बाल लीलाओं का त्याग करके वृंदावन की गलियों को छोड़कर मथुरा चले गए थे।4. इस दिन व्रत रखने से संतान की प्राप्ति भी होती है।5. ऐसी मान्यता है कि आंवला पेड़ की पूजा कर 108 बार परिक्रमा करने से मनोकामनाएं पूरी होतीं हैं।6. अन्य दिनों की तुलना में आंवला नवमी पर किया गया दान पुण्य कई गुना अधिक लाभ दिलाता है।7. धर्मशास्त्र अनुसार इस दिन स्नान, दान, यात्रा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।आंवला का आयुर्वेदिक महत्व :1. आयुर्वेद में आंवला सर्वाधिक स्वास्थ्यवर्धक माना गया है। आयुर्वेद के अनुसार आंवला आयु बढ़ाने वाला फल है यह अमृत के समान माना गया है। इसका प्रतिदिन उचित मात्रा में सेवन करने से आयु वृद्धि बहुत धीरे धीरे होती है। चेहरे पर चमक बनी रहती है।2. आंवला का पाउडर, चीनी के साथ मिलाकर खाने या पानी में डालकर पीने से एसिडिटी से राहत मिलती है। इसके अलावा आंवले का जूस पीने से पेट की सारी समस्याओं से निजात मि‍लती है।3. रक्त में हीमोग्लोबिन की कमी होने पर, प्रतिदिन आंवले के रस का सेवन करना काफी लाभप्रद होता है। यह शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में सहायक होता है, और खून की कमी नहीं होने देता।4. आंखों के लिए आंवला अमृत समान है, यह आंखों की ज्योति को बढ़ाने में सहायक होता है। इसके लिए रोजाना एक चम्मच आंवला के पाउडर को शहद के साथ लेने से लाभ मिलता है।5. आंवले के सेवन से लंबे समय तक बाल काले और घने बने रहते हैं।6. आंवला में विटामिन सी का सर्वोतम प्राकृतिक स्रोत है जो कभी नष्ट नहीं होता है। विटामिन−सी एक ऐसा नाजुक तत्व होता है जो गर्मी के प्रभाव से नष्ट हो जाता है, लेकिन आंवले का नष्ट नहीं होता। आंवला दाह, पांडु, रक्तपित्त, अरूचि, त्रिदोष, दमा, खांसी, श्वांस रोग, कब्ज, क्षय, छाती के रोग, हृदय रोग, मूत्र विकार आदि अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति रखता है। यह पौरूष को बढ़ाता है।7. मान्यता है कि अगर आंवले के पेड़ के नीचे भोजन पकाकर खाया जाये तो सारे रोग दूर हो जाते हैं। दिमागी मेहनत करने वाले व्यक्तियों को वर्षभर नियमित रूप से किसी भी विधि से आंवले का सेवन करना चाहिये। आंवले का नियमित सेवन करने से दिमाग में तरावट और शक्ति मिलती है।...

​हिन्दू धर्म को सनातन और वैदिक धर्म भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह धर्म लाखों वर्ष से अस्तित्व में है जबकि ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार करीब 90 हजार वर्षों से यह धर्म प्रचलन में है। आओ जानते हैं कि इस धर्म में कौनसी ऐसी 10 बाते प्रमुख हैं जिसे हर किसी को जानता चाहिए।10 तरह की संध्यावंदन : 1.प्रार्थना-स्तुति, 2.ध्यान, 3.पूजा, 4.आरती, 5.कीर्तन, 6. साधना, 7.संध्या 8.पाठ, 9.जप और 10.प्राणायम।...प्रत्येक के कई प्रकार होते हैं।10 तरह की पूजा : पूजा में पंचोपचार, दशोपचार और षोडषोपचार पूजा होती है- 1. पाद्य 2. अर्घ्य 3. आचमन 4. स्नान 5. वस्त्र 6. गंध 7. पुष्प 8. धूप 9. दीप 10. नैवेद्य। इसके अलावा आभूषण, ताम्बूल, स्तवन पाठ, पिंड, तर्पण और नमस्कार होता है, परंतु दशोपचार प्रमुख है। इसके अलावा द्वात्रिशोपचार (32 प्रकार), चतुषष्टि प्रकार (64 प्रकार) और एकोद्वात्रिंशोपचार (132 प्रकार) पूजा भी होती है जो विशेष समय पर आयोजित होती है।10 यम- नियम : 1.अहिंसा, 2.सत्य, 3.अस्तेय 4.ब्रह्मचर्य, 5.अपरिग्रह, 6.शौच, 7.संतोष, 8.तप, 9.स्वाध्याय और 10.ईश्वर-प्रणिधान।10 पवित्र ध्वनियां : 1.घंटी, 2.शंख, 3.बांसुरी, 4.वीणा, 5. मंजीरा, 6.करतल, 7.बीन (पुंगी), 8.ढोल, 9.नगाड़ा और 10.मृदंग।10 तरह के कर्तव्य : 1. संध्यावंदन, 2. व्रत, 3. तीर्थ, 4. उत्सव, 5. दान, 6. सेवा 7. संस्कार, 8. यज्ञ, 9. गीता-वेदपाठ और 10. धर्म प्रचार।10 पूजा के फूल : 1.आंकड़ा, 2.कमल, 3.पारिजात, 4.गुड़हल, 5.रजनीगंधा, 6.कनेर, 7.चंपा, 8.गुलाब, 9.चमेली, 10.गेंदा।10 शुभ पत्ते : 1.तुलसी, 2. बिल्वपत्र, 3.पान के पत्ते, 4.केले के पत्ते, 5.आम के पत्ते, 6. शमी के पत्ते, 7. पीपल के पत्ते, 8. बरगद के पत्ते, 9.आंकड़े के पत्ते और 10. सोम पत्ती।10 तरह के पेय : 1. पंचामृत, 2. चरणामृत, 3. तुलसी रस, 4.आंवला रस, 5. नीम रस, 6. सोमरस, 7. पंचगव्य 8. अमृत 9. खीर और 10.गंगाजल।10 दिग्पाल : 10 दिशाओं के 10 दिग्पावल अर्थात द्वारपाल होते हैं। उर्ध्व के ब्रह्मा, ईशान के शिव व ईश, पूर्व के इंद्र, आग्नेय के अग्नि या वह्रि, दक्षिण के यम, नैऋत्य के नऋति, पश्चिम के वरुण, वायव्य के वायु और मारुत, उत्तर के कुबेर और अधो के अनंत।10 धार्मिक स्थल : 1. बारह ज्योतिर्लिंग, 2. एक सौ आठ शक्तिपीठ, 3. चार धाम, 4. सप्तपुरी, 5. पांच पवित्र सरोवर, 6. चार मठ, 7. दस पर्वत, 8. 10 गुफाएं, 9. दस समाधि स्थल और 10. सात पवित्र नगर।10 प्रमुख उत्सव : 1.नवरात्रि-शिवरात्री, 2. दशहरा-दीपावली, 3. होली, 4. गणेश उत्सव, 5.कुंभ पर्व, 6. पोंगल, 7. ओणम, 8. वसंत पंचमी, 9. नवसंवत्सर-गुड़ी पड़वा और 10. संक्रांति-लोहड़ी।10 खास जन्मोत्सव : 1.राम नवमी, 2. कृष्‍ण जन्माष्टमी, 3. हनुमान जन्मोत्सव, 4. महर्षि वाल्मीकि जयंती, 5. रविदास जयंती, 6. अग्रसेन जयंती, 7. परशुराम जयंती, 9. गोगादेव जयंती 10. रामसापीर जयंती।रिश्तों के 10 पर्व : 1. रक्षा बंधन-भाई दूज, 2. गुरु पूर्णिमा, 3. करवाचौथ, 4. गौरी गणेश पूजन- संतान सप्तमी-आंवला नवमी, 5.वसंत पंचमी, 6.मकर संक्राति, श्राद्ध पक्ष, 8. छट पूजा, 9. हड़तालीका तीज और 10. वट सावित्री।10 प्रमुख व्रत : 1. एकादशी, 2. प्रदोष, 3. चतुर्थी, 4. नवरात्रि, 4. चातुर्मास, 5. छठ, 6. हड़तालिका तीज, 7. पूर्णिमा, 8. अमावस्या, 9. शिवरात्रि और 10. करवाचौथ।10 धार्मिक सुगंध : 1. गुग्गुल, 2.चंदन, 3.गुलाब, 4.केसर, 5.कर्पूर, 6.अष्टगंथ, 7.गुढ़-घी, 8.समिधा, 9.मेहंदी और 10. चमेली।10 दिव्य आत्माएं :1.कामधेनु गाय, 2. गरुढ़, 3. संपाति-जटायु, 4. उच्चै:श्रवा अश्व, 5. ऐरावत हाथी, 6. शेषनाग-वासुकि, 7. रीझ मानव, 8. वानर मानव, 9. येति, 10. मकर।10 दैवीय वस्तुएं : 1. कल्पवृक्ष, 2. अक्षयपात्र, 3. कवच-कुंडल, 4. दिव्य धनुष और तरकश, 5. पांचजन्य शंख, 6. संजीवनी बूटी, 7. शिवलिंग- शालिग्राम, 8. गोमती चक्र, 9. मणि ( पारस, स्यंमतक, नाग, नील, चंद्रकांता, कौस्तुभ और अश्वत्थामा की मणि ) और 10. अमृत कलश।0 महाविद्या : 1.काली, 2.तारा, 3.त्रिपुरसुंदरी, 4. भुवनेश्‍वरी, 5.छिन्नमस्ता, 6.त्रिपुरभैरवी, 7.धूमावती, 8.बगलामुखी, 9.मातंगी और 10.कमला।10 बाल पुस्तकें : 1.पंचतंत्र, 2.हितोपदेश, 3.जातक कथाएं, 4.उपनिषद कथाएं, 5.वेताल पच्चिसी, 6.कथासरित्सागर, 7.सिंहासन बत्तीसी, 8.तेनालीराम, 9.शुकसप्तति, 10.बाल कहानी संग्रह।10 पूजा : 1. गंगा दशहरा, 2. आंवला नवमी पूजा, 3. वट सावित्री, 4. तुलसी विवाह पूजा, 5. शीतलाष्टमी, 6. गोवर्धन पूजा, 7. हरतालिका तीज, 8. दुर्गापूजा, 9. भैरव पूजा और 10. छठ पूजा।10 सिद्धांत : 1.एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति (एक ही ईश्‍वर है दूसरा नहीं),2.आत्मा अमर है, 3.पुनर्जन्म होता है, 4.मोक्ष ही जीवन का लक्ष्य है, 5. कर्म का प्रभाव होता है, जिसमें से ‍कुछ प्रारब्ध रूप में होते हैं इसीलिए कर्म ही भाग्य है, 6.संस्कारबद्ध जीवन ही जीवन है, 7.ब्रह्मांड अनित्य और परिवर्तनशील है, 8.संध्यावंदन-ध्यान ही सत्य है, 9.वेदपाठ और यज्ञकर्म ही धर्म है, 10. दान ही पुण्य हैं।...

आषाढ़ माह की देवशयनी एकादशी के दिन देव सो जाते हैं और चातुर्मास का प्रारंभ हो जाते हैं। जब से 4 माह के लिए विवाह सहित सभी तरह के मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं। इन चार माह में किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं करते हैं, जैसे विवाह, गृहप्रवेश, जातकर्म संस्कार आदि सभी कार्य नहीं करते हैं। फिर कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात प्रबोधिनी एकादशी के दिन देव उठ जाते हैं। इस दिन से सभी तरह के मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।14 नवंबर 2021 को देवउठनी एकादशी है, जिसे देवोत्थान एकादशी, देवउठनी ग्यारस के नाम से भी जाना जाता है। विवाह का पहला मुहूर्त 15 नवंबर 2021 को है। इसके बाद 16, 20, 21, 28, 29 और 30 नवम्बर को शुभ विवाह मुहूर्त रहेगा।‍ फिर 1, 2, 6, 7, 11 और 13 दिसंबर कोमुहूर्त रहेगा। नवंबर माह में कुल 7 शुभ मुहूर्त और दिसंबर 2021 में कुल 6 शुभ मुहूर्त पड़ रहे हैं।
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छठ पर्व षष्ठी का अपभ्रंश है। कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली मनाने के छ: दिन बाद कार्तिक शुक्ल को मनाए जाने के कारण इसे छठ कहा जाता है। यह चार दिनों का त्योहार है और इसमें साफ-सफाई का खास ध्यान रखा जाता है। इस त्योहार में गलती की कोई जगह नहीं होती। इस व्रत को करने के नियम इतने कठिन हैं, इस वजह से इसे महापर्व और महाव्रत के नाम से संबोधित किया जाता है।छठी मइया कौन हैं...मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर (तालाब) के किनारे यह पूजा की जाती है।षष्ठी मां यानी छठ माता बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु का वरदान मिलता है।मार्कण्डेय पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि सृष्ट‍ि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया है। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं।वो बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को इन्हीं देवी की पूजा की जाती है।शिशु के जन्म के छह दिनों बाद इन्हीं देवी की पूजा की जाती है। इनकी प्रार्थना से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु होने का आशीर्वाद मिलता है।पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी बताया गया है, जिनकी नवरात्रि की षष्ठी तिथि को पूजा की जाती है।कथा-
छठ व्रत कथा के अनुसार प्रियव्रत नाम के एक राजा थे। उनकी पत्नी का नाम मालिनी था। दोनों की कोई संतान नहीं थी। इस बात से राजा और उसकी पत्नी बहुत दुखी रहते थे। उन्होंने एक दिन संतान प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। इस यज्ञ के फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गईं।नौ महीने बाद संतान सुख को प्राप्त करने का समय आया तो रानी को मरा हुआ पुत्र प्राप्त हुआ। इस बात का पता चलने पर राजा को बहुत दुख हुआ। संतान शोक में वह आत्म हत्या का मन बना लिया। लेकिन जैसे ही राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश की उनके सामने एक सुंदर देवी प्रकट हुईं।देवी ने राजा को कहा कि मैं षष्टी देवी हूं। मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं। इसके अलावा जो सच्चे भाव से मेरी पूजा करता है, मैं उसके सभी प्रकार के मनोरथ को पूर्ण कर देती हूं। यदि तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न प्रदान करूंगी। देवी की बातों से प्रभावित होकर राजा ने उनकी आज्ञा का पालन किया।राजा और उनकी पत्नी ने कार्तिक शुक्ल की षष्टी तिथि के दिन देवी षष्टी की पूरे विधि-विधान से पूजा की। इस पूजा के फलस्वरूप उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। तभी से छठ का पावन पर्व मनाया जाने लगा।छठ व्रत के संदर्भ में एक अन्य कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया।...

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता
तुम को निश दिन सेवत, हर विष्णु विधाता....
ॐ जय लक्ष्मी माता...।।

उमा रमा ब्रह्माणी, तुम ही जग माता
सूर्य चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता
ॐ जय लक्ष्मी माता...।।

दुर्गा रूप निरंजनि, सुख सम्पति दाता
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि सिद्धि धन पाता
ॐ जय लक्ष्मी माता...।।
तुम पाताल निवासिनी, तुम ही शुभ दाता
कर्म प्रभाव प्रकाशिनी, भव निधि की त्राता
ॐ जय लक्ष्मी माता...।।

जिस घर तुम रहती सब सद्‍गुण आता
सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता
ॐ जय लक्ष्मी माता...।।

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता
ॐ जय लक्ष्मी माता...।।

शुभ गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि जाता
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता
ॐ जय लक्ष्मी माता...।।
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई नर गाता
उर आनंद समाता, पाप उतर जाता
ॐ जय लक्ष्मी माता...।।

।। इति लक्ष्मी आरती संपूर्णम ।।
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दिवाली खुशियों का त्‍योहार है। दीपावली के 5 दिनों तक खूब सारे पकवान, तरह-तरह के व्यंजन, मिठाइयां बनाई जाती हैं। माहौल ही कुछ इस तरह होता है कि खाने से खुद को रोक नहीं पाते हैं। इन दिनों व्‍यक्ति अपनी पेट की ओर नजर मारकर फिर से खाने में जुट जाता है। लेकिन खाने के बाद पछताता है। हर बार ऐसा ही होता है फिटनेस मिशन को एक तरफ कर दिवाली पर जमकर खाते हैं। लेकिन इस बार अपने मन को थोड़ा कंट्रोल कर आइए जानते हैं कैसे मनाएं हेल्दी दिवाली -- अक्सर देखा जाता है दिवाली पर मिठाई और नमकीन पारे बनाएं जाते हैं लेकिन वह बहुत बड़ें-बड़ें होते हैं कोशिश करें इसका साइज छोटा रखें।- अगर आप अलग-अलग प्रकार के लड्डू बना रहे हैं तो वह बहुत बड़े होते हैं। कहने को तो वह एक लड्डू होता है लेकिन कायदे से वह दो लड्डू होते हैं। इसलिए लड्डू का साइज जरूर छोटा करें ताकि कम खाएं और एक लड्डू ही खाएं। ठंड के लड्डू भी बनाए जाते हैं इसका साइज भी छोटा रखें।- दिवाली पर डीप फ्राईड आयटम बनाने और खाने दोनों से बचें। कोशिश करें तवे पर बनाए या मशीन के तहत तले जिससे अधिक तेल नहीं लगता है।- अगर आपको पता है शाम के वक्त में हैवी डिनर करना है तो दिनभर अन्‍य नमकीन चीजें या तला-भुना नहीं खाएं। इसकी बजाएं एक प्लेट सलाद और फ्रूट्स खाएं। जिससे आपका त्‍योहार के दिनों में खाने पर कंट्रोल करना बहुत मुश्किल होता है। ऐसे में एक साथ नहीं खाएं। छोटी-छोटी मात्रा में खाएं इससे आपकी हेल्‍थ पर अधिक असर नहीं पड़ेंगा। साथ हीपानी की मात्रा जरूर बढ़ाएं। अधिक पानी पीने से डाइजेशन अच्छा रहता है।इस तरह इस बार हेल्थ वाली दिवाली। और अपनी फिटनेस को लेकर भटके नहीं बल्कि डटे रहें। सब कुछ खाएं लेकिन कम मात्रा में खाएं।...

धनतेरस पर सबसे पहले घर के प्रमुख द्वार की देहरी पर कोई भी अन्न (साबूत गेहूं या चावल आदि) की ढेरी बनाकर/बिछाकर रखें।फिर उस पर एक अखंड दीपक रखें। मान्यता है कि इस प्रकार दीपदान करने से यम देवता के पाश और नरक से मुक्ति मिलती है।यदि आप पूरा उपक्रम ना करें तो इनमें से कोई एक अवश्य करें। पढ़ें यमराज पूजन के 3 तरीके :* घर के मुख्य द्वार पर यम के लिए आटे का दीपक बनाकर अनाज की ढेरी पर रखें।* रात को दक्षिण दिशा में घर की स्त्रियां बड़े दीपक में तेल डालकर चार बत्तियां जलाएं।* एक दीपक घर के मंदिर में जलाकर जल, रोली, चावल, गुड़, फूल, नैवेद्य आदि सहित यम का पूजन करें।'मृत्युना दंडपाशाभ्याम्‌ कालेन श्यामया सह।त्रयोदश्यां दीपदानात्‌ सूर्यजः प्रयतां मम।धनतेरस पर यमराज को दीपदान देने की पौराणिक कथा-धन तेरस पर यमराज जो दीपदान किया जाता है या कहें कि उनके निमित्त घर के चारों ओर दीप जलाकर उनकी पूजा की जाती है। आखिर धनतेरस पर यमराज की पूजा क्यों की जाती है? इसके पीछे दो कथाएं प्रचलित हैं।1.पहली कथा : इस कथा के अनुसार एक बार यमदूत एक राजा को उठाकर नरक ले आए। नरक में राजा ने यमदूत से कहा कि मुझे नरक क्यों लाए हो? मैंने तो कोई पाप नहीं किया है। इस पर यमदूत ने कहा कि एक बार एक भूखे विप्र को आपने अपने द्वार से भूखा ही लौटा दिया था। इसीलिए नरक लाए हैं। राजा ने कहा कि कहा कि नरक में जाने से पहले मुझे एक वर्ष का समय दो। यमदूत ने यमराज की सलाह पर एक वर्ष का समय दे दिया।राजा पुन: जीवित हो गया और फिर वह ऋषि-मुनियों के पास गया और उसने उन्हें अपनी सारी कहानी बता दी। तब ऋषियों के कहने पर राजा ने कार्तिक मास की कृष्ण त्रयोदशी को खुद ने व्रत रखा और ब्राह्मणों को एकत्रित कर उन्हें भरपेट भोजन कराया। वर्षभर बाद यमदूत राजा को फिर लेने आए और इस बार वे नरक ले जाने के बजाए, विष्णु लोक ले गए। तभी से इस दिन यमराज की पूजा की जाती है और उनके नाम का दीपक लगाया जाता है।2.दूसरी कथा : दूसरी कथा के अनुसार हिम नाम के एक राजा का पुत्र हुआ तो ज्योतिषियों ने बताया कि यह अपने विवाह के चौथे दिन मर जाएगा। राजा इस बात से चिंतित हो गया। पुत्र बड़ा हुआ तो विवाह तो करना ही था। उसका विवाह कर दिया गया। विवाह का जब चौथा दिन आया तो सभी को राजकुमार की मृत्यु का भय सताने लगा लेकिन उसकी पत्नी निश्‍चिंत होकर महालक्ष्मी की पूजा करने लगी, क्योंकि वह महालक्ष्मी की भक्त थी। पत्नी ने उस दिन घर के अंदर और बाहर चारों ओर दीये जलाए और भजन करने लगी।उस दिन सर्प के रूप में यमराज ने घर में प्रवेश किया ताकि राजकुमार को डंस कर उसकी जीवन लीला समाप्त कर दी जाए। लेकिन दीपों की रोशनी से सर्प की आंखें चौंधियां गई और उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था की किधर जाएं। ऐसे में वह राजकुमार की पत्नी के पास पहुंच गया जहां वह महालक्ष्मी की आरती गा रही थी। सर्प भी उस मधुर आवाज और घंटी की धुन में मगन हो गया। सुबह होने के सर्प के भेष में आए यमराज को खाली हाथ लौटना पड़ा क्योंकि मृत्यु का समय टल चुका था। इससे राजकुमार अपनी पत्नी के कारण दीर्घायु हुए और तभी से इस दिन यमराज के लिए दीप जलाने की प्रथा प्रचलन में आ गई।दीपदान : धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त जिस घर में दीपदान किया जाता है, वहां अकाल मृत्यु नहीं होती है। धनतेरस की शाम को मुख्य द्वार पर 13 और घर के अंदर भी 13 दीप जलाने होते हैं। लेकिन यम के नाम का दीपक परिवार के सभी सदस्यों के घर आने और खाने-पीने के बाद सोते समय जलाया जाता है। इस दीप को जलाने के लिए पुराने दीपक का उपयोग किया जाता है जिसमें सरसों का तेल डाला जाता है। यह दीपक घर से बाहर दक्षिण की ओर मुख कर नाली या कूड़े के ढेर के पास रख दिया जाता है। इसके बाद जल चढ़ा कर दीपदान करते समय यह मंत्र बोला जाता है-मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह।त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यज: प्रीतयामिति।।कई घरों में इस दिन रात को घर का सबसे बुजुर्ग सदस्य एक दीया जला कर पूरे घर में घुमाता है और फिर उसे लेकर घर से बाहर कहीं दूर रख कर आता है। घर के अन्य सदस्य अंदर रहते हैं और इस दीये को नहीं देखते हैं। यह दीया यम का दीया कहलाता है। माना जाता है कि पूरे घर में इसे घूमा कर बाहर ले जाने से सभी बुराइयां और कथित बुरी शक्तियां घर से बाहर चली जाती हैं।2.दूसरी कथा : दूसरी कथा के अनुसार हिम नाम के एक राजा का पुत्र हुआ तो ज्योतिषियों ने बताया कि यह अपने विवाह के चौथे दिन मर जाएगा। राजा इस बात से चिंतित हो गया। पुत्र बड़ा हुआ तो विवाह तो करना ही था। उसका विवाह कर दिया गया। विवाह का जब चौथा दिन आया तो सभी को राजकुमार की मृत्यु का भय सताने लगा लेकिन उसकी पत्नी निश्‍चिंत होकर महालक्ष्मी की पूजा करने लगी, क्योंकि वह महालक्ष्मी की भक्त थी। पत्नी ने उस दिन घर के अंदर और बाहर चारों ओर दीये जलाए और भजन करने लगी।उस दिन सर्प के रूप में यमराज ने घर में प्रवेश किया ताकि राजकुमार को डंस कर उसकी जीवन लीला समाप्त कर दी जाए। लेकिन दीपों की रोशनी से सर्प की आंखें चौंधियां गई और उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था की किधर जाएं। ऐसे में वह राजकुमार की पत्नी के पास पहुंच गया जहां वह महालक्ष्मी की आरती गा रही थी। सर्प भी उस मधुर आवाज और घंटी की धुन में मगन हो गया। सुबह होने के सर्प के भेष में आए यमराज को खाली हाथ लौटना पड़ा क्योंकि मृत्यु का समय टल चुका था। इससे राजकुमार अपनी पत्नी के कारण दीर्घायु हुए और तभी से इस दिन यमराज के लिए दीप जलाने की प्रथा प्रचलन में आ गई।दीपदान : धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त जिस घर में दीपदान किया जाता है, वहां अकाल मृत्यु नहीं होती है। धनतेरस की शाम को मुख्य द्वार पर 13 और घर के अंदर भी 13 दीप जलाने होते हैं। लेकिन यम के नाम का दीपक परिवार के सभी सदस्यों के घर आने और खाने-पीने के बाद सोते समय जलाया जाता है। इस दीप को जलाने के लिए पुराने दीपक का उपयोग किया जाता है जिसमें सरसों का तेल डाला जाता है। यह दीपक घर से बाहर दक्षिण की ओर मुख कर नाली या कूड़े के ढेर के पास रख दिया जाता है। इसके बाद जल चढ़ा कर दीपदान करते समय यह मंत्र बोला जाता है-मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह।त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यज: प्रीतयामिति।।कई घरों में इस दिन रात को घर का सबसे बुजुर्ग सदस्य एक दीया जला कर पूरे घर में घुमाता है और फिर उसे लेकर घर से बाहर कहीं दूर रख कर आता है। घर के अन्य सदस्य अंदर रहते हैं और इस दीये को नहीं देखते हैं। यह दीया यम का दीया कहलाता है। माना जाता है कि पूरे घर में इसे घूमा कर बाहर ले जाने से सभी बुराइयां और कथित बुरी शक्तियां घर से बाहर चली जाती हैं।...

इस वर्ष सोमवार, 1 नवंबर 2021 को गोवत्स द्वादशी  मनाई जा रही है। हिंदू धर्म में गाय को बहुत ही पवित्र माना गया है। मान्यतानुसार गाय में देवताओं का वास होता है। अत: गोवत्स द्वादशी के दिन गाय की सेवा और पूजन करने से जीवन में शुभता का आगमन होकर हमें कई फायदे भी मिलते हैं।महत्व- दीपावली या कार्तिक अमावस्या से पूर्व कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को गोवत्स द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन गाय-बछड़ों का पूजन करने के साथ ही व्रत रखने की भी परंपरा है। इस दिन माताएं पुत्र की दीर्घायु की कामना से यह व्रत रखती हैं। मान्यता के अनुसार इस दिन गाय-बछड़े का पूजन करने से सभी देवताओं का आशीर्वाद मिलता है।
हिंदू धर्म में गौ माता में समस्त तीर्थों का मेल होने की बात कहीं गई है। गोवत्स द्वादशी के दिन पुत्रवती महिलाएं गाय व बछड़ों का पूजन करती हैं। यदि किसी के घर गाय-बछड़े न हो, तो वह दूसरे की गाय-बछड़े का पूजन करें। यदि घर के आसपास गाय-बछड़ा न मिले, तो गीली मिट्टी से गाय-बछड़े की मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा करें। उन पर दही, भीगा बाजरा, आटा, घी आदि चढ़ाकर कुमकुम से तिलक करें, तत्पश्चात दूध और चावल चढ़ाएं।इस दिन गौ माता को चारा अवश्य ही खिलाएं, माना जाता है कि सारे यज्ञ करने से जो पुण्य मिलता है और सारे तीर्थ नहाने का जो फल प्राप्त होता है, वह फल गोवत्स द्वादशी के दिन गाय की सेवा, पूजन और चारा डालने मात्र से सहज ही प्राप्त हो जाता है। यह पर्व दीपावली की शुरुआत का प्रतीक भी है, क्योंकि यह त्योहार धनतेरस से एक दिन पहले बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। पंचांग मत-मतांतर के चलते यह पर्व 2 नवंबर को भी मनाए जाने की उम्मीद है। इसमें प्रदोषव्यापिनी तिथि ली जाती है।पूजन विधि-- गोवत्स द्वादशी के दिन व्रत करने वाली महिलाएं सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर धुले हुए एवं साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें।- तत्पश्चात गाय (दूध देने वाली) को उसके बछड़ेसहित स्नान कराएं।
- अब दोनों को नया वस्त्र ओढा़एं।- दोनों को फूलों की माला पहनाएं।- गाय-बछड़े के माथे पर चंदन का तिलक लगाएं और उनके सींगों को सजाएं।- अब तांबे के पात्र में अक्षत, तिल, जल, सुगंध तथा फूलों को मिला लें। अब इस 'क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते। सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:॥' मंत्र का उच्चारण करते हुए गौ प्रक्षालन करें।- गौ माता के पैरों में लगी मिट्टी से अपने माथे पर तिलक लगाएं।- गौ माता का पूजन करने के बाद बछ बारस की कथा सुनें।- दिनभर व्रत रखकर रात्रि में अपने इष्ट तथा गौ माता की आरती करके भोजन ग्रहण करें।- मोठ, बाजरा पर रुपया रखकर अपनी सास को दें।- इस दिन गाय के दूध, दही व चावल का सेवन न करें। बाजरे की ठंडी रोटी खाएं।मान्यतानुसार इस दिन योग्य संतान के लिए गाय माता की पूजा और व्रत किया जाता है गोवत्स द्वादशी कथा-जनमानस में प्रचलित गोवत्स द्वादशी की पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में भारत में सुवर्णपुर नामक एक नगर था। वहां देवदानी नाम का राजा राज्य करता था। उसके पास एक गाय और एक भैंस थी। उनकी दो रानियां थीं, एक का नाम 'सीता' और दूसरी का नाम 'गीता' था। सीता को भैंस से बड़ा ही लगाव था। वह उससे बहुत नम्र व्यवहार करती थी और उसे अपनी सखी के समान प्यार करती थी।राजा की दूसरी रानी गीता गाय से सखी-सहेली के समान और बछडे़ से पुत्र समान प्यार और व्यवहार करती थी। यह देखकर भैंस ने एक दिन रानी सीता से कहा- गाय-बछडा़ होने पर गीता रानी मुझसे ईर्ष्या करती है। इस पर सीता ने कहा- यदि ऐसी बात है, तब मैं सब ठीक कर लूंगी।सीता ने उसी दिन गाय के बछडे़ को काट कर गेहूं की राशि में दबा दिया। इस घटना के बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं चलता। किंतु जब राजा भोजन करने बैठा तभी मांस और रक्त की वर्षा होने लगी। महल में चारों ओर रक्त तथा मांस दिखाई देने लगा। राजा की भोजन की थाली में भी मल-मूत्र आदि की बास आने लगी। यह सब देखकर राजा को बहुत चिंता हुई।उसी समय आकाशवाणी हुई- 'हे राजा! तेरी रानी ने गाय के बछडे़ को काटकर गेहूं की राशि में दबा दिया है। इसी कारण यह सब हो रहा है। कल 'गोवत्स द्वादशी' है। इसलिए कल अपनी भैंस को नगर से बाहर निकाल दीजिए और गाय तथा बछडे़ की पूजा करें। इस दिन आप गाय का दूध तथा कटे फलों का भोजन में त्याग करें। इससे आपकी रानी द्वारा किया गया पाप नष्ट हो जाएगा और बछडा़ भी जिंदा हो जाएगा। अत: तभी से गोवत्स द्वादशी के दिन गाय-बछड़े की पूजा करने का महत्व माना गया है तथा गाय और बछड़ों की सेवा की जाती है।गोवत्स द्वादशी पूजा मुहूर्त -द्वादशी तिथि 1 नवंबर 2021, सोमवार को दोपहर 1.21 मिनट से शुरू होकर मंगलवार, 2 नवंबर को 11.31 मिनट पर समाप्त होगी। यदि आप गोवत्स द्वादशी का पूजन करना चाहते हैं, तो आप शाम 5.36 मिनट से रात 8.11 मिनट तक कर सकते हैं।...

धनतेरस पर गोल्ड, कार, बाइक, फ्लैट या मकान जैसी महंगी वस्तुएं खरीदने का प्रचलन है। परंतु यदि आप यह सब नहीं खरीदना चाहते हैं तो आपके लिए सस्ते विकल्प भी हैं। इन धन तेरस पर जानिए क्या खरीदें 5 सस्ते विकल्प-पीतल का बर्तन, 2.खड़ा धनिया, 3.पीली कौड़ी, 4.झाड़ू और 5. नमक। इसके अलावा आप चाहे तो अक्षत, जौ, बच्चों के खिलौने, गोमती चक्र, चांदी का हाथी, नए वस्त्र, दीपक, दक्षिणवर्ती शंख, कमलगट्टे या रुद्राक्ष की माला, धार्मिक साहित्य, औषधि और खील-बताशे भी खरीद सकते हैं।इस दिन सोना, चांदी, पीतल के बर्तन, धनिया, कपड़े, झाड़ू, पीली कौड़ी, नमक का नया पैकेट, वाहन, नया बहीखाता, भूमि, भवन,आदि।ये नहीं खरीदें - इस दिन लोहा, एल्युमिनियम, स्टील, प्लास्टिक, चीनी मिट्टी के बर्तन, कांच। लोहा शनि की धातु है इसे लाने से दुर्भाग्य का प्रवेश हो जाता है। एल्युमिनियम राहु की धातु है यह भी दुर्भाग्य लाता है। स्टील और एल्युमिनियम से घर में दरिद्रता आती है। प्लास्टिक खरीदने से बरकत में कमी आती है। कांच राहु की वस्तु है जिससे घर में राहु के प्रवेश हो जाता है। चीनी मिट्टी से भी घर में बरकत नहीं रहती है।
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हर राशि में प्रत्येक ग्रह के कुछ अच्छे और कुछ बुरे परिणाम होते हैं। तंत्र शास्त्र के अनुसार नवग्रहों की स्थिरता के लिए कुछ सरल और सुलभ उपाय बताए गए हैं।
* सूर्य अशुभ प्रभाव दे रहा हो तो बेड के नीचे तांबे के बर्तन में पानी भरकर रखें। ऐसा करना संभव न हो तो तकिए के नीचे लाल चंदन रखें।
* चंद्र खराब हो तो बैड के नीचे चांदी के पात्र में जल भरकर रखें। संभव न हो तो चांदी के गहने पहनें।
* मंगल परेशानी दे रहा हो तो कांसे के बर्तन में पानी भरकर रखें अथवा तकिए के नीचे सोने-चांदी की धातु से बनी ज्वैलरी रखें।
* बुध जीवन में उथल-पुथल मचा रहा हो तो तकिया के नीचे सोने से बने अलंकार रखें।
* देवगुरु बृहस्पति टेढ़ी चाल चल रहे हो तो हल्दी की गांठ पीले कपड़े में बांधकर तकिए के नीचे रखें।
* शुक्र की शुभता के लिए चांदी की मछली बनाकर तकिए के नीचे रखें अथवा चांदी के पात्र में जल भरकर पलंग के नीचे रखें।
* शनि से संबंधित कोई भी समस्या हो तो लोहे के पात्र में जल भरकर बैड के नीचे रखें अथवा पिलो के नीचे शनिदेव का प्रिय रत्न नीलम रखें।
* इसके साथ ही राहु के अनुकूल बनाने के लिए सिर पर चोटी रखना, माथे पर चंदन का तिलक लगाना चाहिए।
* केतु को शुभ बनाने के लिए दो रंग के कुत्ते को रोटी खिलाएं अथवा कुत्ता पालें।...

धार्मिक मान्यता के अनुसार, शरद पूर्णिमा सभी पूर्णिमा तिथि में से सबसे महत्वपूर्ण पूर्णिमा तिथि मानी जाती है। इस दिन धन वैभव और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए मां लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। इस वर्ष शरद पूर्णिमा 19 अक्टूबर 2021 के दिन मनाई जाएगी।आश्विन मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से जनमानस में जाना जाता है। इस पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा या कोजागरी लक्ष्मी पूजा भी कहते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी जी का अवतरण हुआ था। जानिए 17 खास बातें...1. सुबह स्नान के बाद घर के मंदिर की सफाई करें।2. ध्यान पूर्वक माता लक्ष्मी और श्रीहरि की पूजा करें।3. फिर गाय के दूध में चावल की खीर बनाकर रख लें।4. लक्ष्मी माता और भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए लाल कपड़ा या पीला कपड़ा चौकी पर बिछाकर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रतिमा इस पर स्थापित करें।5. तांबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढकी हुई लक्ष्मी जी की स्वर्णमयी मूर्ति की स्थापना कर सकते हैं।6. भगवान की प्रतिमा के सामने घी का दीपक जलाएं, धूप करें।7. इसके बाद गंगाजल से स्नान कराकर अक्षत और रोली से तिलक लगाएं।8. तिलक करने के बाद सफेद या पीले रंग की मिठाई से भोग लगाएं।9. लाल या पीले पुष्प अर्पित करें।10. माता लक्ष्मी को गुलाब का फूल अर्पित करना विशेष फलदायक होता है।11. शाम के समय चंद्रमा निकलने पर अपने सामर्थ्य के अनुसार गाय के शुद्ध घी के दीये जलाएं।12. इसके बाद खीर को कई छोटे बर्तनों में भरकर छलनी से ढककर चंद्रमा की रोशनी में रख दें।13. फिर ब्रह्म मुहूर्त जागते हुए विष्णु सहस्त्रनाम का जप, श्रीसूक्त का पाठ, भगवान श्रीकृष्ण की महिमा, श्रीकृष्ण मधुराष्टकम् का पाठ और कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।14. पूजा की शुरुआत में भगवान गणपति की आरती अवश्य करें।15. अगली सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके उस खीर को मां लक्ष्मी को अर्पित करें और प्रसाद रूप में वह खीर घर-परिवार के सदस्यों में बांट दें।16. जिन जातकों की कुंडली में चंद्रमा शुभ फल नहीं देते हैं उन्हें खीर का सेवन जरूर करना चाहिए। शरद पूर्णिमा के दिन चांद अपनी 16 कलाओं से युक्त होकर धरती पर अमृत की वर्षा करता है। शरद पूर्णिमा की रात को खीर बनाकर पूरी रात चांद की रोशनी में आसमान के नीचे रखा जाता है फिर अगले दिन सुबह इसे प्रसाद के तौर पर परिवार के सभी सदस्य ग्रहण करते हैं। जो भी व्यक्ति शरद पूर्णिमा पर खीर का प्रसाद ग्रहण करता है उसके शरीर से कई रोग खत्म हो जाते हैं।17. शरद पूर्णिमा देवी पर धन की देवी लक्ष्मी का आगमन होता है इसलिए उन्हें प्रसन्न करने के लिए उनका पूजन अवश्य ही करना चाहिए।...

दशहरे पर जब देशभर में रावण का पुतला दहन होता है तब राजस्थान में एक जगह ऐसी भी है जहां लोग इस अंत पर शोक मनाते हैं। यहां उसी रावण की मंदिर में पूजा भी की जाती है। ये जगह श्रीलंका में नहीं बल्कि राजस्थान के जोधपुर में है। जहां का श्रीमाली ब्राह्मण समाज खुद को रावण का वंशज मानता है और मंडोर को उनका ससुराल।मान्यता है कि जब रावण विवाह करने जोधपुर के मंडोर आए थे तब यह ब्राह्मण उनके साथ बारात में आए थे। विवाह करके रावण वापस लंका चला गया, लेकिन यह लोग यहीं रह गए। तब गोधा गोत्र के श्रीमाली ब्राह्मण यहां रावण की विशेष पूजा करते आ रहे हैं। ये रावण का दहन नहीं देखते, बल्कि उस दिन शोक मनाते हैं। यहां तक कि श्राद्ध पक्ष में दशमी पर रावण का श्राद्ध, तर्पण आदि भी करते हैं।अपनों के देहांत के बाद जिस तरह स्नान कर यज्ञोपवीत बदला जाता है, उसी प्रकार रावण के वंशज दहन के बाद शोक के रूप में लोकाचार स्नान कर कपड़े बदलते हैं। श्रीमाली कमलेश दवे का कहना है कि जोधपुर में श्रीमाली ब्राह्मण में गोधा गोत्र के ब्राह्मण रावण के ही वंशज हैं, इसलिए वे रावण दहन नहीं देखते। जोधपुर में इस गौत्र के करीब 100 से ज्यादा और फलोदी में 60 से अधिक परिवार निवास करते हैं।कमलेश दवे बताते हैं रावण के वंशज होने के कई साक्ष्य हैं, उनमें से एक यह भी है कि हमारे गोत्र में विवाह के बाद त्रिजटा पूजा की जाती है। विवाहिता त्रिजटा, जिसे अपभृंश त्रिज्जा कहने लगे हैं। इस पूजा में अन्य महिलाओं के माथे पर सिंदूर की बिंदी लगाती है। इसके बाद ही भोजन होता है। यह पूजा इतनी अनिवार्य होती है, अगर कोई महिला किसी कारणवश नहीं कर पाती और उसकी मृत्यु हो जाती है तो उसके नाम से यह पूजा की जाती है। त्रिजटा पूजन का जिक्र रामायण में अशोक वाटिका के किस्से में बताया गया है। त्रिजटा को रावण की बहन भी कहा जाता है।गोधा गोत्र के ब्राह्मणों ने मेहरानगढ़ की तलहटी में रावण का मंदिर 2008 में बनवाया था। यहां रावण की शिव आराधना करते हुए विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है। पुजारी अजय दवे बताते हैं दशहरे पर रावण दहन के बाद उनके समाज के लोग स्नान कर यज्ञोपवीत बदलते हैं मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। रावण भी शिव भक्त था, इसलिए शिव की भी विशेष आराधना होती है। रावण के मंदिर के सामने ही मंदोदरी का मंदिर भी बनवाया गया है।...

प्राचीनकाल से दशहरा (विजयादशमी) पर अपराजिता-पूजा, शमी पूजन, शस्त्र पूजन व सीमोल्लंघन की परंपरा रही है।अपराजिता-पूजा : आश्विन शुक्ल दशमी को पहले अपराजिता का पूजन किया जाता है। अक्षतादि के अष्ट दल पर मृतिका की मूर्ति स्थापना करके 'ॐ अपराजितायै नम:' (दक्षिण भाग में अपराजिता का), 'ॐ क्रियाशक्तयै नम:' (वाम भाग में जया का), ॐ उमायै नम: (विजया का) आह्वान करते हैं।शमी पूजन : शमी (खेजड़ी) वृक्ष दृढ़ता व तेजस्विता का प्रतीक है। शमी में अन्य वृक्षों की अपेक्षा अग्नि प्रचुर मात्रा में होती है। हम भी शमी वृक्ष की भांति दृढ़ और तेजोमय हों, यही भावना व मनोभावना शमी पूजन की रही है।
शस्त्र पूजन : शस्त्र पूजन की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। प्राचीन समय में राजा-महाराजा विशाल शस्त्र पूजन करते रहे हैं। आज भी इ‍स दिन क्षत्रिय शस्त्र पूजा करते हैं। सेना में भी इस दिन शस्त्र पूजन किया जाता है।सीमोल्लंघन : इतिहास में क्षत्रिय राजा इसी अवसर पर सीमोल्लंघन किया करते थे। हालांकि अब यह परंपरा समाप्त हो चुकी है, लेकिन शास्त्रीय आदेश के अनुसार यह प्रगति का प्रतीक है। यह मानव को एक परिधि से संतुष्ट न होकर सदा आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।
दशहरे पर संभलकर करें शस्त्र पूजन-आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी को शस्त्र पूजन का विधान है। 9 दिनों की शक्ति उपासना के बाद 10वें दिन जीवन के हर क्षेत्र में विजय की कामना के साथ चंद्रिका का स्मरण करते हुए शस्त्रों का पूजन करना चाहिए। विजयादशमी के शुभ अवसर पर शक्तिरूपा दुर्गा, काली की आराधना के साथ-साथ शस्त्र पूजा की परंपरा है।शस्त्र पूजन की परंपरा का आयोजन रियासतों में आज भी बहुत धूमधाम के साथ होता है। शासकीय शस्त्रागारों के साथ आमजन भी आत्मरक्षार्थ रखे जाने वाले शस्त्रों का पूजन सर्वत्र विजय की कामना के साथ करते हैं। राजा विक्रमादित्य ने दशहरे के दिन देवी हरसिद्धि की आराधना की थी। छत्रपति शिवाजी ने भी इसी दिन मां दुर्गा को प्रसन्न करके भवानी तलवार प्राप्त की थी।दशहरा पर्व के चलते हथियारों के पूजन का विशेष महत्व है। इस दिन हथियारधारी अपने-अपने हथियारों का पूजन करते हैं। इस पूजा-अर्चना के पूर्व हथियारों की साफ-सफाई सावधानी से करना ही अक्लमंदी है। इस दौरान जरा-सी लापरवाही अनहोनी को न्योता दे सकती है। इसी दिन लोग नया कार्य प्रारंभ करते हैं, शस्त्र-पूजा की जाती है।* दशहरा पर्व के अवसर पर अपने शस्त्र को पूजने से पहले सावधानी बरतना न भूलें। हथियार के प्रति जरा-सी लापरवाही बड़ी भूल साबित हो सकती है।* घर में रखे अस्त्र-शस्त्र को अपने बच्चों एवं नाबालिगों की पहुंच से दूर रखें। घर में हथियार तक पहुंच किसी भी स्थिति में न हो।* हथियार को खिलौना समझने की भूल करने वालों के दुर्घटना के शिकार होने के कई मामले सामने आ चुके हैं।* सबसे अहम यही है कि पूजा के दौरान बच्चों को हथियार न छूने दें और किसी भी तरह का प्रोत्साहन बच्चों को न मिले।हथियार खतरनाक होते हैं इसलिए इनकी साफ-सफाई में बेहद सावधानी की जरूरत होती है। 12 बोर और पिस्टल में सतर्कता रखनी पड़ती है। अपने-अपने घरों में जो भी हथियार साफ करें, बिलकुल संभलकर करें।दशमी तिथि प्रारंभ व समाप्त-दशमी तिथि प्रारंभ: 14 अक्‍टूबर 2021 को शाम 06 बजकर 52 मिनट से दशमी तिथि समाप्‍त: 15 अक्‍टूबर 2021 को शाम 06 बजकर 02 मिनट तक,श्रवण नक्षत्र प्रारंभ व समाप्तश्रवण नक्षत्र प्रारंभ: 14 अक्‍टूबर 2021 को सुबह 09 बजकर 36 मिनट सेश्रवण नक्षत्र प्रारंभ: 15 अक्‍टूबर 2021 को सुबह 09 बजकर 16 मिनट तकविजय मुहूर्त प्रारंभ व समाप्तजय मुहूर्त: 15 अक्‍टूबर 2021 को दोपहर 02 बजकर 02 मिनट से दोपहर 02 बजकर 48 मिनट तक.अपराह्न पूजा प्रारंभ व समाप्त-अपराह्न पूजा का समय: 15 अक्‍टूबर 2021 को दोपहर 01 बजकर 16 मिनट से दोपहर 03 बजकर 34 मिनट तक.दशहरा पर शस्त्र पूजन विधि-दशहरे के दिन सुबह जल्दी उठकर साफ वस्त्र धारण करें।इस दिन विजय मुहूर्त में पूजा करना बहुत शुभ माना जाता है।इस मुहूर्त में शस्त्रों की पूजा की जाती है।सभी शस्त्रों पर गंगाजल छिड़कर उन्हें पवित्र करें।इसके बाद सभी शस्त्रों पर हल्दी या कुमकुम से तिलक कर फूल व शमी के पत्ते अर्पित करें।इस दिन दान-दक्षिणा और गरीबों को भोजन कराएं।इस दिन अपनों से बड़े-बुजुर्गों के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें।...

ब्रज मंडल में श्रीकृष्ण जन्म उत्सव की शुरुआत श्रावण माह से ही प्रारंभ हो जाती है। कान्हा का जन्म भाद्रपद के कृष्‍ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इस बार कृष्ण जन्माष्टमी का 5248वां पर्व 30 अगस्त दिन सोमवार रात्रि को मनाया जाएगा। आओजानते हैं कि बाल कृष्ण को किन किन वस्तुओं से सजाया जाता है।1. झूला : सबसे बहले बाल कृष्ण के लिए झूला या पालना सजाया जाया जाता है। बाजारों में कई तरह के झुले मिलते हैं। आप अपनी यथाशक्ति के अनुसार झूला लाएं और उसे फूलों से सजाएं। झूला सजाने के लिए लेस या झालर का उपयोग भी कर सकते हैं। झूले के भीतर रेशमी या मखमली कपड़े के तकिये, गादी और रजाई रखें। अब कान्हा जी को तैयार कर झूले में बैठाएं।2. ड्रेस : बाजार में कान्हाजी के लिए सुंदर-सुंदर डिजाइन की ड्रेस मिलती है जिमें मीनाकारी, जरदोरी या काश्तकारी की हुई होती है। यह वस्त्र पीले होते हैं जिनमें हरी डिजाइन होती है।3. पगड़ी : कान्हाजी के सिर पर छोटी उसी रंग और डिजाइन की पगड़ी होती है जिस रंग या डिजाइन के वस्त्र होते हैं। उन्हें पगड़ी पहनाकर उसमें मोर पंख लगाएं।4. बांसुरी : कान्हाजी के हाथों में छोटी सी सुंदर बांसुरी होती है। उनके हाथों की यह बांसुरी भी अच्छे से रेशिमी धागों से सजी होती है। 4. बांसुरी : कान्हाजी के हाथों में छोटी सी सुंदर बांसुरी होती है। उनके हाथों की यह बांसुरी भी अच्छे से रेशिमी धागों से सजी होती है।
5. कड़े और बाजूबंध : कान्हाजी के हाथों में कड़े डालें जो सोने, चांदी या मेटल के भी हो सकते हैं। बाजुओं में बाजूबंध पहनाएं।6. कुंडल : ठाकुरजी के कानों में मोती, चांदी या सोने के कुंडल पहनाए जाते हैं।7. पाजेब और कमरबंध : उनके पैरों में चांदी की पायजब या पायल उन्हें पहनाएं। कमर में चांदी या काले रेशमी धागे का ही कमरबंध बांधा जाता है।8. माला : ठाकुरजी को वैजयंती की माला या मोतियों की माला पहनाएं।9. टीका : कान्हाजी के माथे पर सुंदर सा चमकता हुआ टीका लगाए। आजकल बाजारों में बना बनाया टीका मिलता है।10. काजल : ठाकुरजी की आंखों में काजल लगाएं।...

साल 2021 में इस दिन मनाई जाएगी कृष्ण जनमाष्टमी, यहां जानें मुहूर्त्त और पूजा विधि. हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि पर रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. इसीलिए हर साल इसी संयोग पर कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है.श्री कृष्ण जन्माष्टमी के भक्‍त बेसब्री से इस द‍िन का इंतजार कर रहे हैं.  यह पर्व हर साल धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मनता है. हर ओर खुशियां होती हैं. भगवान कृष्ण का जन्म मानों भक्तों के जीवन में नया उत्साह भर देता है. इस द‍िन की तैयारी भक्‍त कई दिन पहले से कर देते हैं. साल 2021 में इस दिन मनाई जाएगी कृष्ण जनमाष्टमी, यहां जानें मुहूर्त्त और पूजा विधि. हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि पर रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. इसीलिए हर साल इसी संयोग पर कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है.जान लें कृष्ण जन्माष्टमी की तिथिइस साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 30 अगस्त, सोमवार को मनाया जाएगा. अष्टमी तिथि 29 अगस्त, रात 11:25 बजे शुरू होगी, जो 30 अगस्त रात 1:59 बजे तक रहेगी. इसीलिए इस साल पर्व 30 अगस्त को होगा.कब तक रहेगा जन्माष्टमी 2021 पूजन मुहूर्त-रोहिणी नक्षत्र-जन्माष्टमी पर पूजन का शुभ मुहूर्त 30 अगस्त, रात 11:59 बजे से देर रात 12:44 बजे तक का रहेगा. रोहिणी नक्षत्र का आरंभ 30 अगस्त, सुबह 06:39 बजे से हो रहा है, जिसका समापन 31 अगस्त को सुबह 09:44 बजे पर होगा.यह पूजन व‍िध‍ि-
शुभ मुहूर्त में बाल कृष्ण को सबसे पहले दूध से स्नान कराएं. फिर दही, घी, शहद से नहलाएं. अब गंगाजल से स्नान कराएं. इन चीजों को एक बड़े बर्तन में एकत्र कर पंचामृत बना लें. स्नान पूरा होने के बाद बाल गोपाल को सजाएं. लंगोट पहनाएं. उन्हें वस्त्र पहनाएं. गहने पहनाएं.भगवान कृष्ण के भजन गाएं. चंदन और अक्षत से तिलक करें. धूप, दीप दें. माखन-मिश्री, तुलसी पत्ता का भोग लगाएं. अब बाल गोपाल को झूले पर झुलाएं. भजन-कीर्तन करें. बाल गोपाल को घर में बने भोग प्रसाद के रूप में अर्पित करें. धनिए की पंजीरी, खीर, मिठाई, पंचामृत आदि अर्पित करें.जन्माष्टमी पर व्रत क्यों रखते हैं?जन्माष्टमी भगवान कृष्ण के अवतरण का दिन है. इस दिन भक्त भगवान कृष्ण की विशेष पूजा करते हैं और उपवास भी रखते हैं. ... कृष्ण के भक्त इस दिन प्रायः फलाहार आदि पर ही व्रत करते हैं लेकिन यदि स्वास्थ्य संबंधी कारणों से एक समय भोजन करना जरूरी हो तो इसका भी संकल्प ले सकते हैं. ...

हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति में प्रकृति तत्वों जैसे पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों का विशेष स्थान है। हमारे कई व्रत और त्योहार विशेष रूप से इन्ही प्राकृतिक तत्वों पर आधारित हैं। इन्ही त्योहारों में से एक त्योहार है नाग पंचमी। इस त्योहार पर विशेष रूप से नागों और सर्पों की पूजा करने का विधान है। नाग पंचमी का त्योहार सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस साल नाग पंचमी 13 अगस्त, दिन शुक्रवार को पड़ रही है। नाग देवता भगवान शिव के भी प्रिय हैं इसलिए इस दिन भगवान शिव और नाग देवता की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं नाग पंचमी की तिथि, मुहूर्त और पूजा की विधि..नाग पंचमी की तिथि और मुहूर्त-हिंदी पंचांग के अनुसार नाग पंचमी का त्योहार सावन मास की पंचमी तिथि को मानाया जाता है। इस साल पंचमी की तिथि 12 अगस्त शाम 03.24 बजे से शुरू होकर 13 अगस्त को 1 बजकर 42 मिनट तक रहेगी। आचार्यों के अनुसार नाग पंचमी का त्योहार 13 अगस्त को मानाया जाएगा। पूजा के लिए सबसे शुभ मुहूर्त 13 अगस्त को सुबह 5बजकर 49 मिनट से 8 बजकर 28 मिनट तक रहेगा।नाग पंचमी की पूजन विधि-नाग पंचमी के दिन प्रातःकाल नहा कर, सबसे पहले घर के दरवाजे पर मिट्टी, गोबर या गेरू से नाग देवता का चित्र अंकित करना चाहिए। फिर नाग देवता दूर्वा,कुशा,फूल,अछत,जल और दूध चढ़ाना चाहिए। नाग देवता को सेवईं या खीर का भोग लगाया जाता है। सांप की बांबी के पास दूध या खीर रख देना चाहिए। नाग पंचमी पर नागों को दूध से नहलाने का विधान है न कि उन्हें दूध पिलाने का। दूध पीना वैज्ञानिक रूप से सांपों के लिए नुकसान दायक होता है, इसलिए ऐसा नहीं करना चाहिए। इस दिन नाग देवता का दर्शन करना शुभ माना जाता है। नाग पंचमी के दिन सांपों के संरक्षण का संकल्प लेना चाहिए। इस दिन अष्टनागों के इस मंत्र का जाप करना चाहिए।...

धनवान कौन नहीं होना चाहता है? धन की देवी लक्ष्मी की कृपा से ही धन की प्राप्ति होती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ऐसे 10 शुभ संकेत मिलते हैं जिससे यह पता चलता है कि आपके घर में महालक्ष्मीजी का आगमन होगा और आपको अपार धन मिलेगा। इसे आप अच्छा समय आने का संकेत भी मान सकते हैं।1. पहला संकेत : अचानक से आपके घर में काले रंग की चिंटियां आकर वर्तुल बनाकर कुछ खाने लगे तो समझ लेना की आपके घर में महालक्ष्मीजी का आगमन होने वाला और आपको अपार धन मिलने वाला है। ऐसे में उन चिंटियों को नमस्कार करें और उन्हें शक्कर मिला आटा खिलाएं।2. दूसरा संकेत : यदि आपके घर में कोई चिड़िया आकर घोंसला बना लें तो यह बहुत ही शुभ संकेत माना गया है। आप मान लें कि अब आपके घर में महालक्षमी का आगमन होने वाला है।3. तीसरा संकेत : घर में यदि अचानक तीन छिपकलियां एक ही स्थान पर दिखाई दें तो यह बहुत ही शुभ माना जाता है। यह महालक्ष्मीजी के आगमन का संकेत है। यह भी कहते हैं कि यदि छिपकलियां एक दूसरे का पीछा करती हुई दिखाई दें तो यह घर की उन्नती का संकेत है। दीपावली के दिन तुलसी के पौधे में छिपकली का दिखाई देना तो अत्यंत ही शुभ माना जाता है। यह अपार धन मिलने का संकेत है।4. चौथा संकेत : यदि आपकी दाहिनी हथेली में लगातार खुजली हो रही है तो यह भी धन प्राप्ति का शुभ संकेत है।5. पांचवां संकेत : यदि सपने में झाडू, उल्लू, घड़ा, बंसी, हाथी, नेवला, शंख, छिपकली, तारा, सांप, गुलाब आदि दिखाई दे तो यह धन प्राप्ति का संकेत है।6. छठा संकेत : ऐसा कहा जाता है कि सुबह उठते ही शंख की आवाज सुनाई दें और शाम को भी सुनाई दे तो यह महालक्ष्मी के आगमन का संकेत है।7. सातवां संकेत : यदि आपको घर से बाहर जाते हैं गन्ना दिखाई दो तो यह भी धन प्राप्ति का संकेत है।8. आठवां संकेत : मां लक्ष्मी का वाहन उल्लू आपको अपने घर के बाहर बहुत दिन से दिखाई दे रहा हो तो मान लीजिये की आपके घर पर महालक्ष्मी का आगमन होने वाला है और आपको जल्द ही अपार धन की प्राप्ति होगी।9. नौवां संकेत : यदि आप किसी काम से कहीं बाहर जा रहे हो और रास्ते में कोई कुत्ता अपने मुंह में खाने वाली कोई शाकाहारी चीज़ या रोटी लाता हुआ दिखाई देता है तो यह इस बात की ओर संकेत करता है कि आपको कहीं से धनलाभ होने वाला है।10. दसवां संकेत : यदि आपको सुबह-सुबह घर से बाहर निकलते ही कोई झाडू लगाता दिखाई दे और ऐसा लगातार कई दिनों तक चलता रहे तो समझ लें कि आप बहुत जल्द धनवान बनने वाले हैं।
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श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 03 अगस्त, दिन मंगलवार को दोपहर 12.59 मिनट से प्रारंभ होकर उसका समापन 4 अगस्त, बुधवार को दोपहर 3.17 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार, इस वर्ष कामिका एकादशी व्रत 4 अगस्त 2021 को रखा जाएगा।कामिका एकादशी के दिन 4 अगस्त 2021, बुधवार को सुबह 05.44 मिनट से अगले दिन 05 अगस्त को सुबह 04.25 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। इस बार इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। अत: कामिका एकादशी व्रत इस वर्ष सर्वार्थ सिद्धि योग में रखा जाएगा। इस समयावधि में आप व्रत-पूजन और पारण करके एकादशी व्रत का लाभ प्राप्त कर सकते हैं।कामिका एकादशी व्रत का पारण 05 अगस्त, गुरुवार के दिन किया जाएगा। व्रत का पारण सुबह 05.45 मिनट से सुबह 08.26 मिनट के बीच कभी भी कर सकते हैं। द्वादशी तिथि का समापन शाम को 05.09 मिनट पर होगा।
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एक समय था जबकि आपके पास सब कुछ था और अब सब कुछ चला गया। मतलब अब आप दूसरे के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं और जिंदगी गरीबी और मजबूरी बनकर रह गई है तो जांचें कि कहीं आपकी कुंडली की इस स्थिति के कारण तो आपकी स्थिति ऐसी नहीं बनी? यदि यह स्थिति है तो निम्नलिखित उपाय करें।1. हालांकि कई बार ऐसा भी होता है कि आपकी कुंडली के ग्रह सही है परंतु व्यक्ति अपने कर्मों के कारण भी गरीब और मजबूर हो जाता है। अब यदि किसी को शराब पीने और जुआ खेलने की लत लग गई है तो उसका कुछ नहीं कर सकते।2. लाल किताब के अनुसार शनि, राहु और केतु के मं‍दे कार्य करने से भी व्यक्ति का जीवन गरीबी और संकट में ही गुजर जाता है।3. लाल किताब के अनुसार यदि शनि 7वें भाव में है और उसी समय सूर्य, चंद्र या मंगल में से कोई एक या कोई दो या तीनों ही ग्रह तीसरे, पांचवें या सातवें भाव में स्थित हैं तो जातक की जिंदगी बर्बाद ही समझो। यदि कोई पुण्‍य कार्य किए होंगे तो ही उसकी जिंदगी सही होगी।अचूक उपाय :
1. सबसे पहले तो अपने कर्म सुधारे और शनि, राहु और केतु के मंदे कार्य न करें।2. 43 दिन तक गुड़ और गेहूं का दान दें और उसके बाद अगले 3 वर्षों तक गुड़ और गेहूं का रविावार को मंदिर में दान देते रहें।3. यदि शनि 7वें और चंद्र एवं मंगल तीसरे, पांचवें या सातवें भाव में एकत्रित हों तो 43 दिन तक हलवे में दूध मिलाकर मंदिर में बांटे और अगले तीन वर्षों तक हर मंगलवार को मंदिर में हलवा बांटें।4. यदि सातवें भाव में शनि विराजमान हैं और चंद्रमा अकेले तीसरे, पांचवें या सातवें भाव में हो तो ऐसी अवस्था में चावल में दूध मिलाकर 43 दिन तक दान करें और इसके बाद अगले 3 वर्षों तक हर सोमवार को मंदिर में दान करें।5. प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढ़ें और मंगलवार एवं शनिवार को उनके मंदिर में जाकर चमेली के तेल का दीपक जलाएं और उन्हें सिंदूर अर्पित करें। तीन वर्ष तक यह क्रम जारी रहना चाहिए।नोट : 43 दिन में संकट का समाधान होना प्रारंभ होता है और 3 साल में सभी कुछ पहले जैसा हो जाता है, परंतु इसके लिए आप किसी विशेषज्ञ को अपनी कुंडली दिखाकर ही ये उपाय कर सकते हैं।...

एक शाम एक सम्राट अपने महल में प्रवेश कर रहा था तो उनने देखा की बड़े से द्वार पर एक बूढ़ा प्रहरी खड़ा है और पुरानी तथा पतली सी वर्दी उसने पहन रखी है और वह भी सर्दी के दिन में।सम्राट ने रथ को रुकवाया और रथ से उतरकर वह उसके पास गया और उसने बूढ़े प्रहरी से पूछा, 'सर्दी नहीं लग रही?'प्रहरी ने बड़ी ही विनम्रता से कहा, बहु‍त लग रही है सम्राट परंतु क्या करूं। गर्म वर्दी है नहीं है मेरे पास, इसलिए सहना को करना ही पडेगी।।सम्राट ने कहा, 'ठीक है, मैं अभी महल के भीतर जाकर अपना ही कोई गर्म जोड़ा भेजता हूं तुम्हे।'यह सुनकर प्रहरी प्रसन्न हो गया और सम्राट को झुककर धन्यवाद देने लगा। अब उसके भीतर एक उम्मीद जाग गई थी।सम्राट भीतर गया और किसी काम में उलझकर भूल ही गया कि उसे प्रहरी के लिए गर्मी वर्दी भेजना है। प्रात: काल उस द्वार पर उस बूढ़े प्रहरी की अकड़ी हुई लाश मिली और पास ही भूमि की मिट्टी पर उसकी अंगलियों से लिखी गई ये सीख भी, सम्राट दीर्घायु हों! वे हमेशा तरक्की करें। मैं कई वर्षों से सर्दियों में इसी पतलीसी वर्दी में पहरा दे रहा था। परंतु कल रात आपके द्वारा गर्म वर्दी देने के वादे ने मेरी जान निकाल दी।सीख : व्यक्ति को किसी से भी किसी भी प्रकार की उम्मीद नहीं करना चाहिए। उम्मीद और सहारे आदमी को भीतर से खोखला और कमजोर कर देते हैं। अपनी शक्ति के बल पर ही जीना चाहिए। खुद की शक्ति पर भरोसा करना सीखें।जब मर गया सम्राट का प्रहरी...

शिव चालीसा के आसान शब्दों से भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न किया जा सकता है। शिव चालीसा के सस्स्वर पाठ से मुश्किल काम को बहुत ही आसान किया जा सकता है। शिव चालीसा की 40 शुभ पंक्तियां चमत्कारी हैं। शिव चालीसा सरल है लेकिन अत्यंत प्रभावशाली है। चालीसा का निरंतर 40 बार पाठ करने से वह सिद्ध हो जाता है...इसी तरह मनोकामना और समस्या के अनुसार चालीसा की पंक्ति याद कर 40 बार पाठ करने से वह भी आश्चर्यजनक रूप से मदद करती है।सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।* अपना मुंह पूर्व दिशा में रखें और कुशा के आसन पर बैठ जाएं।* पूजन में सफेद चंदन, चावल, कलावा, धूप-दीप पीले फूलों की माला और हो सके तो सफेद आक के फूल भी रखें और शुद्ध मिश्री को प्रसाद के लिए रखें।* पाठ करने से पहले गाय के घी का दिया जलाएं और एक कलश में शुद्ध जल भरकर रखें।* शिव चालीसा का 3, 5, 11 या फिर 40 बार पाठ करें।* शिव चालीसा का पाठ बोल बोलकर करें जितने लोगों को यह सुनाई देगा उनको भी लाभ होगा।-शिव चालीसा का पाठ पूर्ण भक्ति भाव से करें और भगवान शिव को प्रसन्न करें।* पाठ पूरा हो जाने पर कलश का जल सारे घर में छिड़क दें।* थोड़ा सा जल स्वयं पी लें और मिश्री प्रसाद के रूप में खाएं, बच्चों में भी बांट दें। मनोकामना के अनुसार शिव चालीसा पाठ करने से होंगे फायदे-* मन में कोई भय हो तो-जय गणेश गिरीजा सुवन' मंगल मूल सुजानहते अयोध्या दास तुम' देउ अभय वरदान- ऐसा लगातार 40 दिन तक करने से लाभ होगा।* दुखों और परेशानी ने यदि घेर लिया है तो-देवन जबहिं जाय पुकारा' तबहिं दुख प्रभु आप निवारा।* किसी भी कार्य को सिद्ध करने के लिए-पूजन रामचंद्र जब कीन्हा' जीत के लंक विभीषण दीन्हा।*मनोवांछित वर प्राप्ति के लिए इस पंक्ति का पाठ करें- कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर' भई प्रसन्न दिए इच्छित वर।* कर्ज से मुक्ति पाने के लिए इसे जपें- 
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥* धन प्राप्ति के लिए-धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥* संतान प्राप्ति के लिए-
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥* शत्रु नाश के लिए और अशुद्ध भावनाओं/विकारों से मुक्ति के लिए-  दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥ त्राहि मैं नाथ पुकारो। यही अवसर मोहि आन उबारो॥लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
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जो भी जातक शनि ग्रह, शनि साढ़ेसाती, शनि ढैया या शनि की महादशा से पीड़ित हैं उन्हें दशरथकृत शनि स्तोत्र का नियमित पाठ करना चाहिए। इस पाठ को नियमित करने से भगवान शनि प्रसन्न होते हैं तथा जीवन की समस्त परेशानियों से मुक्ति दिलाकर जीवन को मंगलमय बनाते हैं।दशरथकृत शनि स्तोत्र
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।
प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत।
एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल:।।...

त्रेतायुग में राम और रावण युद्ध के बाद जब प्रभु श्रीराम अयोध्या लौट आए तो उन्होंने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन कराया। यज्ञ करने के बाद अश्व को स्वतन्त्र विचरण करने के लिए छोड़ दिया जाता था। जिसके पीछे यज्ञकर्ता राजा की सेना होती थी। जब यह अश्व दिग्विजय यात्रा पर जाता था तो स्थानीय लोग इसके पुनरागमन की प्रतिक्षा करते थे। इस अश्व के चुराने या इसे रोकने वाले नरेश से युद्ध होता था। यदि यह अश्व खो जाता तो दूसरे अश्व से यह क्रिया पुन: आरम्भ की जाती थी।जिस तरह एक बार लव और कुश ने अश्‍वमेध के अश्व को रोककर श्रीराम को चुनौती थी थी और तब हनुमाजी को युद्ध के लिए भेजा था। लव और कुश से युद्ध के दौरान हनुमानजी समझ गए कि वे कौन हैं तो उन्होंने खुद को लव और कुश के हाथों बंदी बनवा लिया था। तब बाद में लक्ष्मण आदि युद्ध करने गए और परास्त हो गए तो अंत में श्रीराम आए थे। उसी प्रकार जब यज्ञ का घोड़ा देवपुर पहुंचा तो शिवभक्त राजा वीरमणि के पुत्र रुक्मांगद ने श्रीराम के घोड़े कोअब देवपुर और अयोध्या की सेना में युद्ध तो होना ही था। वीरमणि ने सुना कि श्रीराम के अनुज शत्रुघ्न की वाहिनी युद्ध के लिए बढ़ती चली आ रही है, तब उन्होंने सशस्त्र सेना तैयार करने के लिए अपने प्रबल पराक्रमी सेनापति रिपुवार को आदेश दे दिया। फिर स्वयं शिवभक्त राजा वीरमणि अपने वीरमणि के भाई वीरसिंह, भानजे बनमित्र तथा राजकुमार रुक्मांगद के साथ युद्ध के लिए रणभूमि में पहुंच गया।भीषण युद्ध हुआ जिसमें हनुमानजी ने सभी को पराजित कर दिया। अंत में वीरमणि को हनुमानजी ने मूर्च्छित कर दिया। शिव‍भक्ति वीरमणि को शिवजी ने वरदान दिया था कि जब‍ भी संकट आएगा तो मैं तुम्हारी सहायता करूंगा। भगवान अपने गणों के साथ युद्ध के मैदान में पहुंच गए।
णों से सभी कुछ छिन्न भिन्न कर दिया। वीरभद्र ने शत्रुघ्न के पुत्र पुष्कल का सिर काट दिया और शिवजी ने शत्रुघ्न को घायल कर दिया। हनुमाजी ने दोनों को रथ में रखा और सुरक्षित किया। फिर हनुमानजी सेना का मनोबल बढ़ाते हुए गर्जना करके आगे बढे और शिवजी के सामने जाकर खड़े हो गए। फिर दोनों में भयंकर और प्रलयंकारी युद्ध हुआ।चूंकि हनुमानजी रुद्रावतार थे और उन्हें सभी देवी देवताओं ने वरदान दे रखा था कि कोई अस्त्र शस्त्र से तुम बंध नहीं सकते हो और ना ही पराजित हो सकते हो। इस कारण भगवान शंकर और हनुमानजी में प्रलंयंकारी युद्ध हुआ। दोनों ओर से हर तरह के दिव्यास्त्रों का प्रयोग किया जाने लगा। हनुमानजी के पास शिवजी के हर दिव्यास्त्र का तोड़ था।युद्ध भयानक से भयानक होता जा रहा था। यह देखकर भगवान राम वहां प्रकट हुए और श्रीरामजी ने हनुमानजी को समझाया कि आप किससे युद्ध कर रहे हो। शिव ही राम है और राम ही शिव है। यह सुनकर हनुमानजी को शिव में ही राम का रूप नजर आने लगा। यह देखकर वे अपना युद्ध रोककर भगवान शिव और राम के आगे हाथ जोड़कर खड़े हो गए।हनुमानजी के पराक्रम को देखकर भगवान शिव बहुत ही प्रसन्न हुए और हनुमानजी को मनचाहा वर मांगने को कहा। इस प्रकार इस युद्ध का अंत हुआ। इस युद्ध में श्रीराम और भगवान शंकर ही लीला थी। इस युद्ध में भगवान शंकर हनुमानजी की परीक्षा ले रहे थे।...

हमारे सनातन धर्म में प्रकृति को परमात्मा से अभिन्न माना गया है इसलिए हमने प्रकृति की भी परमात्मा के रूप में ही आराधना की है। चाहे नदी हो, पर्वत हो या फिर वृक्ष, हमने सभी में परमात्मा के रूप का दर्शन किया है। परिक्रमा हमारी सनातन पूजा पद्धति का अहम हिस्सा हैं। हिन्दू धर्म में परिक्रमा जिसे 'प्रदक्षिणा' भी कहा जाता है- मंदिर, देव प्रतिमा, पवित्र स्थानों, नदियों व पर्वतों की भी होती है।कलियुग में गोवर्धन पर्वत, जिन्हें गिरिराज भी कहा जाता है, की परिक्रमा बहुत ही महत्वपूर्ण मानी गई है। गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा श्रद्धालुओं के सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाली होती है। गोवर्धन पर्वत को योगेश्वर भगवान कृष्ण का साक्षात स्वरूप माना गया है।गिरिराज गोवर्धन को प्रत्यक्ष देव की मान्यता प्राप्त है। इन्हीं गोवर्धन पर्वत को द्वापर युग में भगवान कृष्ण द्वारा इन्द्र का मद चूर करने के लिए एवं ब्रजवासियों को इन्द्र के कोप से बचाने के लिए 7 दिनों तक अपने वाम हाथ की कनिष्ठा अंगुली के नख पर धारण किया गया था। कलियुग में गिरिराज गोवर्धन को भगवान कृष्ण का ही साक्षात स्वरूप मानकर उनकी परिक्रमा की जाती है। गिरिराज गोवर्धन की यह परिक्रमा अनंत फलदायी व पुण्यप्रद होती है।गिरिराज गोवर्धन उत्तरप्रदेश के मथुरा जिले से लगभग 22 किमी की दूरी पर स्थित है। गिरिराज गोवर्धन पर्वत 21 किमी के परिक्षेत्र में फैला हुआ है। गिरिराज पर्वत की परिक्रमा 7 कोस अर्थात 21 किमी की होती है।तीन हैं मुखारविंद-गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा वैसे तो कहीं से भी प्रारंभ की जा सकती है किंतु मान्यता अनुसार गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा प्रारंभ करने हेतु 3 मुखारविंद हैं। ये 3 मुखारविंद हैं-1. गोवर्धन दानघाटी, 2. जतीपुरा, 3. मानसी-गंगा।इन 3 मुखारविंदों में से किसी एक मुखारविंद से परिक्रमा प्रारंभ कर परिक्रमा पूर्ण करने पर वापस उसी मुखारविंद पर पहुंचना होता है। किंतु सभी वैष्णव भक्तजन 'जतीपुरा-मुखारविंद' से ही अपनी परिक्रमा का प्रारंभ करते हैं, शेष सभी भक्त गोवर्धन दानघाटी व 'मानसी-गंगा' मुखारविंद से अपनी परिक्रमा प्रारंभ करते हैं। 'जतीपुरा-मुखारविंद' को श्रीनाथजी के विग्रह की मान्यता प्राप्त है।गिरिराज गोवर्धन परिक्रमा में मार्ग में अनेक मठ, मंदिर, गांव व पवित्र कुंड इत्यादि आते हैं, जैसे आन्यौर, राधाकुंड, कुसुम सरोवर, गोवर्धन दानघाटी, जतीपुरा, मानसी-गंगा, गौड़ीय मठ एवं 'पूंछरी का लौठा' आदि। वैसे तो गिरिराज परिक्रमा वर्षभर अनवरत चलती रहती है किंतु विशेष पर्व जैसे पूर्णिमा, अधिकमास, कार्तिक मास, श्रावण मास में गोवर्धन परिक्रमा करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में आशातीत वृद्धि हो जाती है।दंडवति परिक्रमा-सामान्यत: गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा पैदल की जाती है किंतु कुछ श्रद्धालु इसे दंडवत करते हुए भी करते हैं जिसे 'दंडौति परिक्रमा' कहा जाता है। वृद्धजनों व बच्चों के लिए यहां रिक्शे आदि से परिक्रमा करने की भी व्यवस्था है।शापित भी हैं गिरिराजजी-एक प्राचीन कथा के अनुसार गिरिराज गोवर्धन शापित हैं। गोवर्धन पर्वत को कलियुग में प्रतिदिन तिल-तिल घटने का श्राप मिला हुआ है। इसे विडंबना ही कहेंगे कि आज यह श्राप इस क्षेत्र के अतिक्रमणकारियों के कारण पूर्णरूपेण चरितार्थ हो रहा है।
'पूंछरी के लौठा' देते हैं साक्षी- गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा मार्ग में 'पूंछरी का लौठा' नामक स्थान आता है, जो राजस्थान में पड़ता है। यहां पहलवान को 'लौठा' कहा जाता है। यहां मंदिर में श्री हनुमानजी का विग्रह स्थापित है। प्राचीन कथा के अनुसार जब भगवान कृष्ण गोवर्धन पर्वत के इस क्षेत्र में गोचारण के लिए आते थे तब श्री हनुमानजी उनके साथ खेला करते थे। दोनों साथ-साथ भोजन व बातें किया करते थे। किंतु जब भगवान कृष्ण की लीला पूर्ण होकर उनके बैकुंठ गमन का समय आया तो हनुमानजी उदास हो गए और उनके विरह में दु:खी होकर कहने लगे कि आप तो अपने धाम जा रहे हो लेकिन मैं अकेला हो जाऊंगा, क्योंकि हनुमानजी अमर हैं।
हनुमानजी की इस बात पर भगवान कृष्ण ने उन्हें आश्वस्त किया कि कलियुग में गिरिराज गोवर्धन को मेरा साक्षात स्वरूप मानकर इसकी परिक्रमा की जाएगी और यह परिक्रमा तभी पूर्ण मानी जाएगी, जब आप स्वयं इसकी साक्षी देंगे। आपके दर्शनों के बिना गोवर्धन परिक्रमा पूर्ण नहीं मानी जाएगी, इससे आपके पास सदैव भक्तों की चहल-पहल रहा करेगी।इसी मान्यता के अनुसार गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा करते समय प्रत्येक श्रद्धालु व भक्त यहां दर्शन कर अपनी साक्षी दिलाने आते हैं। 'पूंछरी के लौठा' अर्थात हनुमानजी के दर्शन व साक्षी के उपरांत प्रारंभ वाले मुखारविंद पर पहुंचकर परिक्रमा की समाप्ति की जाती है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में वर्ष में एक बार गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए।
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केंद्र
संपर्क: astropoint_hbd@yahoo.com
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इस बार श्रावण माह का प्रारंभ अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 25 जुलाई 2021 रविवार हो होगा और 26 जुलाई को सावन का पहला सोमवार रहेगा। 22 अगस्त रविवार रक्षा बंधन के दिन श्रावण मास समाप्त हो जाएगा और भाद्रपद माह की शुरुआत हो जाएगी। आओ जानते हैं इस माह के प्रमुख व्रत और त्योहार की लिस्ट।सावन का पहला सोमवार : सोमवार, 26 जुलाई 2021 पहला श्रावण सोमवार।शीतला सप्तमी : 30 जुलाई 2021 शुक्रवार को शीतला सप्तमी व्रत रहेगा।कालाष्टमी : 31 जुलाई 2021 शनिवार को कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी का व्रत रखा जाएगा। इस दिन भैरव बाबा के लिए व्रत रखा जाता है।सावन का दूसरा सोमवार : सोमवार, 02 अगस्त 2021 दूसरा श्रावण सोमवार।कामिका एकादशी : 4 अगस्त 2021 बुधवार को कामिका एकादशी का व्रत रखा जाएगा।कृष्ण प्रदोष व्रत : 5 अगस्त 2021 गुरुवार को कृष्ण प्रदोष व्रत रखा जाएगा।शिवरात्री : 6 अगस्त 2021 शुक्रवार को शिवरात्री रहेगी। हर माह मासिक शिवरात्री आती है।सावन का तीसरा सोमवार : सोमवार, 09 अगस्त 2021 तीसरा श्रावण सोमवार।सिंजारा : 10 अगस्त 2021 को सिंजारा व्रत। हरियाली तीज से एक दिन पहले सिंजारा मनाया जाता है।
हरियाली तीज : 11 अगस्त को हरियाली तीज का व्रत रखा जाएगा।नागपंचमी :13 अगस्त 2021 शुक्रवार को शुक्ल पक्ष की पंचमी को नागपंचमी का त्योहार रहेगा।
सावन का चौथा सोमवार : सोमवार, 16 अगस्त 2021 चौथा श्रावण सोमवार।पुत्रदा एकादशी : 18 अगस्त 2021 बुधवार को श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाएगा।प्रदोष व्रत : 20 अगस्त शुक्रवार को शुक्ल प्रदोष व्रत रखा जाएगा।ओणम : 21 अगस्त 2021 शनिवार को ओणम का पर्व मनाया जाएगा जिसे थिरुवोणम कहते हैं।रक्षा बंधन : 22 अगस्त 2021 रविवार को श्रावण माह की पूर्णिमा के दिन रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाएगा।पश्‍चिम और दक्षिण भारत में श्रावण माह : वहां 9 अगस्त 2021 से श्रावण मास प्रारंभ होगा और 7 सितंबर 2021 को श्रावण मास का अंतिम दिन होगा। 9 अगस्त, 19 अगस्त, 23 अगस्त, 30 अगस्त और 6 सितंबर को श्रावण के सोमवार रहेंगे।...

हाथ की अंगुलियों में पहनने के नग या रत्न को राशि या ग्रह के अनुसार पहना जाता है। कुछ लोग कुंडली की जांच करने के बाद अंगूठी पहनते हैं। यहां 5 ऐसी अंगूठियों के बारे में पता रहे हैं जिनमें से एक पहनली तो अद्भुत चमत्कार होगा। हर कार्य में मिलेगी सफलता और सुख समृद्धि बढ़ जाएगी।1. त्रिधातु : त्रिधातु (सोना+ चांदी+तांबा) से विधिपूर्वक निर्मित अभिमंत्रित पवित्री (दरिद्रता नाशक मुद्रिका) अपने दाहिने हाथ की अनामिका अंगुली में गुरुवार को धारण करें। यह मुद्रिका अदभुत चमत्कारी होती है।2. चांदी की अंगूठी : चांदी की बिना जोड़ वाली अंगूठी तर्जनी उंगली में पहन कर रहें।3. पन्ना या हीरा : पन्ना या हीरा में से कोई एक रत्न अंगूठी में जड़वा कर धारण करें।4. सोने की अंगूठी : दाहिने हाथ की तर्जनी अंगुली में सोने की अंगूठी धारण करें।5. लहसुनिया : लहसुनिया जड़ित अंगूठी मध्यमा अंगुली में धारण करें।हालांकि इनमें से एक तभी पहनना चाहिए जबकि आपकी कुंडली में कोई विशेष समस्या ना हो। ज्योतिष से एक बार सलाह जरूर लें।...

आषाढ़ और माघ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं। इस वर्ष यह पर्व 11 जुलाई 2021 रविवार से आषाढ़ शुक्र प्रतिपदा से गुप्त नवरात्रि का प्रारंभ हो रहा है जो आषाढ़ शुक्ल नवमी अर्थात 18 जुलाई 2021 रविवार तक रहेगा। आओ जानते हैं कि गुप्त नवरात्रि क्या है? क्यों मनाई जाती है? दूसरी नवरात्रि से क्यों अलग है?हिन्दू माह के अनुसार नवरात्रि वर्ष में 4 पवित्र माह में आती है। यह चार माह है:- माघ, चैत्र, आषाढ और अश्विन। चैत्र माह की नवरात्रि को बड़ी या बसंतनवरात्रि और अश्विन माह की नवरात्रि को छोटी नवरात्रि या शारदीय नवरात्रि कहते हैं। दोनों के बीच 6 माह की दूरी है। बाकी बची दो आषाढ़ और माघ माह की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं।गुप्त अर्थात छिपा हुआ। इस नवरात्रि में गुप्त विद्याओं की सिद्धि हेतु साधना की जाती है। गुप्त नवरात्रि में तंत्र साधनाओं का महत्व होता है और तंत्र साधना को गुप्त रूप से ही किया जाता है। इसीलिए इसे गुप्त नवरात्रि कहते हैं। इसमें विशेष कामनाओं की सिद्धि की जाती है। साधकों को इसका ज्ञान होने के कारण या इसके छिपे हुए होने के कारण इसको गुप्त नवरात्र कहते हैं।क्यों मनाई जाती है?वसंत और शारदीय नवरात्रि गृहस्थों और सामान्य जनों के लिए है परंतु गुप्त नवरात्रि संतों और साधकों को लिए है। यह साधना की नवरात्रि है उत्सव की नहीं। इसलिए इसमें खास तरह की पूजा और साधना का महत्व होता है। यह नवरात्रि विशेष कामना हेतु तंत्र-मंत्र की सिद्धि के लिए होती है। गुप्‍त नवरात्रि में विशेष पूजा से कई प्रकार के दुखों से मुक्‍ति पाई जा सकती है। अघोर तांत्रिक लोग गुप्त नवरात्रि में महाविद्याओं को सिद्ध करने के लिए उपासना करते हैं। यह नवरात्रि मोक्ष की कामने से भी की जाती है।दूसरी नवरात्रि से क्यों अलग है?1. वसंत या शारदीय नवरात्रि को प्रत्यक्ष और बाकी को गुप्त नवरात्रि कहते हैं।2. प्रत्यक्ष नवरात्रि में नवदुर्गा की पूजा होती है परंतु गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की पूजा होती है।3. प्रत्यक्ष नवरात्रि में सात्विक साधना, नृत्य और उत्सव मनाया जाता है जबकि गुप्त नवरात्रि में तांत्रिक साधना और कठिन व्रत का महत्व होता है।4. प्रत्यक्ष नवरात्रि को सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति हेतु मनाया जाता है जबकि गुप्त नवरात्रि को आध्‍यात्मिक इच्छाओं की पूर्ति, सिद्धि, मोक्ष हेतु मनाया जाता है।5. यह भी कहा जाता है कि प्रत्यक्ष नवरात्रि वैष्णवों की है और गुप्त नवरात्रि शैव और शाक्तों की है।6. प्रत्यक्ष नवरात्रि की प्रमुख देवी मां पार्वती है जबकि गुप्त नवरात्रि की प्रमुख देवी मां काली है।इस माह की दिनांक 11 जुलाई, दिन रविवार से गुप्त (आषाढ़) नवरात्रि प्रारंभ होने जा रही है। हमारे सनातन धर्म में नवरात्रि का पर्व बड़े ही श्रद्धा भाव से मनाया जाता है। हिन्दू वर्ष में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ, मासों में चार बार नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है जिसमें दो नवरात्रि को प्रगट एवं शेष दो नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है।चैत्र और आश्विन मास के नवरात्रि में देवी प्रतिमा स्थापित कर मां दुर्गा की पूजा-आराधना की जाती है वहीं आषाढ़ और माघ मास में की जाने वाली देवीपूजा 'गुप्त नवरात्रि' के अंतर्गत आती है। जिसमें केवल मां दुर्गा के नाम से अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित कर या जवारे की स्थापना कर देवी की आराधना की जाती है। आइए जानते हैं कि इस नवरात्रि में किस प्रकार देवी आराधना करना श्रेयस्कर रहेगा।1. घट स्थापना, अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित करना व जवारे स्थापित करना- श्रद्धालुगण अपने सामर्थ्य के अनुसार उपर्युक्त तीनों ही कार्यों से नवरात्रि का प्रारंभ कर सकते हैं अथवा क्रमश: एक या दो कार्यों से भी प्रारंभ किया जा सकता है। यदि यह भी संभव नहीं तो केवल घट-स्थापना से देवी पूजा का प्रारंभ किया जा सकता है।2. सप्तशती पाठ व जप- देवी पूजन में दुर्गा सप्तशती के पाठ का बहुत महत्व है। यथासंभव नवरात्रि के नौ दिनों में प्रत्येक श्रद्धालु को दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए किंतु किसी कारणवश यह संभव नहीं हो तो देवी के नवार्ण मंत्र का जप यथाशक्ति अवश्य करना चाहिए।!! नवार्ण मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे' !!3. पूर्णाहुति हवन व कन्या भोज- नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व का समापन पूर्णाहुति हवन एवं कन्या भोज कराकर किया जाना चाहिए। पूर्णाहुति हवन दुर्गा सप्तशती के मंत्रों से किए जाने का विधान है किंतु यदि यह संभव ना हो तो देवी के 'नवार्ण मंत्र', 'सिद्ध कुंजिका स्तोत्र' अथवा 'दुर्गाअष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र' से हवन संपन्न करना श्रेयस्कर रहता है।नवरात्रि घट स्थापना मुहू‍र्त-नवरात्रि के यह नौ दिन मां दुर्गा की पूजा-उपासना के दिन होते हैं। अनेक श्रद्धालु इन नौ दिनों में अपने घरों में घट-स्थापन कर अखंड ज्योति की स्थापना कर नौ दिनों का उपवास रखते हैं। आइए जानते हैं कि नवरात्रि में घट-स्थापन एवं अखंड ज्योति प्रज्ज्वलन का शुभ मुहूर्त कब है-प्रात:- 9:04 से दोपहर 12:25 तकअभिजित मुहूर्त- अपराह्न 11:58 मिनट से 12:51 तकदोपहर- 2:05 से 3:46 बजे तकसायं 7:06 से 9:46 बजे तकअखंड ज्योति-जो श्रद्धालुगण अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित करना चाहते हैं वे बाती के रूप कलावा (मौली) का प्रयोग करें इससे मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है एवं साधक सदैव लक्ष्मी की अनुकंपा बनी रहती है।...

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन माह अंतिम माह होता है इसके बाद चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ और फिर श्रावण मास। इस बार श्रावण माह का प्रारंभ अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 25 जुलाई 2021 रविवार हो होगा और 26 जुलाई को सावन का पहला सोमवार रहेगा। 22 अगस्त रविवार रक्षा बंधन के दिन श्रावण मास समाप्त हो जाएगा और भाद्रपद माह की शुरुआत हो जाएगी। आओ जानते हैं इस माह के 5 बड़े त्योहार।1. शिवरात्रि : 6 अगस्त 2021 शुक्रवार को शिवरात्री रहेगी। श्रावण मास की शिवरात्रि बहुत ही महत्वपूर्ण होती है।मासिक शिवरात्रि हर माह रहती है।2. हरियाली तीज : 11 अगस्त को हरियाली तीज का व्रत रखा जाएगा। हरियाली तीज से एक दिन पहले सिंजारा दूज मनाया जाता है।3. नागपंचमी : 13 अगस्त 2021 शुक्रवार को शुक्ल पक्ष की पंचमी को नागपंचमी का त्योहार रहेगा।4. ओणम : 21 अगस्त 2021 शनिवार को ओणम का पर्व मनाया जाएगा जिसे थिरुवोणम कहते हैं।5. रक्षा बंधन : श्रावण माह के अंतिम दिन 22 अगस्त 2021 रविवार को श्रावण माह की पूर्णिमा के दिन रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाएगा। श्रावण माह में 31 जुलाई 2021 शनिवार को कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी का व्रत रखा जाएगा। इस दिन भैरव बाबा के लिए व्रत रखा जाता है। इसके अलावा 4 अगस्त 2021 बुधवार को कामिका एकादशी और 18 अगस्त 2021 बुधवार को श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाएगा।...

भारतीय वैदिक ज्योतिष और लाल किताब के सिद्धांतों, नियमों और फलादेश पढ़ने के तरीके में बहुत अंतर है। आओ जानते हैं कि लाल किताब के वे कौनसे तीन सिद्धांत है जिन पर आधारित सभी नियम हैं।1. अनंत ब्रह्मांड में है ईश्वर की सत्ता : लाल किताब मानती है कि ईश्वर एक ही है जिसकी इस अनंत ब्रह्मांड में अनंत सत्ता विद्यमान है और जिसके बगैर पत्ता भी नहीं हिलता है। जो ईश्वर की शरण में होते हैं वे निम्नलिखित प्राभाव से बच जाते हैं।2. अंत ग्रह और नक्षत्र से जीवन होता प्रभावित : अनंत अंतरिक्ष में अनंत ग्रह, नक्षत्र और तारे हैं जो उस सर्वशक्तिमान की शक्ति से चलायमान है। जिनका संपूर्ण ब्रह्मांड में प्रकाश और प्राभाव व्याप्त है। इनके प्रभाव से आप बच नहीं सकते हो।3. मुट्ठी में है कर्म का भाग्य : आपके द्वारा अगले-पिछले जन्म में जो भी कर्म किए गए हैं उन सभी से ही आपके भविष्य का निर्माण होता है। कर्म से ही सौभाग्य और दुर्भाग्य का निर्माण होता है। मुठ्ठी में बंद भाग्य को पढ़कर उसे पलटा भी जा सकता है परंतु उसके बदले कुछ बलि देना पड़ती है।
जैसे नदी का काम है बहना। उसके बहाव को रोककर आप उससे नहर निकाल सकते हो, बिजली बना सकते हो और उसके बहाव की दिशा भी बदल सकते हो। गलत दिशा से उसे सही दिशा में या सही दिशा से उसे गलत दिशा में बहने के लिए मजबूर कर सकते हो। परंतु इससे नदी की स्वाभाविक गति रुक जाएगी। इसी प्रकार से कोई किसी का भाग्य बदलने की कोशिश करता है, तो उसे अपनी उसके स्थान पर बलि देनी पड़ती है। अर्थात यदि आपको भविष्य में आम का फल मिलने वाला था लेकिन वह नहीं मिला क्योंकि आपने दिशा बदल दी और अब आपको अमरूद का फल मिलेगा। तो कुछ ना कुछ बलिदान तो देना ही होगा। फल अच्छा भी हो सकता है या बुरा भी।नौ ग्रहों का क्षेत्र विस्तार:-बुध विस्तार और व्यापकता का भाव देता है। राहु बुध का सहयोगी और मित्र है। यह देखने में नीला दिखाई देता है, लेकिन उसका विस्तार कितना है, कोई आज तक उसे नाप नहीं पाया है। सूर्य प्रकाश और शनि अन्धकार का दाता है। हर इंसान के जीवन में प्रकाश और अंधकार का दौर आता है। उसे जीवन में किसी न किसी प्रकार के अंधेरे से लड़ना होता है। उसी लड़ाई को ताकत देते है गुरु। गुरु हवा का कारक है, जब तक जीव के भीतर प्राणवायु प्रवाहित होती रहती है वह जीवित माना जाता है और जैसे ही अपना प्राणवायु का प्रवाह बंद हो जाता है तो जीव मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।शुक्र पाताल के रूप में जाना जाता है। भूमि के भीतर क्या है यह किसी को पता नहीं है। कितनी गहराई पर क्या छुपा बैठा है यह तो कर्म करने के बाद ही पता चलता है। केतु को शुक्र का सहयोगी माना जाता है और चन्द्रमा को धरती माना गया है। इसके द्वारा ही किसी भी जीव का जन्म और आगे के जीवन के बारे में पता चलता है। मंगल अपना पराक्रम दिखाने वाला पूंछ वाला सितारा कहा गया है, इसके पराक्रम के बिना कोई भी कार्य संभव नहीं है।कुंडली में दो प्रकार के प्रभाव सामने होते हैं- एक प्रकट और दूरे शक के दायरे में होते हैं। सितारा तो कहता है कि जातक को राजयोग है, परंतु जातक को भीख मांग कर अपना जीवन गुजारना पड़ता है। जो भी निश्चित प्रभाव होता है वही भाग्य का संकेत देता है और वही अटल होता है। जब तक किसी प्रकार से किसी देश काल और परिस्थति का अध्ययन नहीं कर लिया जाता निश्चित कथन नहीं किया जा सकता है। क्योंकि देश काल और परिस्थति के अनुसार कुछ दिखाई दे रहा होता है और होता कुछ और ही है। मतलब यह कि कुंडली में राजयोग होने के बावजूद भीख क्यों मांगना पड़ रहा है यही शक वाला क्षेत्र है।ग्रहों का शक वाला क्षेत्र हमेशा के लिए स्थिर नहीं होता है। उस प्रभाव को लालकिताब के उपायों के द्वारा दूर किया जा सकता है।...

5 जुलाई को योगिनी एकादशी के बाद इंतजार रहेगा देवशयनी एकादशी का.... यह एकादशी बड़ी एकादशी मानी गई है... इस बार यह एकादशी 20 जुलाई को आ रही है। देवशयनी एकादशी व्रत की शुरुआत दशमी तिथि की रात्रि से ही हो जाती है। दशमी तिथि की रात्रि के भोजन में नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। अगले दिन प्रात: काल उठकर दैनिक कार्यों से निवृत होकर व्रत का संकल्प करना चाहिए।भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर आसीन कर उनका षोडशोपचार सहित पूजन करना चाहिए। पंचामृत से स्नान करवाकर, तत्पश्चात भगवान की धूप, दीप, पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए।भगवान को समस्त पूजन सामग्री, फल, फूल, मेवे तथा मिठाई अर्पित करने के बाद विष्णु मंत्र द्वारा स्तुति की जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त शास्त्रों में व्रत के जो सामान्य नियम बताये गए हैं, उनका कठोरता से पालन करना चाहिए।महत्व :आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को आषाढ़ी एकादशी कहते हैं। इसे देवशयनी एकादशी, हरिशयनी और पद्मनाभा एकादशी आदि नाम से भी जाना जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ी एकादशी जून या जुलाई के महीने में आती है।आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक का चार माह का समय हरिशयन का काल समझा जाता है। वर्षा के इन चार माहों का संयुक्त नाम चातुर्मास दिया गया है। इसके दौरान जितने भी पर्व, व्रत, उपवास, साधना, आराधना, जप-तप किए जाते हैं, उनका विशाल स्वरूप एक शब्द में 'चातुर्मास्य' कहलाता है। चातुर्मास से चार मास के समय का बोध होता है और चातुर्मास्य से इस समय के दौरान किए गए सभी व्रतों-पर्वों का समग्र बोध होता है।पूजा विधि : वे श्रद्धालु जो देवशयनी एकादशी का व्रत रखते हैं, उन्हें प्रात:काल उठकर स्नान करना चाहिए।पूजा स्थल को साफ करने के बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर विराजमान करके भगवान का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए।भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला चंदन चढ़ाएं। उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित करें।भगवान विष्णु को पान और सुपारी अर्पित करने के बाद धूप, दीप और पुष्प चढ़ाकर आरती उतारें और इस मंत्र द्वारा भगवान विष्णु की स्तुति करें…मंत्र: ‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत्सुप्तं भवेदिदम्। विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।।'अर्थात हे जगन्नाथ जी! आपके निद्रित हो जाने पर संपूर्ण विश्व निद्रित हो जाता है और आपके जाग जाने पर संपूर्ण विश्व तथा चराचर भी जाग्रत हो जाते हैं।इस प्रकार भगवान विष्णु का पूजन करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन या फलाहार ग्रहण करें।देवशयनी एकादशी पर रात्रि में भगवान विष्णु का भजन व स्तुति करना चाहिए और स्वयं के सोने से पहले भगवान को शयन कराना चाहिए।1. देवशयनी एकादशी संकल्प मंत्र-सत्यस्थ: सत्यसंकल्प: सत्यवित् सत्यदस्तथा।धर्मो धर्मी च कर्मी च सर्वकर्मविवर्जित:।।कर्मकर्ता च कर्मैव क्रिया कार्यं तथैव च।श्रीपतिर्नृपति: श्रीमान् सर्वस्यपतिरूर्जित:।।2. देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु को प्रसन्न करने का मंत्र -सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत सुप्तं भवेदिदम।विबुद्धे त्वयि बुध्येत जगत सर्वं चराचरम।3. देवशयनी एकादशी विष्णु क्षमा मंत्र
भक्तस्तुतो भक्तपर: कीर्तिद: कीर्तिवर्धन:।कीर्तिर्दीप्ति: क्षमाकान्तिर्भक्तश्चैव दया परा।।एकादशी तिथि आरंभ: 19 जुलाई , 2021 को रात्रि 09 बजकर 59 मिनट.
एकादशी तिथि समाप्त: 20 जुलाई, 2021 को रात्रि 07 बजकर 17 मिनट....

घर या मंदिर में पूजा करने के लिए कुछ विशेष सामग्री का होना जरूरी है। उन सभी को मिलाकर ही पूजा की जाती है। हालांकि पूजा सामग्री तो बहुत सारी होती है, लेकिन यहां प्रस्तुत है पूजा के 20 प्रतीक वस्तुएं।1. शालग्राम : विष्णु की एक प्रकार की मूर्ति जो प्रायः पत्थर की गोलियों या बटियों आदि के रूप में होती है और उस पर चक्र का चिह्न बना होता है। जिस शिला पर यह चिह्न नहीं होता वह पूजन के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती। यह सभी तरह की मूर्तियों से बढ़कर है और सिर्फ इसी की पूजा का विधान है।2. शिवलिंग : शिव की एक प्रकार की मूर्ति जो प्रायः गोलाकार में जनेऊ धारण किए होती है। इसे शिवलिंग कहा जाता है अर्थात शिव की ज्योति। यह सभी तरह की मूर्तियों से बढ़कर है और सिर्फ इसी की पूजा का विधान है। शालग्राम और शिवलिंग के घर में होने से घर की ऊर्जा में संतुलन कायम होता है और सभी तरह की शुभता बनी रहती है।3. आचमन : छोटे से तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें तुलसी डालकर हमेशा पूजा स्थल पर रखा जाता है। यह जल आचमन का जल कहलाता है। इस जल को तीन बार ग्रहण किया जाता है। माना जाता है कि ऐसे आचमन करने से पूजा का दोगुना फल मिलता है।4. पंचामृत : पंजामृत का अर्थ पांच प्रकार के अमृत। दूध, दही, शहद, घी व शुद्ध जल के मिश्रण को पंचामृत कहते हैं। कुछ विद्वान दूध, दही, मधु, घृत और गन्ने के रस से बने द्रव्य को 'पंचामृत कहते हैं और कुछ दूध, दही, घी, शक्कर, शहद को मिलाकर पंचामृत बनाते हैं। मधुपर्क में घी नहीं होता है। इस सम्मिश्रण में रोग निवारण गुण विद्यमान होते हैं, यह पुष्टिकारक है।5. चंदन : चंदन शांति व शीतलता का प्रतीक है। एक चंदन की बट्टी और सिल्ली पूजा स्थल पर रहना चाहिए। चंदन की सुगंध से मन के नकारात्मक विचार समाप्त होते हैं। चंदन को शालग्राम और शिवलिंग पर लगाया जाता है। माथे पर चंदन लगाने ने मस्तिष्क शांत भाव में रहता है।6. अक्षत : अत्यंत श्रम से प्राप्त संपन्नता का प्रतीक है चावल जिसे अक्षत कहा जाता है। अक्षत अर्पित करने का अर्थ यह है कि अपने वैभव का उपयोग अपने लिए नहीं, बल्कि मानव की सेवा के लिए करेंगे।7. पुष्प: देवी या देवता की मूर्ति के समक्ष फूल अर्पित किए जाते हैं। यह सुंदरता का अहसास जगाने के लिए है। इसका अर्थ है कि हम भीतर और बाहर से सुंदर बनें।8. नैवेद्य : नैवद्य में मिठास या मधुरता होती है। आपके जीवन में मिठास और मधुरता होना जरूरी है। देवी और देवता को नैवद्य लगाते रहने से आपके जीवन में मधुरता, सौम्यता और सरलता बनी रहेगी। फल, मिठाई, मेवे और पंचामृत के साथ नैवेद्य चढ़ाया जाता है।9. रोली : यह चुने की लाल बुकनी और हल्दी को मिलाकर बनाई जाती है। इसका एक नाम कुंकूम भी है। इसे रोज नहीं लगाया जाता। प्रत्येक पूजा में इसे चावल के साथ माथे पर लगाते हैं। इसे शुभ समझा जाता है। यह आरोग्य को धारण करता है। रक्त वर्ण साहस का भी प्रतीक है। रोली को माथे पर नीचे से ऊपर की ओर लगाना अपने गुणों को बढ़ाने की प्रेरणा देता है।
10. धूप : धूप सुगंध का विस्तार करती है। सुगंध से आपके मन और ‍मस्तिष्क में सकारात्मक भाव और विचारों का जन्म होता है। इससे आपके मन और घर का वातारवण शुद्ध और सुगंधित बनता है। सुगंध का जीवन में बहुत महत्व है। धूप को अगरबत्ती नहीं कहते हैं। घर में अगरबत्ती की जगह धूप जलाएं। धूप जिसमें जलाते हैं उसका एक अलग से पात्र आता है।11. दीपक : पारंपरिक दीपक मिट्टी का ही होता है। इसमें पांच तत्व हैं मिट्टी, आकाश, जल, अग्नि और वायु। कहते हैं कि इन पांच तत्वों से ही सृष्टि का निर्माण हुआ है। अतः प्रत्येक हिंदू अनुष्ठान में पंचतत्वों की उपस्थिति अनिवार्य होती है।12. गरुड़ घंटी : जिन स्थानों पर घंटी बजने की आवाज नियमित आती है, वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है। इससे नकारात्मक शक्तियां हटती है। नकारात्मकता हटने से समृद्धि के द्वार खुलते हैं। घर के पूजा स्थान पर गरुड़ घंटी रखी जाती है।13. शंख : जिस घर में शंख होता है वहां लक्ष्मी का वास होता है। शंख सूर्य व चंद्र के समान देवस्वरूप है जिसके मध्य में वरुण, पृष्ठ में ब्रह्मा तथा अग्र में गंगा और सरस्वती नदियों का वास है। तीर्थाटन से जो लाभ मिलता है, वही लाभ शंख के दर्शन और पूजन से मिलता है।
14. जल कलश : जल से भरा कलश देवताओं का आसन माना जाता है। दरअसल, हम जल को शुद्ध तत्व मानते हैं, जिससे ईश्वर आकृष्ट होते हैं। इसे मंगल कलश भी कहा जाता है। एक कांस्य या ताम्र कलश में जल भरकर उसमें कुछ आम के पत्ते डालकर उसके मुख पर नारियल रखा होता है। कलश पर रोली, स्वस्तिक का चिह्न बनाकर, उसके गले पर मौली (नाड़ा) बांधी जाती है। जल कलश में पान और सुपारी भी डालते हैं।15. कौड़ी : पुराने समय से कुछ ऐसी परंपराएं या उपाय प्रचलित हैं जिन्हें अपनाने पर देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। पीली कौड़ी को देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। एक-एक पीली कौड़ी को अलग-अलग लाल कपड़े में बांधकर घर में स्थित तिजोरी और जेब में रखने से धन समृद्धि बढ़ती है।16. तांबे का सिक्का : तांबे में सात्विक लहरें उत्पन्न करने की क्षमता अन्य धातुओं की अपेक्षा अधिक होती है। कलश में उठती हुई लहरें वातावरण में प्रवेश कर जाती हैं। यदि कलश में तांबे के पैसे डालते हैं, तो इससे घर में शांति और समृद्धि के द्वार खुलेंगे। देखने में ये उपाय छोटे से जरूर लगते हैं लेकिन इनका असर जबरदस्त होता है।17.पाट : एक ऐसा पटिया जिस पर उक्त सभी सामग्री को रखा जाता है। कुल लोग सिंहासन (चौकी, आसन) की तरह पाट बनवा लेते हैं। हालांकि आजकल बाजार में बने बनाए मंदिर आने लगे हैं जिसके अंदर यह सभी सामग्री रखी जा सकती है, लेकिन मंदिर और मूर्ति घर में रखना चाहिए या नहीं यह किसी लाल किताब के विशेषज्ञ से पूछकर ही रखें। पाट पर सफेद, पीला या लाल वस्त्र बिझाकर ही उस पर उक्त सामग्री रखी जाती है।.दुर्गामूर्ति: दुर्गा जी की स्वर्ण, रजत या ताम्र मूर्ति रखें। अगर ये उपलब्ध न हो सकें, तो मिट्टी की मूर्ति अवश्य होनी चाहिए। लेकिन मूर्ति का साइज बहुत बड़ा नहीं होना चाहिए। चूंकि नवरात्रि में माता की पूजा विशेष रूप से की जाती है इसलिए माता की मूर्ति जरूर होना चाहिए।
19.गंगा जल : एक तांबे के बुत ही छोटे से लोटे में गंगाजल भरकर अवश्य रखें। कई बार हमें इस जल की आवश्यकता पड़ती है। गंगाजल का कलश भी जल कलश की तरह रखें।20. अन्य सामग्री : हल्दी की गांठ, यज्ञोपवीत, बाल मुकुंद और गणेशजी की पीतल की छोटी सी मूर्ति, कर्पूर, इत्र की शीशी, चांदी का सिक्का, नाड़ा (लच्छा), शहद (मधु), इलायची (छोटी), लौंग, खड़ा धनिया, दूर्वा,रुद्राक्ष व स्फटीक की माला और पूजन समग्री।...

कई लोगों ने जगमग या चकमक पत्थर देखा होगा। हालांकि वर्तमान पीढ़ी को इसकी जानकारी नहीं होगी। मुख्य चकमक पत्थर सफेद रंग का होता है और बड़ा ही अद्भुत होता है यह पत्थर। आओ जानते हैं इस पत्थर के उपयोग क्या क्या है।कहते हैं कि चकमक पत्‍थर का उपयोग मानव लगभग 2 मिलियन साल से करता आ रहा है। यह पत्‍थर आपको नदी, समुद्र के किनारे या जंगल में आसानी से मिल जाएगा। चकमक परिवार के अंदर कई प्रकार के पत्थर आते हैं। जिनमे प्रमुख शामिल हैं क्वार्ट्ज, चर्ट, ओब्सीडियन, अगेट या जैस्पर। चकमक पत्थर एक कठोर तलछटी चटान होती है। यह एक माइक्रोक्रिस्टलाइन क्वार्ट्ज का रूप होता है। जिसको वैज्ञानिक अक्सर चीर के नाम से जानते हैं।उपयोग :1. यदि आपके पास मासिच या लाइटर है तो इस पत्थर को घर में रखने की जरूरत नहीं। लेकिन यदि आप जंगल में फंस जाएं या बगैर माचिस या लाइटर के आग जलाने का काम पड़े तो आप सफेद रंग के इस पत्थर को आसानी से अपने आसपास ढूंढ सकते हैं। चकमक पत्थर एक ऐसा पत्थर है जिसे इसी के समान दूसरे पत्थर के साथ रगड़ने पर लाइटर जैसी चिंगारी निकलती है। प्राचीनकाल में इसी पत्थर की चिंगारी से आग लगाई जाती है।2. पुराने जमाने लोग से पत्‍थर को तोड़कर इससे तेज धारधार हथियार बनाते थे। चाकू, छूरी, तलवार के अलावा इस पत्‍थर को ड्रील करने में भी उपयोग में ले सकते हैं।3. चकमक पत्थर का उपयोग रत्न के रूप में भी किया जाता है। यह आपको आत्मविश्वास और साहस देता है। इसे धारण करने से उदासी, हताशा और निराशा नहीं रहती है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार इस पत्थर को 84 रत्नों में शामिल किया गया है।4. चकमक पत्थर का उपयोग घर की सजावट करने में भी किया जाता है। यह पत्‍थर सफेद के साथ ही गुलाबी, हरा, नीला, ग्रे और काले रंग का भी होता है। इसका उपयोग घर की दीवार बनाने में भी होता है।5. इस पत्थर के गहने भी बनाए जाते हैं। इसका गहनों में भी उपयोग किया जाता है। जैसे रत्नों की ग्रेडिंग करने, काटने, पॉलिश करने और अलंकरण करने में इसका उपयोग होता है।...

हिंदू धर्म में दोनों पक्षों की चतुर्थी का विशेष महत्व होता है। पंचांग के अनुसार हर माह शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी तिथि भगवान गणेश के समर्पित की जाती हैं। जहां शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी कहा जाता है तो वहीं कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि को गणेश संकष्टी चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन भक्त व्रत रखकर भगवान गणेश का विधि-विधान के साथ पूजा करते हैं। इस बार आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी 27 जून 2021 दिन रविवार को आ रही है। रविवार के दिन पड़ने के कारण यह तिथि और भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। जो संकष्टी चतुर्थी रविवार के दिन आती है उसे रविवती संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। । तो आइए जानते हैं संकष्टी चतुर्थी महत्व, मुहूर्त औरपूजाविधि।
संकष्टी चतुर्थी मुहूर्त-आषाढ़ मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि आरंभ- 27 जून 2021 शाम 03 बजकर 54 मिनट सेआषाढ़ मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि समाप्त- 28 जून 2021 दोपहर 02 बजकर 16 मिनट परसंकष्टी के दिन चंद्रोदय - 27 जून 2021 9 बजकर 05 मिनट परसंकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि-चतुर्थी तिथि के दिन प्रातः काल जल्दी उठकर स्नानादि कर लें।इस दिन पीले या लाल रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है।अब पूजा स्थान की सफाई करके एक लाल रंग का आसन बिछाकर भगवान गणेश की प्रतिमा को स्थापित करें।गणेश जी के समक्ष घी का दीपक व सुगंधित धूप प्रज्वलित करें और सिंदूर से तिलक करें।अब गणेश जी को फल-फूल व मिष्ठान अर्पित करें। मिष्ठान में मोदक या मोतीचूर के लड्डू अर्पित करने चाहिए।गणेश जी को दूर्वा अतिप्रिय है इसलिए इस दिन 21 दूर्वा की गांठ भगवान गणेश के अलग-अलग नामों का उच्चारण करते हुए अर्पित करें।संकष्टी चतुर्थी का व्रत गणेश जी की पूजा से आरंभ होकर चंद्रमा को अर्घ्य देने पर पूर्ण होता है।इस दिन यथाशक्ति दान देने के पश्चात व्रत का पारण करना चाहिए।...

भगवान श्रीकृष्ण को मोर मुकुट धारी कहा जाता है क्योंकि वे अपने मुकुट पर मोर पंख धारण करते थे। मोरपंख धारण करने के पांच कारण बताए जाते हैं, लेकिन हमें तो मात्र एक कारण ही समझ में आता है। आओ जानते हैं मोर पंख धारण करने की कथा।1. राधा की निशानी : महारास लीला के समय राधा ने उन्हें वैजयंती माला पहनायी थी। कहते हैं कि एक बार श्रीकृष्‍ण राधा के साथ नृत्य कर रहे थे तभी उनके साथ ही झूमकर नृत्य कर रहे एक मोर का पंख भूमि पर गिर गया तो प्रभु श्रीकृष्ण ने उठाकर उसे अपने सिर पर धारण कर लिया। जब राधाजी ने उनसे इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि इन मोरों के नाचने में उन्हें राधाजी का प्रेम दिखता है। कहते हैं कि श्री राधा रानी के यहां बहुत सारे मोर थे। यह भी कहा जाता है कि बचपन से ही माता यशोदा अपने लल्ला के सर इस मोर पंख को सजाती थीं।वैजयंती माला के साथ ही मोर पंख धारण करने की एक बड़ी वजह राधा से उनका अटूट प्रेम है। मात्र इस एक बात के अलवा अन्य बातें सिर्फ मनमानी है।2. जीवन के सभी रंग : मोरपंख में सभी रंग समहाहित है। भगवान श्रीकृष्ण का जीवन कभी एक जैसा नहीं रहा। उनके जीवन में सुख और दुख के अलावा कई अन्य तरह के भाव भी थे। मोरपंख में भी कई रंग होते हैं। यह जीवन रंगीन है लेकिन यदि आप दुखी मन से जीवन को देखेंगे तो हर रंग बेरंग लगेगा और प्रसन्न मन से देखेंगे तो यह दुनिया बहुत ही सुंदर है बिल्कुल मोरपंख की तरहा।3. ग्रह दोष : कई ज्योतिष विद्वान मानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने यह मोरपंख इसलिए धारण किया था क्योंकि उनकी कुंडली में काल सर्प दोष था। मोर पंख धारण करने से यह दोष दूर हो जाता है, लेकिन जो जगत पालक है उसे किसी काल सर्प दोष का डर नहीं।4. ब्रह्मचर्य का प्रतीक : कई लोग यह मानते हैं कि मोर ब्रह्मचर्य का प्रतीक है। मोर पूरे जीवन एक ही मोरनी के संग रहती है। मोरनी का गर्भ धारण मोर के आंसुओ को पीकर होता है। अतः इसीलिए इतने पवित्र पक्षी के पंख को स्वयं भगवान श्री कृष्ण अपने मष्तक पर धारण करते हैं।5. शत्रु और मित्र समान : कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण मोर पंख धारण करके यह संदेश देना चाहते हैं कि मेरे लिए दोनों ही समान है। श्रीकृष्ण के भाई शेषनाग के अवतार थे और मोर तो नाग का शत्रु होता है। मोरपंख को माथे पर लगा कर उन्होंने यह बताया है कि मित्र और शत्रु के लिए उनके मन में समभाव है।...

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन माह अंतिम माह होता है इसके बाद चैत्र माह वैशाख, ज्येष्ठ और फिर आषाढ़। इस बार आषाढ़ का प्रारंभ अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 25 जून 2021 शुक्रवार को प्रारंभ होगा और 24 जुलाई शनिवार 2021 गुरु पूर्णिाम तक रहेगा। आओ जानते हैं इस माह के प्रमुख 10 बड़े तीज-त्योहार और पर्व।1. वट सावित्री पूर्णिमा : 25 जून शुक्रवार को वट सावित्री पूर्णिमा का व्रत रहेगा। 25 जून को गुरु हरगोविन्दजी की जयंती भी है।2. सीतलाष्टमी : 2 जुलाई 2021 को सीतलाष्टमी का पर्व है जिसे बसोरा या बसोड़ भी कहते हैं।3. हलहारिणी अमावस्या : 9 जुलाई 2021 को हलहारिणी अमावस्या है। यह श्राद्ध, दान पुण्य की अमावस्या भी है।4. गुप्त नवरात्रि : 11 जुलाई 2021 को अषाढ़ शुक्ल पक्ष प्रारंभ होगा और इसी दिन गुप्त नवरात्रि का भी प्रारंभ होगा जो 18-19 जुलाई तक चलेगी।5. जगन्नाथ रथयात्रा : 12 जुलाई 2021 को भगवान जगन्नाथ रथयात्रा प्रारंभ होगी। हालांकि इस बार भी भक्तों के बगैर यात्रा होगी।6. ताप्ती जयंती : 16 जुलाई 2021 को मां ताप्ती जयंती रहेगी और इसी दिन कर्क संक्रांति भी होगी। कर्क संक्रांति से सूर्य दक्षिणायन हो जाता है। ताप्ती नदी भारत की पवित्र नदियों में से एक है,7. हरिशयनी एकादशी : 20 जुलाई 2021 को हरिशयनी एकादशी से चतुर्मास प्रारंभ हो जाएगा। इसे देवशयनी एकादशी भी कहते हैं। इस दिन से देव सो जाएंगे और सभी तरह के मांगलिक और चार माह के लिए शुभ कार्य बंद हो जाएंगे।8. वामन द्वादशी : 21 जुलाई 2021 को प्रदोष व्रत के दिन वामन द्वादशी और वासुदेव द्वादशी रहेगी। इसी दिन मुस्लिमों का ईद उल जुहा का पर्व भी रहेगा।9. विजया पार्वती व्रत :22 जुलाई को विजया पार्वती व्रत और मंगला तेरस रहेगी, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजन विधि एवं कथा-10. गुरु पूर्णिमा : 23 जुलाई को व्रत की पूर्णिमा प्रारंभ होगी और 24 जुलाई को गुरु पूर्णिमा रहेगी। 23 जुलाई को चंद्रशेखर आजाद और लोकमान्य तिलक की जयंती भी है। पूर्णिमा के दिन व्यास पूजा होती है अर्थात महाभारत के लेखक वेद व्यासजी की पूजा। इसी दिन से आषाढ़ माह समाप्त हो जाएगा।अन्य : इस माह में 5 जुलाई को योगिनी एकादश, 7 जुलाई को प्रदोष व्रत, 8 जुलाई को शिव चतुर्दशी अर्थात मासिक शिवरात्रि, 13 जुलाई को विनायकी चतर्दशी व्रत, 18 जुलाई को गुप्त नवरात्रि पारण दिवस और भड़ली नवमी और 19 जुलाई को आशा दशमी का व्रत रहेगा। 28 जून से पंचक काल प्रारंभ होगा जो 3 जुलाई तक रहेगा।...

माह में 2 एकादशियां होती हैं अर्थात आपको माह में बस 2 बार और वर्ष के 365 दिनों में मात्र 24 बार ही नियमपूर्वक एकादशी व्रत रखना है। हालांकि प्रत्येक तीसरे वर्ष अधिकमास होने से 2 एकादशियां जुड़कर ये कुल 26 होती हैं। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं। आओ जानते हैं इसके संबंध में 10 प्रमुख बातें।कब है निर्जला एकादशी का व्रत : प्रत्येक हिन्दू वर्ष के ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाता है। अंग्रेजी माह के अनुसार इस वर्ष 2021 में यह व्रत 21 जून को सोमवार के दिन रखा जाएगा।निर्जला एकादशी शुभ मुहूर्त : एकादशी तिथि का प्रारम्भ 20 जून 2021 को शाम के 04 बजकर 21 मिनट पर पर होगा और इसका समापन 21 जून को दोपहर 01 बजकर 31 मिनट पर होगा। इसका पारण समय 22 जून को 05:23:49से08:11:28 तक रहेगा। पारणा अवधि : 02 घंटे 47 मिनट है। वैसे व्रत का प्रारंभ उदया तिथि से माना जाता है। सूर्योदय से दूसरे दिन के सूर्योदय तक व्रत रहेगा।जानें 10 प्रमुख बातें :. ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी के अलावा भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। भीम...

वर्ष 2021 में स्कन्द षष्ठी 16 जून, बुधवार को मनाई जा रही है। हर महीने की शुक्ल पक्ष षष्ठी के दिन स्कन्द षष्ठी व्रत रखा जाता है। मुख्य रूप से यह व्रत दक्षिण भारत के राज्यों में लोकप्रिय है। इस दिन शिव-पार्वती के बड़े पुत्र कार्तिकेय की विधिपूर्वक पूजा की जाती है।यहां जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और कथा-स्कन्द षष्ठी का महत्व-ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भगवान कार्तिकेय षष्ठी तिथि और मंगल ग्रह के स्वामी हैं तथा दक्षिण दिशा में उनका निवास स्थान है। इसीलिए जिन जातकों की कुंडली में कर्क राशि अर्थात् नीच का मंगल होता है, उन्हें मंगल को मजबूत करने तथा मंगल के शुभ फल पाने के लिए इस दिन भगवान कार्तिकेय का व्रत करना चाहिए, क्योंकि स्कन्द षष्ठी भगवान कार्तिकेय को अधिक प्रिय होने के जातकों को इस दिन व्रत अवश्य करना चाहिए।पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिकेय अपने माता-पिता और छोटे भाई श्री गणेश से नाराज होकर कैलाश पर्वत छोड़कर मल्लिकार्जुन (शिव जी के ज्योतिर्लिंग) आ गए थे और कार्तिकेय ने स्कन्द षष्ठी को ही दैत्य तारकासुर का वध किया था तथा इसी तिथि को कार्तिकेय देवताओं की सेना के सेनापति बने थे। भ...

14 से 20 जून तक व्रत और पर्व के लिए 4 दिन रहेंगे। इस हफ्ते की शुरुआत सोमवार को विनायक चतुर्थी के साथ हो रही है। इस दिन सौभाग्य और समृद्धि के लिए गणेशजी की पूजा के साथ व्रत किया जाता है और रात में चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ये व्रत खोला जाता है। इसके अगले दिन मिथुन संक्रांति पर्व रहेगा। यानी 15 जून को सूर्य के मिथुन राशि में प्रवेश करेगा। इस दिन सूर्य पूजा के साथ ही तीर्थ स्नान-दान और पितरों के लिए श्राद्ध करने की परंपरा है। ऐसा करने से कई गुना पुण्य फल मिलता है। इसके बाद सप्ताह के आखिरी दो दिनों में महेश नवमी और गायत्री जयंती मनाई जाएगी। इस हफ्ते के आखिरी दिन गंगा दशहरा भी मनाया जाएगा। ज्योतिषीय नजरिये से देखा जाए तो ये सप्ताह खास रहेगा। इन दिनों सूर्य का राशि परिवर्तन होगा। बुध ग्रह अस्त होने के साथ ही वक्री यानी टेढ़ी चाल से ही चलता रहेगा। साथ ही इस हफ्ते खरीदारी और नए कामों की शुरुआत के लिए 5 शुभ मुहूर्त भी रहेंगे। इनमें 2 सर्वार्थसिद्धि और 4 रवियोग रहेंगे। 14 तारीख को दोनों शुभ योग रहेंगे।7 से 13 जून तक का पंचांग तारीख और वार - तिथियां - व्रत-त्योहार 14 जून, सोमवार - ज्येष्ठ शुक्...

प्रकृति ने महिलाओं को मासिक धर्म का वरदान दिया है,इसी वरदान से मातृत्व का सुख मिलता है ...मिथुन संक्रांति कथा के अनुसार जिस तरह महिलाओं को मासिक धर्म होता है वैसे ही भूदेवी या धरती मां को शुरूआत के तीन दिनों तक मासिक धर्म हुआ था जिसको धरती के विकास का प्रतीक माना जाता है। तीन दिनों तक भूदेवी मासिक धर्म में रहती हैं वहीं चौथे दिन में भूदेवी जिसे सिलबट्टा भी कहते हैं उन्हें स्नान कराया जाता है।इस दिन धरती माता की पूजा की जाती है। उडीसा के जगन्नाथ मंदिर में आज भी भगवान विष्णु की पत्नी भूदेवी की चांदी की प्रतिमा विराजमान है। 15 जून 2020 कोजानिए मिथुन संक्रांति का मुहूर्त
पुण्यकाल मुहूर्त :दोपहर : 11:52 से 18:16, महा पुण्यकाल मुहूर्त 11:52 से 12:16, संक्राति समय -दोपहर : 11: 52, मिथुन संक्रांति पूजा विधि-1.मिथुन संक्रांति के दिन सिलबट्टे को भूदेवी के रूप में पूजा जाता है। सिलबट्टे को इस दिन दूध और पानी से स्नान कराया जाता है।2.इसके बाद सिलबट्टे पर चंदन, सिंदूर, फूल व हल्दी चढ़ाते हैं।3.मिथुन संक्रांति के दिन पूर्वजों को श्रद्धांजलि दी जाती है।4..मिथुन संक्रांति के दिन ग...

सोमवार को विनायक चतुर्थी है। चतुर्थी की तिथि भगवान श्री गणेश की तिथि है। हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार श्री गणेश की कृपा प्राप्ति से जीवन के सभी असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं। पुराणों के अनुसार शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी तथा कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। इस बार विनायक चतुर्थी 14 जून 2021 को मनाई जाएगी। आइए जानते हैं भगवान गणेश की पूजा विधि और शुभ मुहूर्त-प्रति माह शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी को विनायकी चतुर्थी (Vinayaka Chaturthi) व्रत कहते हैं। यह चतुर्थी भगवान श्री गणेश को समर्पित है। इस दिन श्री गणेश की पूजा दोपहर-मध्याह्न में की जाती है। इस दिन श्री गणेश का पूजन-अर्चन करना लाभदायी माना गया है। इस दिन गणेश की उपासना करने से घर में सुख-समृद्धि, धन-दौलत, आर्थिक संपन्नता के साथ-साथ ज्ञान एवं बुद्धि की प्राप्ति भी होती है।भगवान श्री गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है, विघ्नहर्ता यानी आपके सभी दु:खों को हरने वाले देवता। इसीलिए भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए विनायक...

हिन्दू पंचांग के अनुसार रंभा तीज व्रत ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को किया जाता है। इस वर्ष यह व्रत 13 जून 2021, रविवार को रखा जाएगा। विवाहित महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र और बुद्धिमान संतान पाने के लिए यह व्रत रखती है जबकि कुंआरी कन्याएं यह व्रत अच्छे वर की प्राप्ति की कामना से करती हैं। कहते हैं कि यह कौन है रंभा :1. पौराणिक शास्त्रों के अनुसार अप्सराएं देवलोक में रहने वाली अनुपम, अति सुंदर, अनेक कलाओं में दक्ष, तेजस्वी और अलौकिक दिव्य स्त्री है। देवराज इन्द्र के स्वर्ग में हजारों अप्सराएं थीं लेकिन उनमें से 1008 प्रमुख थी। उनमें से भी 11 अप्सराएं प्रमुख सेविका थीं। ये 11 अप्सराएं हैं- कृतस्थली, पुंजिकस्थला, मेनका, रम्भा, प्रम्लोचा, अनुम्लोचा, घृताची, वर्चा, उर्वशी, पूर्वचित्ति और तिलोत्तमा। इन सभी अप्सराओं की प्रधान अप्सरा रम्भा थीं।
2. रामायण काल में यक्षराज कुबेर के पुत्र नलकुबेर की पत्नी के रूप में इसका उल्लेख मिलता है। रावण ने रम्भा के साथ बलात्कार करने का प्रयास किया था जिसके चलते रम्भा ने उसे शाप दिया था।3. कहते हैं कि रम्भा का प्रकट्य समुद्र मंथन से हुआ था। इसीलिए उसे लक्ष्म...

हिन्दू धर्म संस्कृति में सूर्य की उपासना करने का विशेष महत्व माना गया है। सूर्य ग्रहण पर यहां पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं सूर्य चालीसा का संपूर्ण पाठ, अवश्‍य पढ़ें...दोहा
कनक बदन कुंडल मकर, मुक्ता माला अंग।
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के संग।।
चौपाई
जय सविता जय जयति दिवाकर, सहस्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर।
भानु, पतंग, मरीची, भास्कर, सविता, हंस, सुनूर, विभाकर।
विवस्वान, आदित्य, विकर्तन, मार्तण्ड, हरिरूप, विरोचन।
अम्बरमणि, खग, रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते।
सहस्रांशु, प्रद्योतन, कहि कहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि।
अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढ़ि रथ पर।
मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी।
उच्चैश्रवा सदृश हय जोते, देखि पुरन्दर लज्जित होते।
मित्र, मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता,
सूर्य, अर्क, खग, कलिहर, पूषा, रवि,
आदित्य, नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै।
द्वादस नाम प्रेम सो गावैं, मस्तक बारह बार नवावै।
चार पदारथ सो जन पावै, दुख दारिद्र अघ पुंज नसावै।...

10 जून को ज्येष्ठ महीने की अमावस्या है। सनातन धर्म को मानने वाले लोगों के लिए इस पर्व पर तीर्थ स्नान, दान और व्रत करने का महत्व बताया गया है। ऐसा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। हर तरह के पाप और दोष दूर हो जाते हैं। साथ ही कई गुना पुण्य मिलता है। इस अमावस्या पर भगवान शिव-पार्वती, विष्णुजी और वट वृक्ष की पूजा की परंपरा है। इसलिए ज्येष्ठ महीने की अमावस्या को पुराणों में बहुत ही खास माना गया है।अमावस्या पर तृप्त होते है पितरज्येष्ठ महीने की अमावस्या तिथि को तीर्थ स्नान के साथ ही तर्पण और श्रद्धा अनुसार अन्न एवं जल दान किया जाता है। ऐसा करने से पितर तृप्त होते हैं। इस तिथि पर सुबह जल्दी उठकर तीर्थ स्नान करना चाहिए। इसके बाद सूर्य को अर्घ्य देकर पितरों की शांति के लिए तर्पण करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण भोजन और जल दान का संकल्प लेना चाहिए। दिन में अन्न और जल दान करना चाहिए। ऐसा करने से पितृ संतुष्ट होते हैं और परिवार में समृद्धि आती है।दांपत्य सुख के लिए शिवजी की पूजा
ज्येष्ठ अमावस्या पर स्नान, दान और पुण्य कर्म करने का विशेष महत्व है। इसके साथ ही ये दिन उन लोगों के लिए भी बेहद खास...

हिन्दू परंपरा में भगवान शनिदेव की पूजा का प्रचलन है। शनिदेव के संबंध में हमें पुराणों में कई कथाएं और कहानियां मिलती है। थोड़ी बहुत भिन्नता के साथ ही लगभग सभी कथाओं में समानताएं हैं। इस बार शनि जयंती ज्येष्ठ माह की अमावस्या अर्थात 10 जून 2021 गुरुवार को है। आओ जानते हैं भगवान शनिदेव के संबंध में 10 रोचक बातें।नीलांजनं समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌।छायामार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌॥1. शनिदेव का जन्म : एक कथा के अनुसार भगवान शनिदेव का जन्म ऋषि कश्यप के अभिभावकत्व यज्ञ से हुआ माना जाता है। लेकिन स्कंदपुराण के काशीखंड अनुसार शनि भगवान के पिता सूर्य और माता का नाम छाया है। उनकी माता को संवर्णा भी कहते हैं। शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ माह की कृष्ण अमावस्या के दिन हुआ था। हालांकि कुछेक ग्रंथों में शनिदेव का जन्म भाद्रपद मास की शनि अमावस्या को माना गया है।2. संज्ञा की छाया के पुत्र : सूर्यदेव की पत्नी संज्ञा से वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना का जन्म हुआ और फिर संज्ञा ने ही सूर्यदेव के ताप से बचने के लिए संज्ञान ने अपने तप से अपना प्रतिरूप संवर्णा को पैदा किया और संज्ञा ने संवर्णा से कहा...

प्रत्येक माह में 2 चतुर्दशी और वर्ष में 24 चतुर्दशी होती है। चतुर्दशी को चौदस भी कहते हैं। चतुर्दशी तिथि रिक्ता संज्ञक है एवं इसे क्रूरा भी कहते हैं। यह उग्रता देने वाली तिथि हैं। इसीलिए इसमें समस्त शुभ कार्य वर्जित है। इस बार ज्येष्ठ माह की कृष्ण चतुर्दशी को व्रत रखा जाएगा जो अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 8 जून 2021 मंगलवार को 11 बजकर 24 मिनट पर प्रारंभ होगी और 9 जून बुधवार को दोपहर 1 बजकर 57 मिनट पर समाप्त होगी। इसे मासिक शिवरात्रि भी कहते हैं, जो 8 जून को ही मनाई जाएगी। आओ जानते हैं कि पुराणों में शिव चतुर्दशी का क्या है महत्व।1. पुराणों के अनुसार चतुर्दशी (चौदस) के देवता हैं भगवान शंकर। हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि कहते हैं। इस तिथि में भगवान शंकर की पूजा करने से मनुष्य समस्त ऐश्वर्यों को प्राप्त कर बहुत से पुत्रों एवं प्रभूत धन से संपन्न हो जाता है।2. पुराणों के अनुसार पांच चतुर्थियों का खास महत्व है- भाद्रपद शुक्ल की अनंत चतुर्दशी, कार्तिक कृष्ण की कृष्ण, रूप या नरक चतुर्दशी, कार्तिक शुक्ल की बैकुण्ठ चतुर्दशी, वैशाख शुक्ल माह की विनायक चतुर्दशी और शिव चतुर्दशी का ...

इस वर्ष 6 जून 2021, रविवार को अचला (अपरा) एकादशी पर्व मनाया जाता है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं ‘अचला’ या 'अपरा' एकादशी पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है। अपरा एकादशी का अर्थ अपार पुण्य होता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री विष्णु का पूजन और व्रत करने से मनुष्य को अपार पुण्य मिलता है। अत: मनुष्य को पापों से डरते हुए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए। अपरा एकादशी व्रत से मनुष्य को जीवन में मान-सम्मान, धन, वैभव, निरोगी काया और अपार खुशियों की प्राप्ति होती है तथा समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।1. ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की ग्यारस तिथि को अपरा एकादशी पर्व मनाया जाएगा। पुराणों के अनुसार ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी अपरा एकादशी है, क्योंकि यह अपार धन देने वाली है। जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं, वे संसार में प्रसिद्ध हो जाते हैं।
2. इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा की जाती है।3. अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, भू‍त योनि, दूसरे की निंदा आदि के सब पाप दूर हो जाते हैं।
4. इस व्रत के करने से परस्त्रीगमन, झूठी गवाही देना, झूठ बोलना, झ...

आज आपका दिन मंगलमयी रहे, यही शुभकामना है। यह है खास आपके लिए सप्ताह के 7 दिन के विशिष्ट मुहूर्त। अगर आप इन 7 दिनों में वाहन खरीदने का विचार कर रहे हैं या कोई नया व्यापार आरंभ करने जा रहे हैं तो इस शुभ मुहूर्त में ही कार्य करें ताकि आपके कार्य सफलतापूर्वक संपन्न हो सकें। ज्योतिष एवं धर्म की दृष्टि से इन मुहूर्तों का विशेष महत्व है। मुहूर्त और चौघड़िए के आधार पर 'वेबदुनिया' आपके लिए इस सप्ताह के अंतर्गत आनेवाले प्रतिदिन के खास मुहूर्त की सौगात लेकरआईहै।
7 जून 2021, सोमवार के शुभ मुहूर्त
शुभ विक्रम संवत्-2078, शक संवत्-1943, हिजरी सन्-1442, ईस्वी सन्-2021
अयन- उत्तरायण
मास-ज्येष्ठ
पक्ष-कृष्ण
संवत्सर नाम-आनन्द
ऋतु-ग्रीष्म
वार-सोमवार
तिथि (सूर्योदयकालीन)-द्वादशी
नक्षत्र (सूर्योदयकालीन)-भरणी
योग (सूर्योदयकालीन)-अतिगंड
करण (सूर्योदयकालीन)-तैतिल
लग्न (सूर्योदयकालीन)-वृष
शुभ समय- 6:00 से 7:30 तक, 9:00 से 10:30 तक, 3:31 से 6:41 तकराहुकाल- प्रात: 7:30 से 9:00 बजे तक
दिशा शूल-आ...

आपने पारस मणि, नागमणि, कौस्तुभ मणि, चंद्रकांता मणि, नीलमणि, स्यमंतक मणि, स्फटिक मणि आदि का नाम तो सुना ही होगा, परंतु ही यहां निम्नलिखित नौ मणियों की बात कर रहे हैं- घृत मणि, तैल मणि, भीष्मक मणि, उपलक मणि, स्फटिक मणि, पारस मणि, उलूक मणि, लाजावर्त मणि, मासर मणि। आओ जानते हैं कि घृत मणि को धारण करने से क्या होता है। हालांकि यह सभी बातें मान्यता पर आधारित हैं।1. घृतमणि को गरुढ़मणि, करकौ‍तुक, कर्केतक भी कहते हैं। फारसी में इसका नाम जबरजद्द अंग्रेजी में पेरिडॉट है।2. यह एक विशेष प्रकार के हरे, पीले, लाल, श्यामल और मधु मिश्रित रंग पत्थर होता है। खासकर हरा रंग बहुतायत है। इसके उपर छोटे छोटे छींटे होते हैं। इसे बुध के पन्ना रत्न का उपरत्न माना जाता है।3. ज्योतिष के अनुसार मिथुन राशि में सूर्य या चंद्र ग्रह होने पर इसको चांदी की अंगूठी में मड़वा कर हस्त नक्षत्र में सूर्यमंत्र के साथ अभिमंत्रित करके बाएं हाथ की अनामिका अंगुली में पहनते हैं।4. और यदि कन्या राशि में सूर्य, चंद्र या बुध हो तो सोने की अंगूठी में मड़वाकर दाएं हाथ की कनिष्ठा अंगुली में पहनते हैं।5. इस मणि को धारण करने से धन, संपत्...

 राशिफल विशेष, जहां आप पाएंगे आज के दिन का राशिफल, कैसा होगा आपका दिन, किसे मिलेगा प्यार, किसका चलेगा व्यापार, करियर में किसे मिलेगी उड़ान, किसे मिलेगा धन अपार... हर वर्ग के लिए जानिए दैनिक राशिफल
मेषस्थायी संपत्ति के कार्य बड़ा लाभ दे सकते हैं। रोजगार में वृद्धि होगी। आय के नए साधन प्राप्त हो सकते हैं। भाग्योन्नति के प्रयास सफल रहेंगे। जीवन सुखमय व्यतीत होगा। घर-बाहर प्रसन्नता रहेगी। स्वास्थ्य में राहत मिलेगी। चिंता दूर होगी। नौकरी में रुतबा बढ़ेगा।
वृषधनहानि की आशंका है। लेन-देन में जल्दबाजी न करें। थकान व कमजोरी रह सकती है। व्यापार व व्यवसाय ठीक चलेगा। नौकरी में चैन रहेगा। यात्रा मनोरंजक रहेगी। प्रेम-प्रसंग में अनुकूलता रहेगी। राजकीय बाधा दूर होकर स्थिति अनुकूल बनेगी। घर-बाहर प्रसन्नता रहेगी।
मिथुनयात्रा में जल्दबाजी न करें। शारीरिक कष्ट संभव है। पुराना रोग उभर सकता है। वाहन व मशीनरी के प्रयोग में सावधानी रखें। हंसी-मजाक में हल्कापन न हो, ध्यान रखें। कीमती वस्तुएं इधर-उधर हो सकती हैं, संभालकर रखें। व्यापार-व्यवसाय ठीक चलेगा। आय में निश्चितता रहेगी।
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प्याज को ग्रामीण क्षेत्रों में कांदा भी कहते हैं। अंग्रेजी में इसे ओन्यन  कहते हैं। यह कंद श्रेणी में आता है जिसकी सब्जी भी बनती है और इसे सब्जी बनने में मसालों के साथ उपयोग भी किया जाता है। इसे संस्कृत में कृष्णावल कहते थे। हालांकि आजकल यह शब्द प्रचलन में नहीं है। कृष्‍णावल कहने के पीछे एक रहस्य छुपा हुआ है। आओ जानते हैं कि प्याज को क्यों कहते हैं कृष्णावल।दक्षिण भारत में खासकर कर्नाटक और तमिलनाडु के ग्रामीण क्षेत्रों में प्याज को आज भी कृष्णावल नाम से ही जाना जाता है।2. इसे कृष्णवल कहने का तात्पर्य यह है कि जब इसे खड़ा काटा जाता है तो वह शंखाकृती यानी शंख के आकार में कटता है। वहीं जब इसे आड़ा काटा जाता है तो यह चक्राकृती यानी चक्र के आकार में कटता है।3. आप जानते ही हैं कि शंख और चक्र दोनों श्रीहरि विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण के आयुधों से संबंधित हैं।4. शंख और चक्र के कारण ही प्याज को कृष्णावल कहते हैं। कृष्ण और वलय शब्दों को मिलाकर बना है कृष्णावल शब्द है।5. कृष्णावल कहने के पीछे सिर्फ यही एक कारण नहीं है बल्कि यदि आप प्याज को उसकी पत्तियों के साथ उलटा पकड़ेंगे तो वह गदा...

यह हैं शादी के 7 अनमोल वचन
विवाह के समय पति-पत्नी अग्नि को साक्षी मानकर एक-दूसरे को सात वचन देते हैं जिनका दांपत्य जीवन में काफी महत्व होता है। आज भी यदि इनके महत्व को समझ लिया जाता है तो वैवाहिक जीवन में आने वाली कई समस्याओं से निजात पाई जा सकती है।विवाह समय पति द्वारा पत्नी को दिए जाने वाले सात वचनों के महत्व को देखते हुए यहां उन वचनों के बारे में कुछ जानकारी दी जा रही है।
1. तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी!।
(यहां कन्या वर से कहती है कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना। कोई व्रत-उपवास अथवा अन्य धर्म कार्य आप करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें। यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।)
किसी भी प्रकार के धार्मिक कृत्यों की पूर्णता हेतु पति के साथ पत्नी का होना अनिवार्य माना गया है। पत्नी द्वारा इस वचन के माध्यम से धार्मिक कार्यों में पत्नी की सहभा‍गिता व महत्व को स्पष्ट किया गया है।
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इस वर्ष वट सावित्री व्रत पर्व 10 जून 2021 को मनाया जा रहा है। वट सावित्री अमावस्या के दिन सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी। हिन्दू धर्म में वट सावित्री अमावस्या सौभाग्यवती स्त्रियों का महत्वपूर्ण पर्व है। इस व्रत को ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक तथा ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी से पूर्णिमा तक करने का विधान है।मान्यता है कि वट सावित्री व्रत करने से पति दीर्घायु और परिवार में सुख शांति आती है। पुराणों के अनुसार वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। इस व्रत में बरगद वृक्ष चारों ओर घूमकर सौभाग्यवती स्त्रियां रक्षा सूत्र बांधकर पति की लंबी आयु की कामना करती हैं।वट सावित्री व्रत में ‘वट’ और ‘सावित्री’ दोनों का खास महत्व माना गया है। पीपल की तरह ही वट या बरगद वृक्ष का भी विशेष महत्व है। इस व्रत को सभी प्रकार की स्त्रियां यानी कुमारी, विवाहिता, कुपुत्रा, सुपुत्रा, विधवा आदि करती हैं। इस व्रत को स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं। आजकल अमावस्या को ही इस व्रत का नियोजन होता है। इस दिन वट (बड़, बरगद) का पू...

अक्षय तृतीया का पर्व हर साल वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसे आखातीज या अक्खा तीज कहते हैं। इस वर्ष अक्षय तृतीया तिथि 14 मई 2021, शुक्रवार को पड़ रही है। इस साल की अक्षय तृतीया कई मयानों में विशेष रहने वाली है।अक्षय तृतीया तिथि शुभ मुहूर्त:-14 मई 2021 को सुबह 05 बजकर 38 मिनट से प्रारंभ होकर 15 मई 2021 को सुबह 07 बजकर 59 मिनट तक रहेगी। इस बीच पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 05 बजकर 38 मिनट से दोपहर 12 बजकर 18 मिनट तक रहेगा। पूजा की कुल अवधि 06 घंटा 40 मिनट रहेगी। बताया जाता है कि वर्ष में साढ़े तीन अक्षय मुहूर्त है। जिसमें प्रथम व विशेष स्थान अक्षय तृतीया का है।
महत्व : इस दिन भगवान नर-नारायण सहित परशुराम और हय ग्रीव का अवतार हुआ था। इसके अलावा, ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का जन्म भी इसी दिन हुआ था। बद्रीनारायण के कपाट भी इसी दिन खुलते हैं। मां गंगा का अवतरण भी इसी दिन हुआ था। इसी दिन सतयुग और त्रैतायुग का प्रारंभ हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ। अक्षय तृतीया के दिन से ही वेद व्यास और भगवान गणेश ने महाभारत ग्रंथ लिखना शुरू किया था...

1. सूर्यास्त के बाद हुई है मृत्यु तो हिन्दू धर्म के अनुसार शव को जलाया नहीं जाता है। इस दौरान शव को रातभर घर में ही रखा जाता और किसी न किसी को उसके पास रहना होता है। उसका दाह संसाकार अगले दिन किया जाता है। यदि रात में ही शव को जला दिया जाता है तो इससे व्यक्ति को अधोगति प्राप्त होती है और उसे मुक्ति नहीं मिलती है। ऐसी आत्मा असुर, दानव अथवा पिशाच की योनी में जन्म लेते हैं।
2. यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु पंचक काल में हुई है तो पंचक काल में शव को नहीं जलाया जाता है। जब तक पंचक काल समाप्त नहीं हो जाता तब तक शव को घर में ही रखा जाता है और किसी ना किसी को शव के पास रहना होता है। गरुड़ पुराण सहित कई धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि यदि पंचक में किसी की मृत्यु हो जाए तो उसके साथ उसी के कुल खानदान में पांच अन्य लोगों की मौत भी हो जाती है। इसी डर के कारण पंचक काल के खत्म होने का इंतजार किया जाता है परंतु इसका समाधान भी है कि मृतक के साथ आटे, बेसन या कुश (सूखी घास) से बने पांच पुतले अर्थी पर रखकर इन पांचों का भी शव की तरह पूर्ण विधि-विधान से अंतिम संस्कार किया जाता है। ऐसा करने से पंचक दोष सम...

26 मई 2021 वैशाख पूर्णिमा है। हमारे पुराणों में वैशाखी पूर्णिमा को अत्यंत पवित्र एवं फलदायी तिथि माना गया है। वैशाख पूर्णिमा के दिन पिछले एक महीने से चला आ रहा वैशाख स्नान एवं विशेष धार्मिक अनुष्ठानों की पूर्ण आहूति की जाती है। मंदिरों में हवन-पूजन के बाद वैशाख महात्म्य कथा का परायण किया जाता है।भविष्य पुराण, आदित्य पुराण में के अनुसार इस दिन प्रातः नदियों एवं पवित्र सरोवरों में स्नान के बाद दान-पुण्य का विशेष महत्व कहा गया है। धर्मराज के निमित्त जल से भरा हुआ कलश, पकवान एवं मिष्ठान आज के दिन वितरित करना, गौ दान के समान फल देने वाले बताए गए हैं।* वैशाखी पूर्णिमा के दिन शक्कर और तिल दान करने से अनजान में हुए पापों का भी क्षय हो जाता है।
* पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने घी से भरा हुआ पात्र, तिल और शक्कर स्थापित कर पूजन करना चाहिए। यदि हो सके तो पूजन के समय तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए।
* पितरों के निमित्त पवित्र नदियों में स्नान कर हाथ में तिल रखकर तर्पण करने से पितरों की तृप्त होते हैं एवं उनका आशीर्वाद मिलता है।
* पुराणों के अनुसार वैशाख का यह प...

प्रचलित मान्यता अनुसार अंग के फड़कने से भी शकुन अपशकुन का विचार किया जाता है। हालांकि निम्न बातों में कितनी सचाई है यह बताना मुश्किल है। इसे लोग अंधविश्वास के अंतर्गत मानते हैं। यहां सिर्फ जानकारी हेतु यह लेख है पाठक अपने विवेक का उपयोग करें।
* पुरुष के शरीर का अगर बायां भाग फड़कता है तो भविष्य में उसे कोई दुखद घटना झेलनी पड़ सकती है। वहीं अगर उसके शरीर के दाएं भाग में हलचल रहती है तो उसे जल्द ही कोई बड़ी खुशखबरी सुनने को मिल सकती है। जबकि महिलाओं के मामले में यह उलटा है।
* किसी व्यक्ति के माथे पर अगर हलचल होती है तो भौतिक सुख
* कनपटी के पास फड़कन पर धन लाभ होता है।
* मस्तक फड़के तो भू-लाभ मिलता है।
* ललाट का फड़कना स्नान लाभ दिलाता है।
* नेत्र का फड़कना धन लाभ दिलाता है।
* यदि दाईं आंख फड़कती है तो सारी इच्छाएं पूरी होने वाली हैं
* बाईं आंख में हलचल रहती है तो अच्छी खबर मिल सकती है।
* अगर दाईं आंख बहुत देर या दिनों तक फड़कती है तो यह लंबी बीमारी।
* यदि कंधे फड़के तो भोग-विलास में वृद्धि होती है।
* दोनों भौंहों के मध्य ...

चाहे पूजा हो या
नए घर का गृह प्रवेश, नई गाड़ी या नया बिज़नेस किसी भी कार्य का शुभारंभ नारियल फोड़कर किया जाता है। नारियल को भारतीय सभ्यता में शुभ और मंगलकारी माना गया है। इसलिए पूजा-पाठ और मंगल कार्यों में इसका उपयोग किया जाता है। हिंदू परंपरा में नारियल सौभाग्य और समृद्धि की निशानी होती है। नारियल भगवान गणेश को चढ़ाया जाता है और फिर प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। नारियल इस धरती के सबसे पवित्र फलों में से एक है। इसलिए इस फल को लोग भगवान को चढ़ाते हैं।
आइए जानते हैं कि क्यों आखिर किसी भी काम को शुरू करने से पहले नारियल क्यों फोड़ा जाता है। ऋषि विश्वामित्र को नारियल का निर्माता माना जाता है। इसकी ऊपरी सख्त सतह इस बात को दर्शाती है कि किसी भी काम में सफलता हासिल करने के लिए आपको मेहनत करनी होती है।

नारियल एक सख्त सतह और फिर एक नर्म सतह होता है और फिर इसके अंदर पानी होता है जो बहुत पवित्र माना जाता है। इस पानी में किसी भी तरह की कोई मिलावट नहीं होती है। नारियल भगवान गणेश का पसंदीदा फल है। इसलिए नया घर या नई गाड़ी लेने पर फोड़ा जाता है। इसका पवित्र पानी जब चारों...

शनिदेव न्याय के देवता हैं। अगर आपमें यह 22 आदतें हैं तो मान कर चलिए कि शनिदेव आपको कभी परेशान नहीं करेंगे उल्टे आप पर उनकी कृपा दृष्टि सदैव रहने वाली है। हर संकट में वे आपके साथी बनकर राह दिखाएंगे। जानिए वे आदतें कौन सी हैं...
1.नाखून काटते रहें
जो लोग रोज अपने नाखून काटते हैं और उन्हें साफ भी रखते हैं, शनि ऐसा करने वालों का हमेशा खयाल रखते हैं। इसलिए अचानक अगर आप अपने नाखून काटने में आलस करने लगें या आपके नाखून गंदे रहने लगे तो समझें कि आपको शनि दशा सुधारने के लिए उपाय करने चाहिए। नाखून काटने की आदत को कभी ना बदलें।
2.दान करते रहें
अगर आपका दिल गरीबों, जरूरतमंदों को देखकर पसीज जाता है और हर तीज-त्योहार पर गरीब जरूरतमंद की आप मदद करते हैं तो समझें शनिदेव की आप पर विशेष कृपा है। अगर आप गरीबों को काले चने, काले तिल, उड़द दाल और कपड़े सच्चे मन से दान करते हैं, तो आश्वस्त रहिए कि शनिदेव आपका हमेशा कल्याण ही करेंगे।
3.छाते की भेंट देगी शनिदेव की छत्र-छाया
धूप व बारिश से बचने के लिए छाते दान करने वालों पर शनिदेव की छत्र-छाया हमेशा बनी रहती है। अगर अब...

शनिदेव न्याय के देवता हैं। अगर आपमें यह 22 आदतें हैं तो मान कर चलिए कि शनिदेव आपको कभी परेशान नहीं करेंगे उल्टे आप पर उनकी कृपा दृष्टि सदैव रहने वाली है। हर संकट में वे आपके साथी बनकर राह दिखाएंगे। जानिए वे आदतें कौन सी हैं...
1.नाखून काटते रहें
जो लोग रोज अपने नाखून काटते हैं और उन्हें साफ भी रखते हैं, शनि ऐसा करने वालों का हमेशा खयाल रखते हैं। इसलिए अचानक अगर आप अपने नाखून काटने में आलस करने लगें या आपके नाखून गंदे रहने लगे तो समझें कि आपको शनि दशा सुधारने के लिए उपाय करने चाहिए। नाखून काटने की आदत को कभी ना बदलें।
2.दान करते रहें
अगर आपका दिल गरीबों, जरूरतमंदों को देखकर पसीज जाता है और हर तीज-त्योहार पर गरीब जरूरतमंद की आप मदद करते हैं तो समझें शनिदेव की आप पर विशेष कृपा है। अगर आप गरीबों को काले चने, काले तिल, उड़द दाल और कपड़े सच्चे मन से दान करते हैं, तो आश्वस्त रहिए कि शनिदेव आपका हमेशा कल्याण ही करेंगे।
3.छाते की भेंट देगी शनिदेव की छत्र-छाया
धूप व बारिश से बचने के लिए छाते दान करने वालों पर शनिदेव की छत्र-छाया हमेशा बनी रहती है। अगर अब...

कुंडली के चतुर्थ, सप्तम और दशम भाव से व्यक्ति के नाम और यश की स्थिति देखी जाती है. कभी-कभी द्वादश भाव से भी नाम यश का विचार होता है. मूल रूप से चन्द्रमा और शुक्र, यश प्रदान करने वाले ग्रह माने जाते हैं. हस्तरेखा विज्ञान में सूर्य को यश का ग्रह माना जाता है. शनि, राहु और खराब चन्द्रमा, यश में बाधा पंहुचाने वाले ग्रह हैं. इसके अलावा कभी-कभी संगति से भी अपयश का योग बन जाता है.
कब व्यक्ति को जीवन में खूब नाम यश मिलता है 
 -अगर व्यक्ति की कुंडली में चतुर्थ, सप्तम या नवम भाव मजबूत हो.
- अगर चन्द्रमा या शुक्र में से कोई एक काफी मजबूत हो.
- अगर कुंडली में पञ्च महापुरुष योग हो.
- अगर कुंडली में गजकेसरी योग हो.
- अगर हाथ में दोहरी सूर्य रेखा हो या सूर्य पर्वत पर त्रिभुज हो.
कब व्यक्ति को जीवन में अपयश मिल जाता है?
- जब व्यक्ति का सूर्य या चन्द्रमा ग्रहण योग में हो.
- जब कुंडली का अष्टम या द्वादश भाव ख़राब हो.
- जब कुंडली में शुक्र या चन्द्रमा नीच राशि में हो.
- जब सूर्य रेखा टूटी हो या उस पर द्वीप हो.
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अगर आपकी जिंदगी को कुंडली में मौजूद दोषों ने परेशान कर दिया है. हर काम में रूकावट और बाधा आपके जीवन की तरक्की को रोक रही है तो इसका इलाज बीएचयू ने खोज दिया है. काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में घर का मांगलिक दोष और कुंडली के दोष दूर करने के लिए ज्योतिष विभाग की ओर से ओपीडी लगाई जा रही है. यहां ज्यादातर लोग अपनी पीड़ा, घर में मांगलिक दोष और विशेषतौर पर कुंडली का दोष दूर कराने के लिए लोग आसपास के कई जिलों से पहुंच रहे हैं.  
वैष्णो देवी जाने वालों के लिए खुशखबरी, जल्द ही यहां से शुरू होंगी बस सेवाएं
बीएचयू परिसर में संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय की ओपीडी में दुख से पीड़ित मन का उपचार किया जा रहा. प्रतिदिन चलने वाली ज्योतिष ओपीडी में हर माह 50 के करीब लोग समस्याएं लेकर आते हैं. इनमें मांगलिक दोष के कारण शादी में रुकावट, कुंडली व आध्यात्मिक सहित जीवन से जुड़ी विभिन्न समस्याएं शामिल होती हैं. 
15 हजार किलो सोने से बना है ये मंदिर, रोज़ाना दर्शन करते हैं लाखों भक्त
इस संकाय के ज्योतिष एवं कर्मकांड परामर्श केंद्र की ओपीडी में मांगलिक दोष संग सभी त...

फेंगशुई में ऐसी कई चीजों का जिक्र किया गया है जिन्हें घर में रखने से समृद्धि और खुशहाली आती है। फेंगशुई में कछुए को शुभ माना गया है। आगे जानिए कि कैसे और किस दिशा में रखें कछुए को।
कहते हैं कछुए को रखने से घर में शांति रहती है। यह अपने साथ दौलत, शोहरत और कामयाबी लाता है। लेकिन ध्यान रखें कि कछुआ किस दिशा नें रखा है। इसे हमेशा मकान या ऑफिस की उत्तर दिशा में रखना चाहिए, तभी इसका कमाल देखने को मिलेगा। इसके साथ ही उसे ऐसे रखें जैसे वह प्रवेश कर रहा हो। इसका मुख घर के अंदर की तरफ होना चाहिए।

इसे कभी भी बेडरुम में ना रखें। और दो कछुओं को कभी साथ में घर में ना रखें। इससे आपकी राह में बाधा आ सकती है। कछुए को रखने के लिए एक बर्तन लें और उसमें पानी रखें। इसमें कछुए को रखकर उत्तर दिशा में रखें।...